कन्नौज : लोहिया के एक और सिपहसालार विजय बहादुर पाल नही रहे

अखिलेश सदन छोड़कर इंदरगढ़ पहुंचे, कहा रिक्त स्थान की भरपाई मुश्किल

बृजेश चतुर्वेदी

कन्नौज।(आवाज न्यूज ब्यूरो) प्रखर समाजवादी नेता और प्रदेश के पूर्व माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री विजय बहादुर पाल का लंबी बीमारी के बाद आज प्रातः निधन हो गया। वे 81वर्ष के थे। उनके पुत्र इंजीनियर अनिल पाल ने सोशल मीडिया के जरिए आज सुबह यह जानकारी दी। ठेठ देसी अंदाज और गैरो की भी अपना बना लेने की कला में खासे माहिर खांटी समाजवादी नेता स्व. मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाते थे। शायद यही वजह थी कि उनके निधन का समाचार पाकर विधान सभा का बेहद जरूरी सत्र छोड़कर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव कन्नौज पहुंचे। इंदरगढ़ स्थित उनके आवास पर बेहद शोकाकुल अंदाज में अखिलेश ने कहा कि हमने एक प्रखर समाजवादी नेता और खो दिया उनके निधन से रिक्त हुए स्थान की भरपाई संभव नहीं है।

डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक के बयान पर टिप्पणी करते हुए कि सदन में आना जरूरी नही था परिवार जरूरी था, इस पर अखिलेश यादव ने कहा कि ये समय नही है वे ये भी कह सकते है कि पूर्व शिक्षा मंत्री विजय बहादुर पाल के निधन पर गए सदन जरूरी था ऐसे लोगो के बारे में सोचना सही नही है।

मैनपुरी रामपुर उप चुनाव में कम मतदान प्रतिशत के सवाल पर उन्होंने कहा कि इतना ही समझ लीजिए कि लोकतंत्र पुलिस के सहारे चल रहा है और विपक्षी पार्टी को डराया धमकाया जा रहा है। आपने रामपुर में देखा मैनपुरी में समाजवादी कार्यकर्ता नेता इतने मजबूत थे। रामपुर में भी लड़े। जितनी पुलिस की जरूरत नही थी उससे ज्यादा पुलिस, इसलिए जनता को अब सामने आना पड़ेगा। जनता जब तक नही खड़ी होगी लोकतंत्र यूं ही लड़खड़ाता रहेगा। मुझे उम्मीद है जो रिजल्ट आएगा वह सपा के पक्ष में आएगा। जनता को इसी तरह खड़े रहकर लोकतंत्र को बचाना पड़ेगा। लोकतंत्र बचेगा तो संविधान सुरक्षित रहेगा। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर, डॉ राम मनोहर लोहिया ने जो रास्ता दिखाया नेता जी ने जो रास्ता दिखाया जिस रास्ते पर विजय बहादुर पाल चल रहे थे वह रास्ता मजबूत था। लोकतंत्र को बचाने के जनता को खड़ा होना पड़ेगा।

समीपवर्ती औरैया जिले के शिवरा गांव के मूल निवासी विजय बहादुर पाल 1969 में बतौर अंग्रेजी शिक्षक महात्मा गांधी इंटर कालेज मढ़पुरा में नौकरी करने आये थे और फिर यही के होकर रह गए। इंदरगढ़ में उन्होंने अपना आशियाना बनाया और 1985 में पहली बार हसेरन के ब्लॉक प्रमुख के रूप में उन्होंने अपनी राजनैतिक यात्रा शुरू की। खांटी समाजबादी और देसी अंदाज़ में अपनी बात समझाने और मनवाने के लिए अड़ जाने वाले श्री पाल ने 1995 में तत्कालीन वार्ड 16 (अब वार्ड 21) से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत कर जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर अपना दावा ठोंक दिया किन्तु कप्तान सिंह यादव के सामने उन्हें परास्त होना पड़ा। उनके इसी कार्यकाल के दौरान जिले का विभाजन हुआ और वे कन्नौज के सर्वमान्य नेता बने। 1996 में उन्होंने तत्कालीन उमर्दा विधान सभा सीट से चुनाव लड़ा किन्तु भाजपा के कैलाश सिंह राजूपत के हाथों उन्हें पराजित होना पड़ा। वर्ष 2002 के चुनाव में उन्होंने कैलाश सिंह को पराजित कर अपनी हार का बदला लिया और पहली बार विधान सभा मे अपनी आमद दर्ज कराई।

2007 का चुनाव वे कैलाश सिंह से फिर हार गए किन्तु 2012 मे उन्होने यह सीट भारी अंतर से फिर जीती और इस बार उन्हें अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार में माध्यमिक शिक्षा राज्यमंत्री बनाया गया। अपने स्वास्थ्य कारणों के चलते उन्होंने अपनी राजनैतिक विरासत अपने एकलौते पुत्र इंजी. अनिल पाल को सौंप दी। जिन्होंने बेहद मज़बूती के साथ विगत विधान सभा चुनाव में तिर्वा सीट पर सपा के टिकट पर कैलाश सिंह का मुकाबला किया हालांकि उनके हिस्से में मामूली अंतर से पराजय ही आयी।

शिक्षाविद के रूप में विजय बहादुर पाल ने अपनी भूमिका मज़बूती से निभाते हुए इंदरगढ़ में क्रांतिकारी शिक्षा सदन की स्थापना की।

उनके निधन पर सारे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी और क्षेत्रीय अधिवक्ताओं ने अपना पूर्व घोषित आंदोलन उनके सम्मान में एक दिन के लिए स्थगित कर दिया।

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