(आख़िर ये कैसे जानेंगे दर्द) जब तक विधायक, मंत्री और अफसरों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते रहेंगे, तब तक सरकारी स्कूलों की हालत नहीं सुधरेगी। अनुभव से नीति बनती है, और सत्ता के पास उस अनुभव का अभाव है। स्कूलों में छत गिरने से मासूमों की मौत, किताबों की कमी, …
Read More »चाइनीज मांझा : खुलेआम बिकती मौत की धार
डॉ. सत्यवान सौरभ नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो)। हर शहर, हर गली, हर मोहल्ले में, जब बच्चे और किशोर पतंग उड़ाने निकलते हैं, तो उनका उद्देश्य केवल आसमान छूना होता है। लेकिन दुर्भाग्य से अब पतंग की यह उड़ान कई बार किसी की जान लेकर ही थमती है। इसका कारण कोई …
Read More »पेपर का एनालिसिस नहीं, सोच का सेंसरशिप है ये
हरियाणा स्टाफ सिलेक्शन कमीशन द्वारा परीक्षा समाप्त होने से पहले प्रश्नपत्रों के एनालिसिस पर रोक लगाने और कार्रवाई की चेतावनी देने का आदेश छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और डिजिटल शिक्षा प्रणाली के खिलाफ है। यह न केवल असंवैधानिक है बल्कि परीक्षा पारदर्शिता और शिक्षकों की स्वतंत्रता पर भी हमला …
Read More »हरियाली तीज : परंपरा की जड़ें और आधुनिकता की डालियाँ
(त्यौहार विशेष) हरियाली तीज केवल श्रृंगार, झूला और व्रत का पर्व नहीं, बल्कि भारतीय स्त्री के आत्मबल, प्रेम और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है। आधुनिकता की दौड़ में यह त्योहार भले ही प्रदर्शन का माध्यम बनता जा रहा हो, पर इसकी आत्मा अब भी स्त्री के मन, पर्यावरण और लोकसंस्कृति …
Read More »जब गुनहगार छूटते हैं और पीड़ित रह जाते हैं
2006 के मुंबई लोकल ट्रेन धमाकों में लगभग 189 लोगों की जान गई। लगभग 19 वर्षों तक चले मुकदमे के बाद जब उच्चतम न्यायालय ने सबूतों के अभाव में 12 अभियुक्तों को बरी कर दिया, तो यह न्याय व्यवस्था, जांच एजेंसियों और अभियोजन की निष्क्रियता पर गहरी चोट थी। कमजोर …
Read More »न्यायालय की चेतावनी और समाज का आईना
डॉ. सत्यवान सौरभ नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो)। “लव जिहाद” — एक ऐसा शब्द जो न तो भारतीय क़ानून में परिभाषित है, न संविधान में मान्यता प्राप्त, लेकिन फिर भी राजनीतिक मंचों, टीवी डिबेट्स और सड़कों पर सुनाई देने लगा है। अब यह बहस हरियाणा तक भी पहुँच चुकी है, और …
Read More »डिग्रियों की दौड़ में दम तोड़ते सपने संभावनाओं की कब्रगाह बनते संस्थान
(जब शिक्षा डर बन जाए) *संस्थाएं डिग्रियां नहीं, ज़िंदगियां दें — तभी शिक्षा का अर्थ है* भारत में शिक्षा संस्थान अब केवल डिग्रियों की फैक्ट्री बनते जा रहे हैं, जहां बच्चों की संभावनाएं और संवेदनाएं दोनों दम तोड़ रही हैं। कोटा, हैदराबाद, दिल्ली जैसे शहर आत्महत्या के आंकड़ों से दहल …
Read More »स्क्रॉल संस्कृति और अंधविश्वास : तकनीक के युग में मानसिक गुलामी-डॉ सत्यवान सौरभ
नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो)। आज का युग तकनीक और सूचना का है। हर हाथ में मोबाइल है, हर जेब में इंटरनेट। लेकिन क्या वास्तव में हम ज़्यादा जागरूक हुए हैं, या बस स्क्रीन पर फिसलती उंगलियों के गुलाम बन गए हैं? विज्ञापन, वीडियो, मीम्स, रील्स और टोटकों की अंतहीन दुनिया में …
Read More »डेटा की दलाली और ऋण की रेलमपेल : निजी बैंकों का नया लोकतंत्र
– प्रियंका सौरभ “नमस्ते महोदय/महोदया, क्या आप व्यक्तिगत ऋण लेना चाहेंगे?” नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो)। कभी दोपहर की झपकी के बीच, कभी सभा के समय, कभी मंदिर के बाहर, तो कभी वाहन चलाते समय — यह स्वर अब हमारे जीवन की अनिवार्य पृष्ठभूमि बन चुका है। यह मात्र एक स्वर …
Read More »साध्वी बनने का नया ट्रेंड : त्याग की ओट में सुख का ब्रांड?
प्रियंका सौरभ ‘नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो)। बचपन में हम सुनते थे कि साध्वी वह होती है जो मोह, माया, श्रृंगार, आकर्षण और सांसारिक जिम्मेदारियों से ऊपर उठ गई हो। वह जो खुद को समर्पित कर दे — ध्यान, साधना और आत्मा के शुद्धिकरण के लिए। आज की दुनिया में जब …
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