‘‘अमेरिका के बोस्टन में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए बोले राहुल गांधी‘‘
नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो) कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अमेरिका के बोस्टन में भारतीय प्रवासियों को संबोधित करते हुए भारत के चुनावी तंत्र पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं और उन्होंने दावा किया कि भारत में चुनाव आयोग ने “समझौता” कर लिया है और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में मतदाता सूची में हुई असंभव बढ़ोतरी ने सिस्टम की गड़बड़ियों को उजागर किया है। राहुल गांधी ने कहा कि महाराष्ट्र में केवल दो घंटे में पैंसठ लाख मतदाताओं ने मतदान किया, जो “शारीरिक रूप से असंभव” है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी दावा किया कि राज्य में कुल वयस्क आबादी से अधिक लोगों ने मतदान किया, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े करता है। वहीं इन आरोपों ने भारतीय जनता पार्टी और चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा कर दिया है और देश में एक तीखी राजनीतिक बहस छिड़ गई है।
मीडिया में चल रही खबरों के अनुसार आपको बता दें कि राहुल गांधी ने अपने संबोधन में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि चुनाव आयोग ने शाम पांच बजकर तीस मिनट तक मतदान के आंकड़े जारी किए थे, लेकिन इसके बाद मात्र दो घंटे में पैंसठ लाख अतिरिक्त वोट दर्ज किए गए और उन्होंने जोर देकर कहा कि एक मतदाता को वोट डालने में औसतन तीन मिनट लगते हैं। इस हिसाब से इतनी बड़ी संख्या में मतदान के लिए रात दो बजे तक मतदाताओं की कतारें लगी रहनी चाहिए थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राहुल ने इसे “तार्किक रूप से असंभव” करार देते हुए सवाल उठाया कि क्या चुनाव आयोग ने जानबूझकर आंकड़ों में हेरफेर किया? इसके अलावा, राहुल गांधी ने यह भी आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में कुल वयस्क आबादी से अधिक मतदान दर्ज किया गया और उन्होंने कहा कि यह एक तथ्य है कि महाराष्ट्र में जितने लोग हैं, उससे ज्यादा वोट पड़े। यह दावा बेहद गंभीर है क्योंकि यह न केवल मतदाता सूची में अनियमितताओं की ओर इशारा करता है बल्कि यह भी सुझाता है कि फर्जी मतदान या डेटा में हेरफेर की संभावना हो सकती है।
वहीं चुनाव आयोग, जो भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का संरक्षक माना जाता है, पर राहुल गांधी के इन आरोपों ने गहरे सवाल खड़े किए हैं और उन्होंने दावा किया कि आयोग ने “समझौता” कर लिया है, जिसका मतलब है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करने में विफल रहा है। राहुल ने यह भी बताया कि जब कांग्रेस ने मतदान प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की मांग की तो न केवल इसे खारिज कर दिया गया बल्कि नियमों को ही बदल दिया गया ताकि भविष्य में ऐसी मांग न की जा सके। यह कदम पारदर्शिता के अभाव को और उजागर करता है।
चुनाव आयोग ने इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि शाम 5 बजे के मतदान आंकड़ों की तुलना अंतिम आंकड़ों से करना उचित नहीं है क्योंकि मतदान डेटा एकत्र करने की प्रक्रिया देर रात तक चलती है। आयोग ने यह भी दावा किया कि मतदाता सूची में कोई मनमाना बदलाव नहीं किया गया। हालांकि, आयोग का यह जवाब कई सवालों को अनुत्तरित छोड़ता है। उदाहरण के लिए, अगर 65 लाख वोट दो घंटे में दर्ज हुए, तो क्या आयोग के पास इसकी कोई ठोस व्याख्या है। क्या मतदान केंद्रों पर इतनी बड़ी संख्या में मतदाताओं की उपस्थिति की पुष्टि करने वाले कोई स्वतंत्र साक्ष्य हैं और सबसे महत्वपूर्ण, अगर मतदाता सूची में कोई गड़बड़ी नहीं थी तो आयोग ने वीडियोग्राफी की मांग को क्यों खारिज कर दिया?
