लखनऊ। (आवाज न्यूज ब्यूरो) बसपा सुप्रीमो एवं पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि उनकी पार्टी महिला आरक्षण बिल का हर हाल में समर्थन करेगी। मंगलवार को जारी अपने बयान में उन्होंने कहा कि बसपा को इस बार लंबे अर्से से लटके महिला आरक्षण बिल पास होने की पूरी उम्मीद है। उन्होंने सुझाव दिया कि लोकसभा व राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं का आरक्षण 33 प्रतिशत देने की बजाय 50 प्रतिशत देने पर विचार किया जाना चाहिए।
बसपा सुप्रीमो ने एक बयान में कहा है कि महिलाओं के आरक्षण में से एससी, एसटी व ओबीसी वर्गों की महिलाओें का आरक्षण का कोटा अलग से सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इसके बिना इन वर्गों की पिछड़ी महिलाओं को सामान्य सीटों पर जल्दी मौका नहीं मिल पाएगा, क्योंकि जातिवादी पार्टियां यहां शुरू से ही इन वर्गों को किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ते नहीं देखना चाहती हैं। इससे यह भी साबित होगा कि बीजेपी व कांग्रेस पार्टी एंड कंपनी के लोगों की जातिवादी मानसिकता अभी तक नहीं बदली है और ये इन वर्गों को अभी भी पिछड़ा बनाए रखना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि बिल में महिलाओं की सीटें निर्धारित करने को लेकर जो भी मापदंड तय किये जायेंगे, उसमें किसी भी प्रकार की राजनीति नहीं होनी चाहिये। यह बिल समय से भी लागू होना चाहिये। उन्होंने कहा कि यदि उनकी मांगों पर अमल नहीं किया जाता है तब भी बसपा बिल का समर्थन करेगी। वजह, यहां अभी भी सभी जाति व धर्म की महिलाओं को हर मामले में पुरुषों की तुलना में अभी तक काफी पिछड़ा बनाकर रखा गया है। उन्होंने कहा कि पुराने संसद भवन की विदाई हो चुकी है, जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता है। मुझे भी संसद के दोनों सदनों में आने का मौका मिला, जो कि सौभाग्य की बात है। उन्होंने नवनिर्मित संसद भवन की शुरुआत का स्वागत करते हुए कहा कि इसमें केंद्र सरकार द्वारा महिला आरक्षण बिल प्रस्तुत किया जाएगा, जिसके पक्ष में बसपा सहित अधिकतर पार्टियां अपना मत दे सकती हैं।
संसद में पेश किए गए महिला आरक्षण बिल को सपा सामाजिक न्याय के पैमाने पर खरा नहीं मान रही है। सपा अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि महिला आरक्षण में लैंगिक न्याय और सामाजिक न्याय का संतुलन होना चाहिए। वहीं, सांसद डिंपल यादव ने कहा कि महिला आरक्षण बिल लाने की पीछे सरकार की मंशा ठीक नहीं है।
समाजवादी पार्टी प्रारंभ से ही महिला आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग कर रही है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2009 में लोकसभा में कहा था कि महिलाओं को जो 33 फीसदीं सीटें आरक्षित की जाएं, उनमें दलितों के साथ-साथ पिछड़ों और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं का हिस्सा नियमानुसार निर्धारित किया जाए। उन्होंने दलित, ओबीसी व अल्पसंख्यक महिलाओं के लिए सीटें निर्धारित किए बिना महिला आरक्षण लागू करना इन समाजों के खिलाफ षड्यंत्र बताया था।
सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले उत्तर भारत के प्रमुख राजनीतिक दल सपा और राजद लगातार कहते आ रहे हैं कि आरक्षण के भीतर आरक्षण दिए बिना महिला आरक्षण को लागू करने का मतलब है-उन सीटों को सामान्य वर्ग के लिए दे देना, जोकि सामाजिक न्याय के लिहाज से उचित नहीं है। महिला बिल पर एक्स के जरिये अपनी प्रतिक्रया देते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि इसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी महिलाओं का आरक्षण निश्चित प्रतिशत में स्पष्ट होना चाहिए। डिंपल यादव ने मीडिया से कहा, मैं इस बिल का समर्थन करतीं हूं, लेकिन हम चाहते हैं जो आखिरी पंक्ति में खड़ी हुई महिला है, उसे भी उसका हक मिलना चाहिए। हम चाहते हैं कि इसमें ओबीसी महिलाओं को भी आरक्षण मिले ,लेकिन सरकार की मंशा ठीक नहीं है। यह बिल 2024 लोकसभा चुनाव और आने वाले पांच राज्यों के चुनाव में भी लागू नहीं हो पाएगा।
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