आजादी से अमृत महोत्सव तक की यात्रा में कई बार टूटा बिखरा, निखरा और फिर देश की सबसे बड़ी पंचायत (लोकसभा)से साफ हो गया। अब तो तहसील के रूप में मेरे अस्तित्व पर संकट के काले बादल छाए जा रहे हैं। एक बड़ा प्रश्न यह भी है कि 2026 में होने वाले परिसीमन में मैं (बिल्हौर)विधान सभा के रूप में भी बचूंगा या खत्म होकर इतिहास के पन्नो में ही रह जाऊंगा।
पहले मैं फुटबॉल के रूप में नगर और देहात जिले के बीच उछाला गया। कानपुर महानगर का हिस्सा बनने के बाद भी मेरी अदालतें देहात माती में ही रह गईं।सरकार के आदेश के बावजूद मेरी अदालतें आज तक कानपुर वापस नहीं आ पाईं। मुझे मुंसिफ से डीजे तक मिलने के लिए उस माती को जाना पड़ता है, जहां के लिए रोडवेज की सीधी बस भी आज तक नहीं चल पाई। कई बार मेरे वहां पहुंचने से पहले वारंट जारी हो जाते हैं। मुंसिफ अदालत मेरे लिए सपना है। ग्राम न्यायालय खुली तो पिछले 6 माह से खाली थी। माती से कानपुर, अदालतों के वापस आने के लिए भी मेरे वकील भी जूझते रहे। कभी सपा सरकार और निरंकुश अधिकारियों के सामने मेरे वकीलों ने सालों काम बंद रखा था। अब तो तहसील के रूप में मुझे अपना अखंड रहना मुश्किल दिख रहा है। मेरे 144 गांव काटकर दूसरी तहसील में भेजने का खेला हो रहा है। इस खेला को रोकने का झेला, लगा के मेला, अड़ा के ठेला किसी में नहीं दिख रहा है। आंदोलन के नाम पर खिलवाड़, उठापटक, सीनियर का अपमान, चंदेबाजी और नशाखोरी से तो आम वकील भी दुखी है। मेरे बिल्हौर पर संकट के बादल छाए हैं लेकिन वकीलों के आंदोलन के साथ शिक्षक, पत्रकार, प्रधान, व्यापारी, किसान रिटायर्ड कर्मी कोई नहीं जुटा।न्यायिक तहसीलदार और न्यायिक एसडीएम की खाली कुर्सियां मुझे चिढ़ाती हैं। राजस्व संहिता और सरकार के आदेशों के बावजूद मेरी तहसील अदालतों में चल रहे मुकदमे निर्णय नहीं तारीख बांट रहे हैं। कमिश्नरेट बनी तो दरोगा भी हमारे लिए कमिश्नर बन गया। जो काम पहले पहले आराम से होता था अब काम तमाम से होता है। पहले 151 की बेल बिल्हौर तहसील में होती थी अब एसीपी पनकी के यहां। एक अदद खेल के मैदान और स्टेडियम के इंतजार में मेरे बच्चे सुबह 4 बजे ट्रकों के धुएं के बीच दौड़ते हैं।हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट के कोच से अंतराष्ट्रीय योग दिवस मनाने वाले मेरे बिल्हौर में योगा का भी कोई निशुल्क प्रशिक्षण संस्थान नहीं है। जब छोटे शहरों में हवाई अड्डों की बातें हो रहीं हैं और बस अड्डे फाइव स्टार मॉल से बन रहे हैं,तब मेरे बिल्हौर, शिवराजपुर, चौबेपुर में बसें रात के अंधेरे में लुटने के लिए यात्रियों को हाइवे के बाईपास पर अपमान, अविश्वास और विकास के चौराहे पर उतार आगे बढ़ जाती हैं। मैं