बता दें कि राहुल गांधी के इन आरोपों पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि राहुल गांधी विदेशी धरती पर भारतीय लोकतंत्र को बदनाम कर रहे हैं और यह “देशद्रोह” के समान है। बीजेपी नेता प्रदीप भंडारी ने राहुल को “जॉर्ज सोरोस का एजेंट” तक कह डाला। यह आरोप लगाते हुए कि वह विदेशी ताकतों के इशारे पर भारत की छवि खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, बीजेपी का यह आक्रामक रुख उनके बचाव की कमजोरी को दर्शाता है। बीजेपी ने राहुल के दावों का कोई ठोस खंडन नहीं किया। न तो उन्होंने पैंसठ लाख वोटों की बढ़ोतरी पर कोई तार्किक व्याख्या दी न ही मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं पर कोई स्पष्ट जवाब दिया। इसके बजाय, पार्टी ने व्यक्तिगत हमलों और राष्ट्रवाद के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की। यह रणनीति बीजेपी की पुरानी चाल रही है। जहां वह गंभीर सवालों का जवाब देने के बजाय भावनात्मक मुद्दों को उछालकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश करती है।
वहीं महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव दो हजार चौबीस में कुल नौ करोड़ सत्तर लाख पात्र मतदाता थे जिनमें चार करोड़ सत्तानबे लाख पुरुष और चार करोड़ छियासठ हजार महिला मतदाता शामिल थे। चुनाव आयोग के वोटर टर्नआउट ऐप के अनुसार बीस नवंबर दो हजार चौबीस को हुए मतदान में बासठ दशमल बीस फीसदी मतदान दर्ज किया गया। राहुल गांधी के दावे के अनुसार, अगर दो घंटे में पैंसठ लाख वोट जोड़े गए तो यह मतदान प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। एक साधारण गणना से समझा जा सकता है कि यह कितना असंभव है। मान लीजिए, महाराष्ट्र में पचास हजार मतदान केंद्र थे। अगर पैंसठ लाख वोट दो घंटे में डाले गए तो प्रत्येक मतदान केंद्र को प्रति मिनट औसतन चौव्वन वोट दर्ज करने पड़ते यह न केवल अव्यावहारिक है बल्कि मतदान केंद्रों पर भीड़ और प्रक्रिया की गति को देखते हुए असंभव है। इसके अलावा, अगर कुल वयस्क आबादी से अधिक मतदान हुआ जैसा कि राहुल ने दावा किया तो यह मतदाता सूची में फर्जी नामों या डुप्लिकेट प्रविष्टियों की संभावना को बल देता है।
आपको बता दें कि राहुल गांधी के इन आरोपों ने भारत के लोकतांत्रिक ढांचे पर गहरी चोट की है। अगर उनके दावे सही हैं, तो यह स्पष्ट है कि चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता और स्वतंत्रता खो चुका है। एक संस्था जो देश के लोकतंत्र की रीढ़ मानी जाती है। अगर वह सत्ताधारी पार्टी के दबाव में काम करने लगे, तो यह देश के लिए खतरनाक संकेत है। वहीं बीजेपी पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए चुनावी प्रक्रिया में हेरफेर कर रही है। महाराष्ट्र में बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने दौ सौ अट्ठासी में से दो सौ तीस सीटें जीतीं। जो एक अभूतपूर्व जीत थी लेकिन अगर राहुल के दावे सही हैं तो क्या यह जीत वास्तव में जनता की इच्छा का प्रतिबिंब थी या इसमें कोई हेरफेर शामिल था?
राहुल गांधी के इन बयानों ने विपक्ष को एक नया मुद्दा दिया है। कांग्रेस ने पहले भी महाराष्ट्र चुनाव में अनियमितताओं का आरोप लगाया था और एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग से मुलाकात की थी। अब राहुल के इन गंभीर आरोपों ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाकर बीजेपी और आयोग पर दबाव बढ़ा दिया है हालांकि, बीजेपी इसे “विदेश में भारत को बदनाम करने” की साजिश बताकर जनता की सहानुभूति बटोरने की कोशिश कर रही है लेकिन यह रणनीति लंबे समय तक कामयाब नहीं हो सकती। खासकर तब जब जनता स्वयं चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाने लगे। विपक्ष को अब इस मुद्दे को व्यवस्थित रूप से उठाने की जरूरत है। स्वतंत्र जांच, डेटा विश्लेषण, और मतदाता सूची की पारदर्शी ऑडिट की मांग विपक्ष की अगली रणनीति हो सकती है।
बता दें कि राहुल गांधी के आरोपों ने भारत के लोकतंत्र के सामने एक गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। अगर महाराष्ट्र में पैंसठ लाख वोटों की असंभव बढ़ोतरी और वयस्क आबादी से अधिक मतदान जैसे दावे सही हैं तो यह स्पष्ट है कि देश की चुनावी प्रक्रिया में गहरी खामियां हैं। चुनाव आयोग की चुप्पी और बीजेपी का आक्रामक रुख इन सवालों को और गहरा रहा है। वहीं यह समय है कि चुनाव आयोग इन आरोपों का पारदर्शी जवाब दे और एक स्वतंत्र जांच का आदेश दे। बीजेपी को भी व्यक्तिगत हमलों के बजाय तथ्यों के आधार पर जवाब देना चाहिए। अगर ये आरोप सही साबित होते हैं तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय होगा और अगर ये गलत हैं, तो आयोग और बीजेपी को अपनी विश्वसनीयता साबित करने का मौका है। जनता की नजर अब इस पर टिकी है कि क्या देश का लोकतंत्र वास्तव में निष्पक्ष और पारदर्शी है या यह केवल एक दिखावा बनकर रह गया है। यह तो आने वाला वक्त तय करेगा।
