लखनऊ।(आवाज न्यूज ब्यूरो) यूपी विधानसभा चुनाव में छठे चरण के मतदान के लिए 10 जिलों की 57 सीटों पर मंगलवार को प्रचार थम गया। छठे चरण में पूर्वांचल के अंबेडकर नगर से गोरखपुर तक की सीटों पर सियासी संग्राम होना है। पांच चरणों में 292 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं। बाकी बची 54 सीटों पर सातवें और आखिरी चरण में वोट डाले जाएंगे। छठे चरण में कुल 676 प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं। छठे चरण में 11 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं। इस चरण में कुल 2,14,62,816 (दो करोड़ चैदह लाख बासठ हजार आठ सौ सोलह) मतदाता हैं। इसमें 1,14,63,113 पुरुष, 99,98,383 महिला और 1320 थर्ड जेंडर के मतदाता शामिल हैं। पिछले चुनाव में छठे चरण वाली इन 57 सीटों में से 46 सीटें बीजेपी और दो सीटें उसके सहयोगी दलों ने जीती थीं। इनमें से एक अपना दल और एक ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा ने जीती थी। तब सुभासपा और बीजेपी का गठबंधन था। इस बार सुभासपा और समाजवादी पार्टी का गठबंधन है। सुभासपा के पाला बदलने से बीजेपी की राह काफी मुश्किल हो गई है। हवा का रुख अपने पक्ष में मोड़ने के लिए चुनाव प्रचार के आखिरी दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ बीजेपी के बड़े नेताओं ने पूरी ताकत झोंकी। योगी ने छह जनसभाएं कीं। इनमें से दो गोरखपुर जिले में थी। बीजेपी की सत्ता और योगी की साख बचाने के लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने तीन तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी दो रैलियां कीं। बीजेपी के सामने पांच चरणों की तरह इसमें भी पिछले चुनाव में जीती अपनी सीटें बचाने की चुनौती है।
गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीतिक गढ़ माना जाता है। यहां से वो लगातार पांच बार लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे हैं। वो पहली बार गोरखपुर की सदर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। इस लिहाज से देखें तो योगी की असली अग्नि परीक्षा इसी चरण में होनी है। एसपी और बीएसपी ने पूर्वांचल में बीजेपी के खिलाफ जबरदस्त घेराबंदी कर रखी है। हालांकि योगी आदित्यनाथ को अपना चुनाव जीतने में कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन जीत के अंतर को बढ़ाना और जिले की बाकी सीटों पर बीजेपी का कब्जा बरकरार रखना बड़ी चुनौती है। इसी लिए बीजेपी ने यहां पूरी ताकत झोंकी है। बीजेपी के तमाम बड़े नेता गोरखपुर प्रचार के लिए आए. खुद योगी आदित्यनाथ कई बार यहां आए। अगर योगी अपनी सीट जीत जाते हैं लेकिन जिले की अन्य सीटों पर बीजेपी अपना कब्जा बरकरार नहीं रख पाती तो इससे पार्टी के साथ मुख्यमंत्री की भी काफी किरकिरी होगी।
छठे चरण में बीजेपी और एसपी दोनों ही अपने सहयोगियों के सहारे चुनावी रण जीतना चाहते हैं। इस बार बदले हुए हालात और विधानसभा चुनाव में बदले जातीय समीकरणों की वजह से बीजेपी के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। पहले ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बीजेपी के साथ थी। बीजेपी ने उसे 8 सीटें दी थीं। लेकिन इस बार वो बीजेपी का साथ छोड़कर एसपी के साथ हो गई हैं। बीजेपी ने निषाद पार्टी को अपने साथ मिला लिया है। ओमप्रकाश राजभर एसपी के साथ गठबंधन में है। एसपी ने उन्हें 20 सीटें दी हैं। पिछले चुनाव में एसपी और कांग्रेस का गठबंधन था। इस गठबंधन ने 3 सीटें जीती थीं। दो एसपी ने और एक कांग्रेस ने. इस बार अखिलेश ओमप्रकाश राजभर के सहारे बीजेपी को पटखनी देकर अपनी सीटों की संख्या बढ़ाना चाहते हैं।
योगी के कई करीबी नेताओं की सीटों पर कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। योगी सरकार में मंत्री सतीश द्विवेदी, सूर्य प्रताप शाही, उपेंद्र तिवारी, श्रीराम चैहान, जय प्रताप सिंह, जय प्रकाश निषाद और राम स्वरूप शुक्ला मुख्य हैं। इनके अलावा नेता राम गोविंद चैधरी, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय, बीएसपी छोड़ एसपी में आए लालजी वर्मा, राम अचल राजभर, पूर्व मंत्री राममूर्ति वर्मा, राज किशोर सिंह, स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू समेत कई अन्य दिग्गजों की इसी चरण में अग्नि परीक्षा होनी है। छठे चरण में पूर्वांचल के जिन जिलों में मतदान होना है वहां पर कभी बीएसपी और एसपी का वोट बैंक हुआ करता था। पिछले चुनाव में बीजेपी ने यहां पीएम मोदी के चेहरे के साथ राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मुद्दे के सहारे अपनी जगह बनाई और 2019 के लोकसभा चुनाव में भी उसे बरकरार रखा। बीजेपी के इस वर्चस्व को तोड़ने के लिए एसपी ने गैर-यादव ओबीसी आधार रखने वाले दलों से हाथ मिलाया तो बीएसपी ने जातीय समीकरण को देखते हुए उम्मीदवार उतारे हैं। इतना ही नहीं कई सीटों पर मायावती ने बीजेपी और एसपी के दलबदलुओं को टिकट देकर चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है। बहरहाल पांच साल पहले पूर्वांचल के लोगों ने जो बीजेपी से बहुत उम्मीदें लगाई थीं। उम्मीदों की कसौटी पर बीजेपी कितना खरी उतरी है इसका पता इस बार के मतदान से चलेगा।
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