ब्रजेश चतुर्वेदी
कन्नौज।(आवाज न्यूज ब्यूरो) पहला और सबसे बड़ा बदलाव ये है कि जिन लोगों ने धर्म परिवर्तन करके इस्लाम धर्म अपनाया है और जिन्हें मुसलमान बने पांच साल पूरे नहीं हुए हैं, वो लोग वक्फ को अपनी सम्पत्ति दान में नहीं दे पाएंगे और इससे धर्म परिवर्तन करा कर वक्फ को अपनी सम्पत्ति दान के मामलों पर रोक लगेगी।
’दूसरा- कोई भी व्यक्ति उसी ज़मीन को दान में दे पाएगा, जो उसके नाम पर रजिस्टर्ड होगी। अगर कोई व्यक्ति किसी और के नाम पर रजिस्टर्ड ज़मीन को दान में देता है तो इसे गैर-कानूनी माना जाएगा और वक्फ भी ऐसी सम्पत्तियों पर अपना दावा नहीं कर पाएगा।
तीसरा-’वक्फ-अल-औलाद’ के तहत महिलाओं को भी वक्फ की ज़मीन में उत्तराधिकारी माना जाएगा। जिस परिवार ने वक्फ की ज़मीन ’वक्फ- अल-औलाद’ के लिए दान में दी है, उस ज़मीन से होने वाली आमदनी सिर्फ उन परिवारों के पुरुषों को नहीं मिलेगी बल्कि इसमें महिलाओं का भी हिस्सा होगा।
चौथा- वक्फ में दी गई ज़मीन का पूरा ’’ब्यौरा’’ ऑनलाइन पोर्टल पर 6 महीने के अंदर अपलोड करना होगा और कुछ मामलों में इस समय अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है।
लेकिन बड़ा बदलाव ये है कि अब वक्फ में दी गई हर जमीन का ऑनलाइन पोर्टल पर डाटाबेस होगा और वक्फ बोर्ड इन सम्पत्तियों के बारे में किसी बात को छिपा नहीं पाएगा।
किस ज़मीन को किस व्यक्ति ने दान में दिया। वो ज़मीन उसके पास कहां से आई। वक्फ बोर्ड को उससे कितने पैसे की आमदनी होती है। और उस सम्पत्ति की देख-रेख करने वाले ’मुतव्वली’ को कितनी तनख्वाह मिलती है, ये जानकारी ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध होगी
इससे वक्फ की सम्पत्तियों में पारदर्शिता आएगी और वक्फ को होने वाला नुकसान कम होगा। उदाहरण के लिए, मार्च 2019 में वक्फ को अपनी 8 लाख 72 हज़ार सम्पत्तियों से सालाना 151 करोड़ रुपये की आमदनी होती थी, जो पांच साल बाद मार्च 2024 में सिर्फ 1 करोड़ 30 लाख रुपये रह गई। और वक्फ आज तक ये नहीं बता पाया है कि ऐसा कैसे संभव है कि उसे अपनी एक सम्पत्ति से हर महीने सिर्फ एक रुपये की आमदनी हो रही है?
