जब से अखिलेश के हाथ आई सपा की बागडोर, तब से लगातार हारे चुनाव,आंकड़े तो यही कहते हैं!

लखनऊ/फर्रुखाबाद। (आवाज न्यूज ब्यूरो) देश में आगामी लोकसभा चुनाव 2024 जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, सभी दलों की तैयारियां भी तेज होती जा रही है। इस बार सबसे ज्यादा फोकस यूपी पर है। एक तरफ जहां भाजपा ने मिशन 80 का लक्ष्य रखा है तो वहीं दूसरी तरफ सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव तमाम विपक्षी दलों को एकजुट कर बीजेपी को हराने की रणनीति में जुटे हैं। विपक्षी दलों की एकजुटता में सपा भी अहम भूमिका में हैं। अखिलेश यादव का दावा है कि इस बार उनका पीडीए फॉर्मूला एनडीए को हरा देगा।
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव एक बार फिर यूपी में बीजेपी को हराने का दावा तो कर रहे हैं लेकिन पिछले चुनावों पर नजर डालें तो हकीकत कुछ और ही नजर आती है। बीते एक दशक में सपा किसी भी चुनाव में कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाई है। ज्यादातर चुनावों में सपा का हार का ही सामना करना पड़ा है। पिछले कुछ समय में सपा अध्यक्ष ने कई प्रयोग किए, कभी कांग्रेस से हाथ मिलाया तो कभी बरसों की दुश्मनी भुलाकर बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ गठबंधन भी किया लेकिन इसका भी असर नहीं देखने को मिला। हाल ही में हुए निकाय चुनाव में भी समाजवादी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के सियासी कैरियर को देखा जाए तो जब से उन्होंने पार्टी की कमान संभाली है उन्हें लगातार हार का ही सामना करना पड़ रहा है। साल 2012 में अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बने थे, हालांकि तब उनके पिता एंव देश के पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव के हाथों में पार्टी की बागडोर थी।

अखिलेश यादव ने साल 2017 में समाजवादी पार्टी की कमान संभाली थी। इस दौरान उनके पारिवारिक विवाद और चाचा शिवपाल यादव से जमकर खींचतान देखने को मिली थी। वहीं फर्रुखाबाद के उस समय के दिग्गज सपा नेता एंव पूर्व मंत्री नरेंन्द्र सिहं यादव सहित नेताजी के तमाम साथियों की उपेक्षा भी हो रही थी। अखिलेश ने नेताजी के कुछ साथियों को विधानसभा टिकट भी दिया,वहीं दूसरी ओर उनकी युवा टीम नेताजी के नजदीकियों को हराने में पूरा जोर लगाए रही,मगर शिवपाल सिंह यादव जैसे कुछ दिग्गज नेता युवा टीम के विरोध के बाबजूद अपनी सीट जीतने में कामयाब रहे। अखिलेश यादव अपने नजदीकी युवा टीम के सहारे यूपी में दुबारा मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रहे थे,लेकिन युवा टीम यह गणित नहीं लगा पाई,यदि विधायक जीतकर नहीं आएंगे तो सरकार कैसे बनेगी? साल 2017 में अखिलेश ने राहुल गांधी के साथ हाथ मिलाया और मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा। हालांकि फर्रुखाबाद सहित कई जिलों में समाजवादी पार्टी का खाता तक नहीं खुला। इन चुनावों में सपा मात्र 47 सीटों पर सिमट कर रह गई। वहीं लोकसभा चुनाव 2019 में अखिलेश यादव ने मायावती के साथ गठबंधन किया लेकिन सपा को कोई फायदा नहीं हुआ। सपा का वोट तो बसपा को ट्रांसफर हुआ लेकिन बसपा के वोटरों ने सपा को वोट नहीं डाला और सपा को महज पांच सीटों पर ही जीत हासिल हुई। विधानसभा चुनाव 2022 में अखिलेश यादव ने यूपी की छोटी-छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन किया, इनमें ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा, महान दल, आरएलडी और अपना दल कमेरावादी जैसी पार्टियां थी। इस चुनाव में सपा की सीटों में बढ़ोतरी तो हुई लेकिन सपा के हाथ इस बार भी सत्ता हाथ नहीं लग सकी। विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों बाद ही रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव हुए। जो अखिलेश यादव और आजम खान के इस्तीफा देने के बाद खाली हुई थी। ये दोनों सीटें सपा का गढ़ रही थी, लेकिन दोनों ही सीटें सपा के हाथ से निकल गईं। इसके बाद मैनपुरी लोकसभा और खतौली व रामपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए। इनमें मैनपुरी और खतौली में सपा को जीत जरूर मिली, लेकिन रामपुर विधानसभा सीट जिस पर बरसों से पार्टी का कब्जा था वो अखिलेश के हाथों से निकल गई। यही नहीं लोकसभा विधानसभा के अलावा पिछले एक दशक में जो भी निकाय या पंचायत चुनाव हुए उनमें भी सपा को जीत हासिल नहीं हुई। पिछले दिनों निकाय चुनाव में भी सपा की हार हुई।
समाजवादी पार्टी को इन तमाम चुनावों में हार मिलने के बाद अखिलेश यादव एक बार फिर लोकसभा चुनाव में सभी विपक्षी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। बीजेपी ने इन चुनावों में यूपी की सभी 80 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है। पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो यूपी में बीजेपी को अकेले ही 50 फीसदी वोट हासिल हुआ था, ऐसे में अखिलेश यादव भले ही विपक्षी एकता की बात कर रहे हों लेकिन उनकी चुनौती काफी बढ़ गई हैं।

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