नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो)। आज 13 मई 2025 को मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना का रिटायरमेंट हो रहे हैं। यह उनके लिए एक ऐतिहासिक दिन है, क्योंकि आज उनका अंतिम कार्यदिवस है। वहीं सीजेआई के रिटायरमेंट के अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों और एडवोकेट ने स्पीच दी। वहीं इस खास मौके पर अटॉर्नी जनरल आर.वेंकटरमणी, सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी सीजेआई संजीब खन्ना के साथ बिताए गए दिनों और उनके फैसलों को याद किया। हालांकि, सीजेआई ने मीडिया से बातचीत के दौरान यह स्पष्ट किया कि रिटायरमेंट के बाद वह किसी भी आधिकारिक पद को स्वीकार नहीं करेंगे, हालांकि वह कानूनी क्षेत्र में अपनी सेवाएं जारी रखने का इशारा भी कर चुके हैं।
जस्टिस खन्ना का न्यायिक करियर
आपको बता दें कि जस्टिस संजीव खन्ना का न्यायिक करियर तीन दशकों से अधिक पुराना है। वह जज और वकील दोनों के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। उनका जन्म 14 मई 1960 को हुआ था, और उनके पिता देव राज खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश रहे थे, जबकि उनकी मां सरोज खन्ना लेडी श्री राम कॉलेज में लेक्चरर थीं। जस्टिस खन्ना सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एचआर खन्ना के भतीजे हैं, जिन्होंने केशवानंद भारती केस (1973) में मूल संरचना सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।
आपातकाल के दौरान असहमति
जस्टिस एचआर खन्ना ने आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले (1976) में एकमात्र असहमति जताई थी, जिसके कारण उन्हें जनवरी 1977 में सीजेआई बनने का अवसर नहीं मिला। यह घटना भारतीय न्यायिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
जस्टिस संजीव खन्ना का कार्यकाल
जून 2005 में जस्टिस खन्ना को दिल्ली हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति मिली, और फरवरी 2006 में वह स्थायी न्यायाधीश बने। इसके बाद, जनवरी 2019 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। वह 2024 में 51वें मुख्य न्यायाधीश बने थे, जब उन्होंने जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के बाद कार्यभार संभाला था।
सुप्रीम कोर्ट में उनका योगदान
जस्टिस खन्ना की न्यायिक सोच हमेशा निर्णायक और तर्कसंगत रही है। उन्होंने कहा था, “हम हमेशा प्लस और माइनस को देख कर, तर्कसंगत तरीके से मुद्दों का निर्णय लेते हैं। न्यायिक सोच को हमेशा निर्णायक होना चाहिए।”
आखिरी दिन का संदेश
रिटायरमेंट के मौके पर जस्टिस खन्ना ने न्यायपालिका के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और नैतिकता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि न्याय की दिशा में उनके द्वारा किए गए फैसले हमेशा समाज के हित में होंगे। उनके रिटायरमेंट के साथ भारतीय न्यायपालिका ने एक अनुभवपूर्ण और संतुलित न्यायधीश को खो दिया है। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा, और उनकी न्यायिक सोच और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी आगामी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत रहेगी।