पांचवां बड़ा बदलाव ये है कि जिन सरकारी सम्पत्तियों पर वक्फ अपना अधिकार बताता है, उन सम्पत्तियों को पहले दिन से ही वक्फ की सम्पत्ति नहीं माना जाएगा। इसके बाद भी अगर ये दावा किया जाता है कि कोई सरकारी सम्पत्ति वक्फ की है तो ऐसी स्थिति में राज्य सरकार एक नामित अधिकारी से जांच कराएगी और ये कलेक्टर रैंक से ऊपर का अधिकारी होगा। अगर इस रिपोर्ट में वक्फ का दावा गलत निकलता है तो सरकारी सम्पत्ति का पूरा ब्यौरा राजस्व अभिलेख में दर्ज किया जाएगा और ये सरकारी सम्पत्ति वक्फ की नहीं मानी जाएगी।
ये नियम उन सरकारी सम्पत्तियों पर भी लागू होगा, जिन पर पहले से वक्फ का दावा और कब्जा है। कोई अन्य सम्पत्ति या ज़मीन वक्फ की है या नहीं, इसकी जांच कराने के लिए राज्य सरकार को ज़रूरी अधिकार दिए गए हैं। इससे सबसे बड़ा बदलाव ये आएगा कि वक्फ बिना किसी दस्तावेज और सर्वे के किसी ज़मीन को अपना बताकर उस पर कब्जा नहीं कर सकेगा।उदाहरण के लिए, वक्फ बोर्ड किसी गांव की ज़मीन को अपना बताता है तो ऐसे मामलों में वक्फ के दावों की जांच होगी और अगर वक्फ सबूत नहीं दे पाया तो उसका दावा खारिज हो जाएगा।
मौजूदा कानून में वक्फ के दावे को बिना जांच के सही मान लिया जाता है और जिस व्यक्ति की ज़मीन पर दावा होता है, उसे ही वक्फ की अदालत में जाकर इसे अपनी सम्पत्ति साबित करना होता है।
छठा- केन्द्रीय वक्फ परिषद में दो गैर मुस्लिम व्यक्ति और दो मुस्लिम महिलाओं को भी जगह दी जाएगी। इसके अलावा परिषद में नियुक्त किए गए सांसद और पूर्व जजों का भी मुस्लिम होना आवश्यक नहीं होगा। सरकार का कहना है कि इससे वक्फ में पिछड़े और गरीब मुसलमानों को भी जगह मिलेगी और वक्फ में मुस्लिम महिलाओं की भी हिस्सेदारी होगी। राज्यों के वक्फ बोर्ड में भी दो मुस्लिम महिलाएं और दो गैर-मुस्लिम सदस्य ज़रूर होंगे और शिया, सुन्नी और पिछड़े मुसलमानों से भी एक- एक सदस्य को जगह देना अनिवार्य होगा।
इनमें बोहरा और आगाखानी समुदायों से भी एक-एक सदस्य होना चाहिए और ये वो समुदाय हैं, जिनकी संख्या बहुत कम है और जो बाकी मुसलमानों से अलग होते हैं क्योंकि ये ना तो दिन में पांच वक्त की नमाज़ पढ़ते हैं और ना ही हज की यात्रा पर जाते हैं।
सातवां- सरकार ने इन दोनों मुस्लिम संप्रदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड बनाने का भी प्रावधान इस कानून में जोड़ा है।
आठवां- लोगों के पास वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ 90 दिनों में रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट और हाई कोर्ट में अपील दायर करने का अधिकार होगा, जो मौजूदा कानून में नहीं है।
नौवां- केन्द्र और राज्य सरकारों के पास वक्फ के खातों का ऑडिट कराने का अधिकार होगा, जिससे किसी भी तरह की बेईमानी और भ्रष्टाचार को रोका जा सकेगा।
दसवां बदलाव ये है कि वक्फ बोर्ड सरकार को कोई भी जानकारी देने से इनकार नहीं कर सकता और वक्फ बोर्ड ये भी नहीं कह सकता कि कोई ज़मीन आज से 200-300 या 500 साल पहले किसी इस्लामिक काम के लिए इस्तेमाल हो रही थी तो वो ज़मीन उसकी है।
ये मनमानी अब इस नए बिल से समाप्त हो जाएगी।
मौजूदा कानून में केन्द्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड के बाद वक्फ ट्रिब्यूनल आते हैं और ट्रिब्यूनल का फैसला ही अंतिम होता है लेकिन इस बिल के पास होने के बाद सिविल कोर्ट, रेवेन्यू कोर्ट और हाई कोर्ट में भी वक्फ के मामलों की सुनवाई हो सकेगा।