आजादी के 75 साल बाद भी बस अड्डा नहीं तो चेक पोस्ट के लिए शून्य में ताक रहा हूं। ट्रेन का हाल तो और बुरा है। मेरे सांसद ने बिल्हौर स्टेशन पर कुछ ट्रेनों को रुकवा दिया है लेकिन अगर रावतपुर या कल्याणपुर वे नहीं रुकेंगी,तो क्या पहले अनवरगंज जाना पड़ेगा फिर लौटना? बिल्हौर 4 हाइवे के मुहाने पर खड़ा हूं मैं लेकिन ट्रामा सेंटर कौन कहे मेरे अस्पतालों में नई खरीद कर आईं एक्सरे मशीन पेटी के बाहर नहीं निकल पाईं हैं। मेरे घायल बच्चे मरहम पट्टी के बाद रिफर स्लिप ले कानपुर दौड़ लगाते हैं। मैं चिल्ला रहा हूं, बगल के कन्नौज में 7 अल्ट्रासाउंड और तीन पोर्टेबल एक्सरे नई बंद रखी हैं ,जिम्मेदारों तक मेरी चीख नहीं पहुंच पा रही है। अटल आवासीय विद्यालय ने मेरे आंसू पोंछे हैं लेकिन सेंट्रल स्कूल और अच्छे प्राइवेट कॉन्वेंट स्कूलों के अभाव में सक्षम लोग मुझे छोड़ बच्चों की पढ़ाई के लिए कानपुर चले जाते हैं और छोड़ जाते हैं खाली घर और बूढ़े मां बाप। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लाखों करोड़ के प्रोजेक्ट और युपिडा की विकास यात्रा का कोई पड़ाव मेरे बिल्हौर पर नहीं पड़ पा रहा है। चौबेपुर में 4 दशक पूर्व शुरू हुए कारखानों में बंद होने की होड़ है और औरोंताहरपुर औद्योगिक केंद्र स्थापना के तीस साल बाद भी एक फैक्ट्री का फीता नहीं काट पाया है। मेरे बच्चे सूरत से गोवा तक घर छोड़ नौकरी और आइस क्रीम बेंचने बाहर जाने को विवश हैं। खनन से मेरी खाल छिली जा रही है। सड़कें गड्ढे बन गई हैं। सरोवर सरकार ने तो खुदवा दिए लेकिन उनमें अमृत रूपी जल लाने के लिए प्रमुख, बीडीओ, प्रधान कोई भगीरथ बनने को तैयार नहीं है। *मैं बिल्हौर*कभी कभी सोचता हूं कि मेरी इस दशा का जिम्मेदार कौन है? वह अफसर जिनको विकास की गंगा बहाने को तैनात किया गया है या वे जनप्रतिनिधि जो विकास के सतरंगी सपने दिखा मेरे बच्चों के वोट लेते हैं या वे प्रौढ़ और नवयुवा जो अग्रणी पंक्ति में रह जनप्रतिनिधियों के आगे पीछे नाचते हैं या वे वकील, पत्रकार ,शिक्षक जो अपने को बुद्धिजीवी मानते हैं। शायद हां लेकिन उससे भी बड़ी जिम्मेदारी हमारी है। हर आम आदमी की हर बिल्हौर वासी की जो अपने क्षेत्र के विकास की नई पीढ़ी के भले की योजनाओं की जिम्मेदारी दूसरों के भरोसे छोड़ खुद आराम की नींद सो रहा है। घर घर मोदी के असली माने को समझना होगा।”सबका साथ सबका विकास… में सबका प्रयास भी है। यही हमारी जिम्मेदारी है। हम जगेंगे तो दुनिया हमारी तरफ ध्यान देगी। आईए मुझे (बिल्हौर) को विकास के हाइवे पर ले जाने के लिए एक कदम आप भी बढ़ाइए। मेरी नियति से इंतजार खत्म हो इसका मैं इंतजार कर रहा हूं।
*मैं हूं 2024 का बिल्हौर*
बृजेश चतुर्वेदी