यूपी के सरकारी अस्पतालों में एमआरआई सुविधा देने की तैयारी

लखनऊ। (आवाज न्यूज ब्यूरो) यूपी में जिला एवं संयुक्त राजकीय अस्पतालों में मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) सुविधा देने की तैयारी है। पहले चरण में नौ जिला अस्पताल को इस सुविधा के लिए चुना गया है। महानिदेशालय ने इस संबंध में शासन को प्रस्ताव भेज दिया है। अभी तक यह सुविधा सिर्फ प्रयागराज और कानपुर में है। इस सुविधा के शुरू होने से मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।
प्रदेश में करीब 12 हजार से ज्यादा सरकारी अस्पताल हैं, जिसमें 178 जिला एवं संयुक्त चिकित्साल हैं। इसमें हर दिन करीब डेढ़ लाख से ज्यादा मरीज पहुंचते हैं। इसमें करीब तीन से चार हजार मरीजों को एमआरआई की जरूरत पड़ती है। खासतौर से दुर्घटनाग्रस्त मरीजों में इसकी जरूरत ज्यादा होती है। सरकारी अस्पतालों की स्थिति देखें तो अभी तक यह सुविधा सिर्फ टीबी सप्रू अस्पताल प्रयागराज और यूएचएम कानपुर में है। अब सरकार की ओर से नौ सरकारी अस्पतालों में एमआरआई की सुविधा देने की तैयारी है।
इसके लिए आजमगढ़, बांदा, गौतमबुद्ध नगर, मुरादाबाद, मेरठ, सहारनपुर, गोंडा, गाजियाबाद और लखनऊ को चुना गया है। इन अस्पतालों में एमआरआई की सुविधा होने से आसपास के जिलों के मरीजों को भी राहत मिलेगी। वे बड़े महानगरों में जाने के बजाय पड़ोस के जिलों में जाकर जांच करा सकेंगे। निदेशक (स्वास्थ्य एवं उपचार) डा. केएन तिवारी का कहना है कि एमआरआई मशीन लगाने का प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है।
प्रदेश में एमआरआई जांच की कीमत करीब चार हजार से लेकर 10 हजार तक है। कीमत इस बात पर निर्भर करती है कि एमआरआई किस और कितने हिस्से की होनी है। ऐसे में जिला अस्पतालों में एमआरआई सेंटर खोलकर इसे न्यूनतम दर पर मरीजों को सुविधा देने की तैयारी है। इसके लिए सरकार पीपीपी मॉडल पर खुलने वाले सेंटर को आर्थिक सहयोग करेगी। इस बात पर भी मंथन चल रहा है कि एमआरआई की सुविधा पूरी तरह से निशुल्क रखी जाए अथवा कुछ शुल्क निर्धारित किया जाए।
जिला अस्पतालों में एमआरआई की सुविधा नहीं होने से मरीज लखनऊ, आगरा, कानपुर, गोरखपुर, प्रयागराज आदि मेडिकल कॉलेजों में रेफर हो जाते हैं। तमाम मरीजों को सिर्फ एमआरआई के लिए मेडिकल कॉलेजों की दौड़ लगानी पड़ती है। ऐसे में यहां एक से दो माह की वेटिंग हो जाती है। एसजीपीजीआई में इमरजेंसी वाले मरीजों को छोड़ दें तो सामान्य मरीजों को दो माह की वेटिंग मिल रही है। यही स्थिति केजीएमयू की भी है। ऐसे में मरीजों को महंगे दर पर निजी केंद्रों पर जांच करानी पड़ती है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
प्रदेश के मरीजों को उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा सुविधा देने के लिए निरंतर प्रयास किया जा रहा है। संसाधन बढ़ाए जा रहे हैं। डायलिसिस, पैथोलॉजी, सिटी स्कैन आदि की सुविधा देने के साथ ही एमआरआई पर भी विचार चल रहा है।
-पार्थ सारथी सेन शर्मा, प्रमुख सचिव, चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
क्यों जरूरी है एमआरआई
केजीएमयू के रेडियोडायग्नोसिस विभागाध्यक्ष प्रो अनित परिहार का कहना है कि चिकित्सा विज्ञान में एमआरआई महत्वपूर्ण है। इसके जरिए शरीर के अंगों और ऊतकों की आंतरिक वास्तविक स्थिति की जानकारी मिल जाती है। इसके जरिए ब्रेन, स्पाइन, स्पोर्ट्स इंजरी, यूट्रस से जुड़ी बीमारियों की सटीक जानकारी मिल जाती है। ट्यूमर, संक्रमण, नसों में रक्त आपूर्ति की स्थिति आदि का सटीक आकलन किया जा सकता है।

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