देश में नौकरी पाने की आकांक्षा के बजाय अब स्टार्ट-अप और रोज़गार सृजन की ओर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। युवा उद्यमियों के नेतृत्व में देश में हज़ारों महत्त्वाकांक्षी स्टार्टअप्स को प्रेरित किया जा रहा है। हालाँकि उद्यमिता को प्रायः पुरुष प्रधान कार्यक्षेत्र समझकर महिलाओं की अनदेखी की जाती है। भारत को अपनी मजबूत अर्थव्यवस्था के लिये महिला उद्यमिता को इसके आर्थिक विकास में एक बड़ी भूमिका निभानी होगी।
संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद विश्व के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप भारत के 51 यूनिकॉर्न में से पाँच का नेतृत्व महिलाएँ कर रही हैं। महिलाओं ने फैशन, टेक्सटाइल और होममेड एक्सेसरीज जैसे क्षेत्रों के स्टार्टअप्स में वृद्धि दिखाई है। स्टार्टअप में महिला उद्यमियों के शामिल होने से अनुमान है कि भारत आने वाले वर्षों में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स से लेकर टेक्सटाइल, फूड से लेकर फुटवियर, एग्रो-प्रोडक्ट्स से लेकर ऑटोमोबाइल तक विकास की उम्मीद लेकर बढ़ेगा।
स्टार्टअप्स के तीन बुनियादी अवयव आइडिया, मेंटरशिप और फाइनेंस आज भारत में महत्त्वाकांक्षी महिला उद्यमियों के लिये इस तरह उपलब्ध हैं जैसे अतीत में कभी नहीं रहे थे। स्टार्टअप विचारों को प्रोत्साहित करने के लिये महिलाओं को मेंटरशिप कार्यक्रमों की पेशकश की जा रही है। महिला उद्यमिता कार्यक्रम के माध्यम से उनके लिये ‘इनक्यूबेशन’ और ‘एक्सिलेरेशन’ सहायता उपलब्ध कराई जा रही है। प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम के तहत महिलाओं के लिये विशेष श्रेणी के लाभ उपलब्ध हैं। ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ महिलाओं के लिये उच्च-क्षमता योजना है जो उन्हें ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करती है।
महिला उद्यमियों के लिए ‘स्टैंड अप इंडिया’ योजना संस्थागत ऋण संरचना का लाभ देती है। ‘स्त्री शक्ति योजना’ और ‘ओरिएंट महिला विकास योजना’ महिला स्वामित्व को बढ़ावा देती हैं। खानपान/कैटरिंग क्षेत्र की महिलाएं ‘अन्नपूर्णा योजना’ के माध्यम से ऋण प्राप्त कर सकती हैं। महिला उद्यमियों की चुनौतियाँ देखे तो महिला सलाहकारों की कमी अखरती है; साथी उद्यमियों को सलाह और प्रेरणा देने के लिये कमी रह जाती है। महिला-स्वामित्व वाले स्टार्टअप्स के लिये महिलाओं के लिये रोल मॉडल की कमी है जो उद्यमी महिलाओं के लिये सीखना और उनकी सहायता लेना कठिन बना देती है।
बुद्धिमत्ता क्षमताओं में धारणा यह रही है कि पुरुष नैसर्गिक रूप से अधिक तार्किक होते हैं; इस प्रकार जोखिम-युक्त उपक्रमों के लिये अधिक उपयुक्त होते हैं जबकि महिलाओं के सहानुभूतिपूर्ण होने की संभावना अधिक होती है इसलिये वे केवल कुछ निश्चित व्यवसायों के लिये उपयुक्त होती हैं। मगर ऐसा दृष्टिकोण सर्वथा अतार्किक है। बहुत सी महिलाओं में ऐसे क्षेत्रों में शीर्ष तक पहुँचने की क्षमता और महत्त्वाकांक्षा होती है प्रायः उन्हें उनके सपनों को साकार करने से वंचित कर दिया जाता है।
जब एक महिला व्यवसाय करने की इच्छा जताती है तो आम लोग, रिश्तेदार और यहाँ तक कि माता-पिता भी तुरंत ही कह देते हैं कि यह उसका क्षेत्र नहीं है। नौकरी तो कर सकती है लेकिन व्यवसाय करना उसके लिये अनुपयुक्त बताया जाता है। वित्त जुटाना और प्रबंधन करने में महिलाओं को क्रेडिट-योग्य नहीं माना जाता है। वेंचर कैपिटलिस्ट, एंजेल निवेशक और बैंकर आम तौर पर ऋण चुकाने की उनकी क्षमता पर भरोसा नहीं करते हैं। महिलाओं को इसके प्रबंधन के कम अवसर प्राप्त होते हैं, जबकि वे वर्षों से अपने दम पर घर का वित्त प्रबंधन अच्छी तरह से कर रही होती हैं। व्यवसायों के लिये वित्त प्रबंधन की बात आती है तो उनका आत्मविश्वास कम पड़ने लगता है और वे दूसरों पर निर्भर बनी रहती हैं।
स्टार्टअप्स में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सर्वप्रथम उनके जोखिम लेने की क्षमता को बढ़ाने की ज़रूरत है, फिर वे स्टार्टअप की दौड़ में पुरुषों को पीछे छोड़ने को तैयार होंगी। भारतीय महिलाओं को स्वयं का कारोबार शुरू करने के लिये यूनिकॉर्न ‘उत्सव’ से उत्पन्न हो रहे सुनहरे अवसरों का लाभ उठाना चाहिये और आत्मनिर्भर भारत की यात्रा का नेतृत्व करना चाहिये। समाज, वित्तीय संस्थानों, निवेशकों और सरकार को समझना होगा कि देश महिलाओं की भागीदारी के बिना स्थायी प्रगति को बढ़ावा नहीं दे सकता और महिलाएँ आर्थिक विकास को उत्प्रेरित कर सकती हैं।
बेहतर शिक्षा एवं स्वास्थ्य, वेतन अंतराल में कमी लाने से प्रतिभाशाली महिलाओं को नेतृत्व और प्रबंधकीय भूमिकाओं में बढ़ावा मिलता है। महिलाओं के लिये महिला रोल मॉडल महिला प्रवेश दर की संभावना रखता है। मौजूदा महिला उद्यमी सक्रिय रूप से अन्य इच्छुक महिला उद्यमियों की ओर हाथ बढ़ा कर कार्यक्षेत्र में उन्हें मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं। स्थानीय व्यवसायों का संचालन करने की संगोष्ठियों या कार्यशालाओं का आयोजन कर महिला निवेशकों को प्रोत्साहित करना होगा क्योंकि अधिकांश निवेशक समूहों में पुरुषों का वर्चस्व है और निवेश समितियाँ भी प्रायः पुरुष-प्रधान होती हैं।
ऐसे पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिये कम से कम एक या अधिक महिला निवेशकों को निवेश समूह में शामिल किया जाना चाहिये। लैंगिक विविधता होगी तो महिलाओं पर अधिक निष्पक्ष तरीके से विचार किया जाएगा और वे निर्णय प्राप्त करने में सफल होंगी।