भाजपा और आरएसएस ने मिलकर ढूंढ निकाला सपा के पीडीए का तोड़

अम्बेडकर जयंती पर दलित वोट बैंक में लगाएंगे सेंध. ‘मिशन 27’ के लिए लड़ेंगे आर-पार की लड़ाई

बृजेश चतुर्वेदी

लखनऊ।(आवाज न्यूज ब्यूरो)  डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती इस बार केवल श्रद्धांजलि का अवसर नहीं, बल्कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ  के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक अभियान का मंच बन गई है। 13 से 25 अप्रैल तक दलित समुदाय के बीच प्रभाव बढ़ाने के उद्देश्य से भाजपा और संघ मिलकर साझा कार्यक्रमों की श्रृंखला चला रहे हैं। इसके ज़रिए वे संविधान और आरक्षण खत्म करने जैसे विपक्षी दलों के आरोपों को नकारने का प्रयास कर रहे हैं।

दलित बस्तियों में गहराई से पैठ बनाने की रणनीति

संघ और भाजपा के कार्यकर्ता इस बार महज औपचारिक आयोजन तक सीमित नहीं रहेंगे। वे सीधे दलित बस्तियों तक पहुंचने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इन इलाकों में जाकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) पर आरक्षण विरोधी रवैये का आरोप लगाते हुए वर्तमान सरकार की उपलब्धियां गिनाई जाएंगी। भाजपा की कोशिश है कि दलित समुदाय को बताया जाए कि मोदी और योगी सरकारों ने उनके हित में ऐतिहासिक काम किए हैं।

अम्बेडक़र मैराथन का आयोजन

इस पहल के तहत भाजपा की ओर से पहली बार ‘अंबेडकर मैराथन’ का आयोजन रविवार को लखनऊ में किया गया, जो 1090 चौराहे से शुरू होकर केडी सिंह बाबू स्टेडियम तक चली। प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह और भाजपा नेता नीरज सिंह के नेतृत्व में आयोजित इस मैराथन में अनुसूचित जाति के 4,000 से अधिक युवाओं की भागीदारी का दावा किया गया है। इस मैराथन का उद्देश्य सिर्फ खेल नहीं, बल्कि एससी वर्ग के युवाओं को भाजपा से जोड़ना और उन्हें यह संदेश देना है कि पार्टी हर मोर्चे पर उनके साथ है।

संघ की पहलः सामाजिक समरसता और बिचार गोष्ठियों की योजना

आरएसएस की ओर से इस बार डॉ. अंबेडकर की जयंती पर कई जिलों में पथ संचलन आयोजित किए जा रहे हैं। इनमें बहराइच, श्रावस्ती, लखनऊ और अंबेडकरनगर जैसे प्रमुख जिले शामिल हैं। पथ संचलन के जरिए बाबा साहब के जीवन, संविधान निर्माण में उनके योगदान और सामाजिक समरसता के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया जाएगा।

संघ के सामाजिक सरसता विभाग की ओर से आज  13 अप्रैल को बाबा साहब की मूर्तियों और स्मारकों की साफ-सफाई अभियान चलाया गया जबकि 14 अप्रैल को फूल अर्पित कर श्रद्धांजलि दी जाएगी। इसके अलावा कॉलेजों में विचार गोष्ठियां आयोजित कराई जा रही हैं, जहां बाबा साहब के विचारों पर निबंध, भाषण और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं कराई जा रही हैं। विजेताओं को सम्मानित भी किया जाएगा।

दलित बस्तियों में ‘समरसता सहभोज’ का आयोजन भी संघ की प्रमुख योजना का हिस्सा है। इसका उद्देश्य अगड़े और पिछड़े समाज के बीच खाई को कम करना है। योजना के अनुसार सेवा बस्तियों में रहने वाले दलितों को आमंत्रित कर सामान्य वर्ग के परिवारों के साथ एकसाथ भोजन कराया जाएगा, जिससे सामाजिक समरसता का संदेश जाए।

राजनीतिक मोर्चे पर भाजपा का फोकस

भाजपा ने बाबा साहब की जयंती को लेकर 13 दिन तक चलने वाले आयोजन की योजना बनाई है, जो पार्टी के इतिहास में पहली बार हो रहा है। इस दौरान 98 संगठनात्मक जिलों में डॉ. अंबेडकर पर विचार गोष्ठियों का आयोजन किया जाएगा, जिसमें राज्य सरकार के मंत्री, सांसद, विधायक और भाजपा पदाधिकारी भाग लेंगे।

भाजपा के प्रदेश महामंत्री राम प्रताप सिंह ने बताया कि इन गोष्ठियों में कांग्रेस और सपा की भूमिका पर प्रकाश डाला जाएगा। बताया जाएगा कि कांग्रेस ने कैसे समय-समय पर अंबेडकर को कमजोर किया। उन्हें चुनाव में हराने तक का प्रयास किया जबकि भाजपा ने न केवल उन्हें सम्मान दिया, बल्कि उनकी याद में पंचतीर्थ भी स्थापित किए।

पीडीए फार्मूले से नुकसान, अब दलित वर्ग को साधने की कवायद

2024 लोकसभा चुनाव में सपा द्वारा अपनाए गए  पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले से राजपा को उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में  नुकसान उठाना पड़ा। सपा-कांग्रेस ने लगातार आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने जैसे आरोपों के जरिए भाजपा को कटघरे में खड़ा किया। इसके चलते अब भाजपा और संघ मिलकर उस नरेटिव को तोड़ने के प्रयास में जुटे हैं।

दलित प्रतिनिधित्व पर सवाल

हालांकि, भाजपा संगठन में दलित प्रतिनिधित्व को लेकर सवाल उठ रहे हैं। हाल ही में घोषित 70 जिलाध्यक्षों की सूची में केवल छह दलित नेता शामिल हैं। इस पर संगठन का पक्ष है कि ‘थोड़ा है, पर अब थोड़े की और जरूरत है।’ इसका संकेत है कि पार्टी अब इस मोर्चे पर भी सुधार की दिशा में दम उठाएगी।

संघ और भाजपा की साझा पहल का राजनीतिक अर्थ

राजनीति के जानकार मानते हैं कि भाजपा और आरएसएस की यह कवायद सिर्फ जयंती तक सीमित नहीं है, बल्कि मिशन 2027 की गहरी तैयारी है। उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से करीब 200 पर अनुसूचित जाति के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनमें से सौ से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां 5 से 10 प्रतिशत एससी वोट भी किसी पार्टी के पक्ष में शिफ्ट हो जाएं तो चुनाव परिणाम बदल सकते हैं। यही कारण है कि भाजपा और संघ दलित समाज को साधने में कोई चूक नहीं करना चाहते। अब यह कोशिश कितनी कामयाब होगी यह तो वक़्त ही बताएगा पर कोशिश की गंभीरता में कोई कमी नही रहेगी। इस कोशिश में बाकायदा योजनाबद्व ढंग से प्रशासनिक मशीनरी का भी उपयोग किया जा रहा है। मुख्य सचिव के आदेश के मुताविक गांव गांव, शहर शहर ब्लॉक, तहसील और जिला मुख्यालय अगले 15 दिन अम्बेडकर मय दिखाई देंगे।

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