लखनऊ।(आवाज न्यूज ब्यूरो) यूपी में प्रांतीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा संवर्ग में चिकित्सक अब 70 साल तक नौकरी कर सकेंगे। उनकी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने की तैयारी है। अभी रिटायरमेंट की आयु 62 साल है। इसे लेकर शासन ने प्रस्ताव तैयार किया है। स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव डॉ. मन्नान अख्तर ने सीएम कार्यालय के सुझाव को परीक्षण के लिए महानिदेशक डॉ. लिली सिंह को भेजा है। उनसे प्रस्ताव का परीक्षण कर सुझाव देने को कहा गया है। प्रदेश में चिकित्सकों एवं विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। इसे देखते हुए 62 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्ति के बाद तीन साल की पुनर्नियुक्ति का विकल्प दिया गया है। इसके लिए हर जिला अस्पताल में पद भी तय किए गए हैं। लेकिन अब चिकित्सा शिक्षा विभाग की तरह 60 वर्ष से 65 वर्ष और फिर विकल्प के साथ उसे 70 साल तक करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। यह भी कहा गया है कि अभी तक जितने पद सृजित हैं वह 2007 के पहले हैं। अब जनसंख्या में बढोतरी हुई है। निदेशक, अपर निदेशक पद सीमित है। ये पद लंबे समय से खाली चल रहे हैं। ऐसे में संचारी रोग सहित तमाम कार्यक्रम प्रभावित होते हैं।
महानिदेशक, निदेशक, अपर निदेशक और एल 4 के चिकित्सकों के वेतनमान समान है। ऐसे में इन पदों की संख्या बढ़ाने का भी प्रस्ताव दिया गया है। शासन की ओर से भेजे गए पत्र में यह भी प्रस्ताव दिया गया है कि सामान्य चिकित्सकों को विशेषज्ञ बनाने की जरूरत है। इसके लिए अलग से कार्ययोजना बनाई जाएगी। सभी जिलों में मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं। ऐेसे में विशेषज्ञ चिकित्सकों की संख्या बढ़ाकर यहां रेजिडेंट एवं डेमोस्ट्रेटर की भरपाई की जा सकेगी।
महानिदेशक को भेजे गए प्रस्ताव में चिकित्सकों के प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है। यह भी कहा गया है कि जो विशेषज्ञ चिकित्सक डीएनबी के प्रशिक्षक के रूप मेंनामित हैं उन्हें तीन वर्ष तक स्थानांतरित एवं सेवानिवृत्त न किया जाए। हर जिले में करीब 300 बेड उपलब्ध हैं। ऐसे में यहां डीएनबी सीटें उपलब्ध कराई जा सकती है। इस दिशा में नए सिरे से कार्ययोजना तैयार करने की बात कही गई है। पीजी एवं डीएनबी कोर्स के लिए सभी इकाइयों का एकीकरण करके निदेशक, अपर निदेशक आदि के पद नामित किए जाएं। इसी तरह विशेषज्ञ चिकित्सकों केलिए डिप्लोमा कोर्स राज्य स्तर पर बढ़ाए जाएंगे। जो कोर्स समाप्त कर दिए गए हैं, उनकी समीक्षा की जाए।
अभी स्नातकोत्तर प्रशिक्षण एवं अल्पकालिन प्रशिक्षण में 50 से एक करोड़ तक का बॉन्ड रखा गया है। प्रशिक्षण पूरा करने पर सरकारी अस्पताल में सेवा न देने के बदले संबंधित डॉक्टर को बॉन्ड की रकम सरकारी कोष में जमा करनी पड़ती है। नए प्रस्ताव में सामान्य चिकित्सकों को बॉन्ड सीमा में राहत देने का प्रस्ताव दिया गया है। इस पर महानिदेशक से सुझाव मांगे गए हैं।
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