सामाजिक न्यूज़

गाय-भैंसों को भी लग सकती है लू,  गर्मियों में ऐसे करें पशुओं की देखभाल

बढ़ते पारे ने दुधारू पशुओं पर बहुत दबाव डाला है और यह सबसे बुरा तब होगा जब सापेक्ष आर्द्रता 90% से अधिक हो जाएगी। मौजूदा परिस्थितियों में दूध का उत्पादन कम फीड इनटेक और अतिरिक्त हीट लोड के कारण भी कम हुआ है। हरे चारे की मात्रा बढ़ानी चाहिए और लंबे चारे …

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प्रचंड गर्मी में ठंडक देता ‘मिट्टी का घड़ा’

गर्मियों के मौसम में आज भी कई घरों में मिट्टी का बना घड़ा या मटका नजर आ जाता है। भारत में मटके में पानी रखने की परंपरा बहुत पुरानी है। कई तरह के वॉटर प्‍यूरीफायर और कंटेनर्स आने के बाद भी आज तक लोग मिट्टी का घड़ा अपने घरों में …

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जाम से रेंगते शहर

भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण वाहनों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है, जिससे प्रमुख शहरों में यातायात की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। इस समस्या से निपटने के लिए प्रभावी उपायों की आवश्यकता है, ताकि यातायात का सुचारू प्रवाह सुनिश्चित हो, …

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क्यों संदिग्ध है अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां ? 

 _(आखिर क्यों सही से काम नहीं कर पा रही साहित्य अकादमियां?)_  पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत …

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वोटर लिस्ट में बढ़ती महिलाएं संसद में कब बढ़ेगी?

महिलाओं का वोट 48%, फिर सीटें 14% ही क्‍यों? भारत की महिला मतदाता; एक ताकत है जिसे गिना जाना चाहिए।  राजनीतिक दल कल्याणकारी योजनाओं और रियायतों के वादों के साथ महिलाओं के वोट हासिल करने की होड़ में हैं, लेकिन सच्चा सशक्तिकरण अभी भी मायावी है। जब तक राजनीतिक पार्टियां …

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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर बोले राहुल गांधी : ‘पिता की आकांक्षाएं पूरी करना मेरी जिम्मेदारी’

नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो)  भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर उनके बेटे व कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने उन्हें याद करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि राजीव गांधी की आकांक्षाएं पूरी करना उनकी जिम्मेदारी है। राहुल गांधी ने अपनी भावनात्मक पोस्ट साझा की है जिसमें उन्होंने …

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आखिर क्यों बदल रहे हैं मनोभाव और टूट रहे परिवार ?

(आज परिवार दिवस विशेष)  *फूट-कलह ने खींच दी, हर आँगन दीवार*  (भौतिकवादी युग में एक-दूसरे की सुख-सुविधाओं की प्रतिस्पर्धा ने मन के रिश्तों को झुलसा दिया है. कच्चे से पक्के होते घरों की ऊँची दीवारों ने आपसी वार्तालाप को लुप्त कर दिया है. पत्थर होते हर आंगन में फ़ूट-कलह का …

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जहां त्याग नहीं वहां कैसी सफलता ?

त्याग न केवल मनुष्य की उच्च नैतिक स्थिति को पार करता है, लालच, क्रोध, सुखवाद आदि जैसी नकारात्मक भावनाओं और नकारात्मक दृष्टिकोण को कम करता है बल्कि दूसरों को उनके अधिकारों का एहसास कराने में भी मदद करता है। “बलिदान के बिना कोई प्रगति नहीं हो सकती, कोई उपलब्धि नहीं …

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बिना स्वतंत्र मीडिया के स्वस्थ लोकतंत्र को सुनिश्चित कर पाना संभव नहीं

राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते राजनेताओं और मीडिया घरानों के बीच सांठगांठ के परिणामस्वरूप अक्सर पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग होती है और असहमति की आवाज़ों का दमन होता है। धमकियाँ और हमले: पत्रकारों को शारीरिक हिंसा, उत्पीड़न और धमकी का सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे भ्रष्टाचार, मानवाधिकार उल्लंघन या सांप्रदायिक तनाव …

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चिंताजनक है अखबारों और लेखकों की स्थिति 

समाचार पत्र और यहां तक कि लेखकों को भी अस्तित्व बचाने के लिए गूगल व फे़सबुक को मात देना होगा। बदहाल होती स्थिति पर सवाल यह है- वे ऐसा कैसे करेंगे? सबसे महत्वपूर्ण कारक है न्यूज़ कैरियर की बढ़ोत्तरी- गूगल, फे़सबुक और बाकी दूसरे। एक तरफ वे किसी अन्य द्वारा …

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