लखनऊ। (आवाज न्यूज ब्यूरो) प्रसपा सुप्रीमो शिवपाल सिंह यादव और आजम खान के बीच नजदीकियां बढ़ती रही हैं। सपा के खेमे में तेज हलचल के बीच दोनों नेताओं द्वारा मिलकर पार्टी बनाने की खबरें जोर पकड़ रही हैं। यही नहीं, अखिलेश यादव के विरुद्ध आजम के साथ शिवपाल सिंह यादव के बगावती तेवर तेज हो रहे हैं। सूत्रों की माने तो ऐसे में 2024 लोकसभा चुनाव के दौरान नया मोर्चा आकार ले सकता है। इस मोर्चे में कई सारे और छोटे दल भी शामिल हो सकते हैं।
शिवपाल सिंह यादव ने खुद एक बयान में कहा है कि ईद के बाद नई पार्टी बनाने पर बैठक होगी। जबकि वह शुरुआत से ही आजम खान के पक्ष में रहे हैं। साथ ही अखिलेश यादव के पूर्व में दिए गए बयानों को भी नादान बताया और कहा कि मुझे विधानमंडल से निकाल दें। शिवपाल अब मुलायम सिंह यादव पर भी हमलावर होते दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले यूपी विधानसभा चुनाव में वह नेताजी का साथ देते नजर आये और हमेशा कहा कि नेताजी के आदेश का पालन करते आ रहे हैं। पहली बार इटावा में शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि अगर नेताजी आवाज उठाते तो आजम खान जेल से बहार होते। एक ओर सपा लोगों को खुद से जोड़ने में जुटी हुई है, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद दल बिखरते चले जा रहे हैं। चुनाव के समय वे जितना मजबूत नजर आ रहे थे अब उतना ही लाचार लग रहे हैं। ऐसे में संभावनाएं जताई जा रही हैं कि आजम खान, शिवपाल सिंह यादव, बाबू सिंह कुशवाहा, दद्दू प्रसाद, चंद्रशेखर आजाद समेत तमाम क्षेत्रीय नेता मिलकर एक मोर्चा तैयार कर सकते हैं। इसमें आम आदमी पार्टी के मिलने की भी संभावनाएं जताई जा रही हैं। ये सभी दल मिलकर एक नए समीकरण को तैयार कर सकते हैं। इस समीकरण के जरिये प्रदेश की जनता के लिए एक अलग विकल्प के रूप में खुद को प्रस्तुत करेंगे।
आजम खान का खेमा सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से नाराज है। उनके मीडिया प्रभारी फसाहत अली खान ने खुले तौर पर सपा सुप्रीमो पर रामपुर विधायक की उपेक्षा के आरोप लगाए हैं। आजम खान की मुस्लिम समुदाय में लोकप्रियता भी हैं, लिहाजा समाजवादी पार्टी का मुस्लिम वोट प्रभावित हो सकता है। उधर शिवपाल सिंह यादव की यादव और दलितों में लोकप्रियता है। इधर रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चैधरी की मुलाकात के भी कई मायने निकले जा रहे हैं और आजाद समाज पार्टी के नेता भी आजम के बेटे अब्दुल्ला से मिल चुके हैं। इन सभी बातों और मुलाकातों से कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर नए दल का गठन होता हैं तो उसको दलित-मुस्लिम-जाट समीकरण के रूप में काफी फायदा मिल सकता है। साफ है कि समाजवादी पार्टी के लिए आगे स्थितियां थोड़ी और संघर्षपूर्ण नजर आ रही हैं।
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