बृजेश चतुर्वेदी
कन्नौज। (आवाज न्यूज ब्यूरो) उत्तर प्रदेश की कन्नौज सीट अब हॉट सीट हो गई है। यहां खुद सपा प्रमुख अखिलेश यादव चुनावी मैदान में उतर गए हैं। इस सीट पर कैंडिडेट घोषित करने के तीसरे दिन उन्होंने यह फैसला लिया। इससे पहले अखिलेश ने चुनाव की घोषणा के बाद 40 दिन तक मंथन किया। फिर अपने भतीजे तेज प्रताप यादव को कन्नौज से प्रत्याशी घोषित किया था।
अब बड़ा सवाल यह है कि टिकट देने के तीन दिन बाद आखिर ऐसा क्या हुआ कि अखिलेश को अपना फैसला बदलना पड़ा? अखिलेश को खुद चुनावी मैदान में क्यों आना पड़ा? तेज प्रताप की टिकट क्यों काटी गई…?
आइए सिलसिलेवार तरीके से आपको बताते हैं।
कन्नौज सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। वर्ष 1999 से 2019 तक हुए 7 लोकसभा चुनाव में से 6 बार यहां यादव परिवार का कब्जा रहा है।
स्व. मुलायम ने इस सीट को जीतने के बाद 1999 में इसे बेटे के लिए छोड़ दिया। इसके बाद अखिलेश 3 बार यहां से सांसद बने।
जब अखिलेश 2012 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए, तब उन्होंने अपनी पत्नी डिंपल को यह सीट सौंप दी। डिंपल यहां से दो बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचीं।
2019 में डिंपल सिर्फ 12,353 वोटों से हारी थीं। तब भी यही कहा गया कि यहां भाजपा नही जीती बस सपा हारी है। अखिलेश अब दोबारा इस सीट को बीजेपी के खाते में नहीं जाने देना चाहते हैं।
22 अप्रैल को समाजवादी पार्टी ने मुलायम सिंह के पोते और अखिलेश के भतीजे को कन्नौज से प्रत्याशी घोषित किया।
23 अप्रैल को तेज प्रताप के कन्नौज जाने का कार्यक्रम घोषित किया गया। लेकिन, इंटरनल विरोध के चलते तेज प्रताप ने अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिया।
23 अप्रैल को ही तेज प्रताप के नॉमिनेशन के लिए नामांकन पत्र खरीदे गए। इसी बीच कुछ सपाइयों ने 7 सेट खरीदे। तभी से यह माना जाने लगा कि अखिलेश यहां से चुनाव लड़ सकते हैं।
तेज प्रताप के नाम पर कार्यकर्ताओं में नाराजगी
22 अप्रैल को तेज प्रताप यादव का नाम कन्नौज से चुनाव लड़ने के लिए घोषित किया गया था। इस नाम की घोषणा के साथ ही ये कयास बंद हो गए थे कि अखिलेश कन्नौज से चुनाव लड़ेंगे। लेकिन, इस नाम की घोषणा के साथ ही कन्नौज में कार्यकर्ताओं में नाराजगी शुरू हो गई। जब सपा जिलाध्यक्ष सौरिख में कार्यालय का उद्घाटन करने पहुंचे, तो यहां सपा कार्यकर्ताओं और जिलाध्यक्ष कलीम खां में तीखी नोकझोंक हुई।
कार्यकर्ताओं का आरोप था कि जिलाध्यक्ष ने कन्नौज सीट की सही रिपोर्ट अखिलेश के पास तक नहीं भेजी। वरना, वो खुद चुनाव लड़ते हालांकि, जिलाध्यक्ष ने यह कहा कि कुछ कार्यकर्ताओं ने अपने सुझाव दिए हैं, जिन्हें अखिलेश यादव के पास भेजा जाएगा। वहीं, सैफई परिवार के लोग भी तेज प्रताप के नाम पर सहमत नहीं थे।
तेज प्रताप के खिलाफ लखनऊ पहुंचा सपा का डेलिगेशन
समाजवादी पार्टी की ओर से 22 अप्रैल को तेज प्रताप यादव का नाम घोषित किया गया। इसके बाद 23 अप्रैल को ही कन्नौज में उनका एक कार्यक्रम तय किया गया। सभी तैयारियां चल रही थीं, लेकिन आंतरिक विरोध के डर से तेज प्रताप यादव कन्नौज नहीं आये। हुआ इसके उलट। कन्नौज से सपा कार्यकर्ताओं का एक डेलिगेशन लखनऊ के लिए उसी दिन रवाना हो गया।
पिछले दो दिनों से वो लोग यहां अखिलेश यादव को सीट का फीडबैक दे रहे थे। सैफई परिवार से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि लोकल विरोध के चलते अखिलेश मान गए। अब नामांकन के अंतिम दिन आज वे पर्चा दाखिल करेंगे
