घोसी उपचुनाव में बसपा सुप्रीमो मायावती की होगी अहम भूमिका

लखनऊ । (आवाज न्यूज ब्यूरो) यूपी के घोसी विधानसभा सीट पर 5 सितंबर को उपचुनाव के लिए वोटिंग होगी। घोसी उपचुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने पूरी ताकत झोंक दी है। वहीं दूसरी तरफ बसपा सुप्रीमो मायावती की इस चुनावी मैदान में अहम भूमिका होगी। बीजेपी ने दारा सिंह चौहान को उम्मीदवार बनाया है, वहीं सपा ने सुधाकर सिंह को टिकट दिया है, जबकि बीएसपी ने प्रत्याशी नहीं उतारा है।
राजनीतिक दलों के आंकड़ों के मुताबिक घोसी विधानसभा क्षेत्र में कुल 4,30,452 मतदाता हैं। इनमें लगभग 65 हजार दलित और 60 हजार मुसलमान मतदाता हैं। इसके अलावा 40 हजार यादव, 40 हजार राजभर, 36 हजार लोनिया चौहान, 16 हजार निषाद और बाकी पिछड़ी जातियां हैं। इसका मतलब है कि इस सीट पर ओबीसी और ठाकुर समुदाय के अलावा मुस्लिम मतदाता भी काफी अच्छी संख्या में हैं। ऐसे में बीजेपी ने ओबीसी पर तो सपा ने ठाकुर पर दांव लगाया है।
बीएसपी की पकड़ ज्यादातर दलित और कुछ मुस्लिम वोटरों पर हैं। ऐसे में मायावती के उम्मीदवार नहीं उतारने से ये वोटर सपा के साथ शिफ्ट हो सकते हैं। वहीं ज्यादातर यादव और मुस्लिम के वोट एक तरीके से सपा के साथ हैं। सपा के ठाकुर उम्मीदवार उतारने से सवर्ण समाज के कुछ वोटर भी उनके साथ जुड़ सकते हैं। इसका मतलब है कि सपा के खाते में अच्छी संख्या में दलित, यादव और मुस्लिम वोट पड़ सकते हैं, जो निर्णायक साबित हो सकते हैं। साथ ही 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में सपा ने बीएसपी के मैदान में रहते हुए भी बीजेपी को हराया था। यही वजह है कि मायावती के फैसले से सपा, बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर सकती है।
दूसरी तरफ सपा के सामने संकट यह है कि बीएसपी के प्रत्याशी नहीं उतारने की वजह से दलित वोट बीजेपी के साथ भी जा सकता है। वहीं बीजेपी के ओबीसी पर दांव की वजह से दूसरी पिछड़ी जातियों का वोट भी उन्हें मिल सकता है। इसके अलावा ओम प्रकाश राजभर के एनडीए में शामिल होने का लाभ भी बीजेपी को मिल सकता है। इस सीट पर लगभग 40 हजार राजभर वोट हैं, जो ज्यादातर बीजेपी के पाले में जा सकता है। यही नहीं दारा सिंह चौहान ने जिस भी पार्टी से चुनाव लड़ा है, जीत मिली है।
2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में दारा सिंह चौहान ही सपा की टिकट पर यहां से विधायक बने थे, वहीं सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह यहां से 2017 और 2019 के उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी से हार चुके हैं। सुधाकर सिंह 1996 में नत्थूपुर और परिसीमन के बाद घोसी विधानसभा क्षेत्र से 2012 में विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। ऐसे में इन जातियों के मत कमल पर पड़ने के बाद सपा के उम्मीदवार के लिए समस्या खड़ी हो सकती है।
यही नहीं विपक्षी दलों के बने ‘इंडिया’ गठबंधन का भी घोसी विधानसभा चुनाव में लिटमस टेस्ट होगा। साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए भी विपक्षी एकता का एक मंच तैयार करने के लिए बने इंडिया गठबंधन के लिए घोसी उपचुनाव काफी अहम है। घोसी उपचुनाव में सपा के ‘पीडीए’ की भी पहली परीक्षा होगी। अखिलेश यादव की पीडीए फॉर्मूला में पिछड़े वर्ग, दलित और अल्पसंख्यक वोटर्स आते हैं। अब देखना होगा कि घोसी उपचुनाव में सपा सीट बचा पाती है या बीजेपी वापसी करेगी।

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