तेज प्रताप का लोकल कनेक्ट नही
सपा के घोषित प्रत्याशी तेज प्रताप यादव का कन्नौज से कोई लोकल कनेक्ट नहीं है। यहां का कार्यकर्ता सीधे अखिलेश यादव के टच में है और पिछले दो दिनों से वो लोग यहां अखिलेश यादव को सीट का फीडबैक दे रहे थे। यहां का कार्यकर्ता सीधे अखिलेश यादव के टच में है और वह पार्टी मुखिया से ही जुड़ा रहना चाहते हैं। ताकि यूपी की सत्ता में सपा के आने पर कार्यकर्ताओं को मजबूती मिल सके।
अखिलेश पहली पसंद दूसरी डिम्पल
सैफई परिवार में कन्नौज के लोग या तो अखिलेश यादव को पसंद करते हैं या फिर उनकी पत्नी डिंपल यादव को हालांकि, कार्यकर्ताओं का यह मानना है कि डिंपल पिछली बार चुनाव हार गई थीं इसलिए अखिलेश ही इस सीट को बचा सकते हैं।
सपा में बड़ी फूट को अखिलेश ही पाट सकते
कन्नौज में कई दिग्गज सपा नेता पार्टी में इस समय हाशिये पर हैं। सपा का बड़ा चेहरा माने जाने वाले नवाब सिंह यादव, तालग्राम क्षेत्र के पूर्व चेयरमैन दिनेश सिंह यादव, पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष के पति संजू कटियार, एडवोकेट राकेश तिवारी इस समय पार्टी में सबसे किनारे पड़े हैं। एक दौर था जब ये लोग अखिलेश के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते थे।
अखिलेश यादव को ऐसे कई चेहरे एक करने हैं, जो पार्टी को इस लोकसभा चुनाव में जीत दिलवा सकें। अखिलेश यादव ने यहां से लड़ने का फैसला इसलिए भी लिया कि इन नाराज लोगों को एक किया जा सके। तेज प्रताप में इतना कैलिबर नहीं था कि वो इन सब को एक कर सकें।
कन्नौज की जीत 25 वि स सीटें करेगी प्रभावित
अखिलेश यादव ने यहां से चुनाव लड़ने का फैसला इसलिए भी लिया है कि अखिलेश यादव अगर कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव जीत जाते हैं तो उन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना होगा। वह नेता प्रतिपक्ष का पद अपने चाचा शिवपाल यादव को दे सकते हैं। अगले विधानसभा चुनाव तक वो दिल्ली में सक्रियता दिखाएंगे। 2027 का चुनाव आने से पहले इस्तीफा देकर फिर से मैदान में आ जाएंगे। जैसा उन्होंने 2012 में किया था, तब उन्होंने कन्नौज से डिंपल यादव को उतार दिया था। वह चुनाव जीत भी गई थीं।
इस्तीफा देकर बाइ-इलेक्शन करवा सकते हैं
चुनाव परिणाम के बाद अगर अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में सम्माजनक सीटें जीत जाते हैं। इंडिया गठबंधन का प्रदर्शन ठीक रहता है, तो वह कन्नौज लोकसभा सीट से इस्तीफा दे सकते हैं। यहां बाई इलेक्शन करवाकर परिवार के किसी सदस्य को इस सीट पर लॉन्च कर देंगे। इससे पार्टी में एक जुटता भी हो जाएगी और नए कैंडिडेट को लोग स्वीकार भी कर लेंगे।
कन्नौज सीट का जातीय समीकरण
कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में कुल वोटर्स की संख्या 19 लाख 82 हज़ार 589 है । इसमें 10 लाख 61 हज़ार पुरुष और 9 लाख 21 हज़ार महिला वोटर हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक इस लोकसभा सीट पर मुस्लिम और यादव मतदाता अच्छी संख्या में हैं। मुस्लिम वोटर्स की संख्या 3.56 लाख है जबकि यादव वोटर्स की संख्या लगभग 2.78 लाख है। इसके अलावा 6 लाख दलित वोटर भी हैं जबकि इस क्षेत्र में ब्राह्मण 15 फीसदी और राजपूत 10 फीसदी हैं और इनकी संख्या तीन लाख अनुमानित हैं। इसलिए यह समीकरण भी सपा के पक्ष में जाता है।