बृजेश चतुर्वेदी
विधान सभा चुनाव के चन्द दिन पहले सियासी लाभ के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने त्रिस्तरीय पंचायतों के 884225 प्रतिनिधियों को लाभ पहुँचाने के लिए खजाना खोल दिया। निश्चित रूप से संख्या बल के हिसाब से बूथ स्तर तक ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत प्रतिनिधियों का वर्चस्व है। ईमानदारी से अगर सभी पंचायत प्रतिनिधि किसी एक पार्टी के साथ चुनाव में जुट जाय तो उस पार्टी को बहुमत की सरकार बनाने से कोई नही रोक सकता। लेकिन कितना भी घोषणा व लाभ पंचायत प्रतिनिधियों को मिले एक साथ एक पार्टी के पक्ष में आना संभव नही हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा चुनाव के थोड़े दिन पहले पंचायत प्रतिनिधियों के मानदेय में बढ़ोत्तरी, कल्याण कोष की स्थापना से ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा का समर्थन लेने का एक प्रयास किया गया है। जिसका लाभ निश्चित रूप से मिलेगा। सबसे बड़ा लाभ ग्राम पंचायत सदस्यों को पहली बार ग्राम सभा की बैठकों में शामिल होने के लिए भत्ता देने से मिलेगा। क्योंकि इनकी संख्या सबसे अधिक हैं। बूथ स्तर पर सबसे अधिक मददगार भी साबित हो सकते हैं। प्रत्येक विधानसभा चुनाव के पहले जो भी सरकार होती है प्रधानों का सम्मेलन करती हैं। पंचायत प्रतिनिधियों के कल्याण के लिए उन्हें रिझाने के लिए मानदेय आदि की घोषणा करती हैं लेकिन चुनाव के अंतिम समय में की गयी घोषणा का अपेक्षाकृत लाभ किसी भी सरकार को नहीं मिलता। कोई भी सरकार ईमानदारी से गांवों के सर्वागीण विकास के लिए कार्य नहीं करती।राजनीतिक लाभ के लिए ही पंचायतों का उपयोग करने का प्रयास किया जा रहा हैं। इसीलिए ढाई दशक से अधिक बीतने बाद भी 73वें संविधान संशोधन के अनुसार पंचायतों को पारदर्शी बनाते हुए सर्वागीण विकास के लिए अधिकार देने की व्यवस्था की गयी थी। उसे आज तक लागू नहीं किया गया। ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पदों के चुनाव सीधे जनता से कराने की हिम्मत मायावती, अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ कोई भी नही कर पाया। प्रमुख और अध्यक्ष पद पर काबिज होने के लिए करोड़ों रूपये खर्च किये जाते है और फिर इन्ही करोड़ों रुपये की वसूली के लिए चुने गये प्रतिनिधि पारदर्शिता के अभाव में विकास की धनराशि की लूट करते हैं। सरकारें अगर विकास कार्याे में पारदर्शिता की नीति अपनाती तो 1995 से लेकर 2021 तक गांवों के सर्वागीण विकास के लिए जितनी धनराशि केन्द्र एवं प्रदेश सरकार से मिली है उससे प्रदेश के गावों का स्वरूप बदल गया होता। मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो गयी होती लेकिन पारदर्शिता अपनाने की हिम्मत कोई भी सरकार नही कर सकी। पारदर्शी नीतियां केवल कागजों तक समिति हैं। यही नही चुने गये पंचायत प्रतिनिधियों को सरकार की योजनाओं की जानकारी के लिए जो प्रशिक्षण दिये जाने थे जिसके लिए करोड़ों की धनराशि केन्द्र सरकार देती है वह प्रशिक्षण भी नहीं दिये जाते। प्रशिक्षण के नाम पर खानापूर्ति करके करोड़ों की धनराशि हजम कर ली जाती हैं। सरकार अगर गंभीर है और चाहती है कि केन्द्र एवं प्रदेश सरकार से विकास और कल्याणकारी योजनाओं की जो धनराशि दी जाती है उसे ईमानदारी से विकास में लगाया जाये और कल्याणकारी योजनाएं पात्र व्यक्तियों तक पहुँचे तो पारदर्शी नीति के लिए कानून बनाना चाहिए। इसके लिए केवल दो ही बिन्दु है। पहला सभी 884225 पंचायत प्रतिनिधियों को व्यापक प्रशिक्षण दिया जाए। ग्राम पंचायत सदस्य से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष तक एक-एक योजनाओं की जानकारी दी जाय और उन्हें जिम्मेदार भी बनाया जाए। दूसरा जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख का चुनाव सीधे जनता द्वारा कराया जाए।
विकास कार्य स्थलों पर लागत, मानक और कार्यदायी संस्था से जुड़े अधिकारी एंव ठेकेदार के नाम का बोर्ड लगाया जाए इसके लिए संबधित विकास कार्य में ही बजट का प्राविधान किया जाए। इसे प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए अगर कार्यस्थल पर बोर्ड नही लगा है तो प्रथम दृष्टया इसे भ्रष्टाचार मानते हुए जिम्मेदार अधिकारियों एंव कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों पर सामूहिक रूप से कड़ी कार्यवाई की जानी चाहिए। संविधान संशोधन और पंचायतीराज एक्ट में की गयी व्यवस्था के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायतों को अधिकार दिये जाए, साथ ही जिन छ कमेटियों के माध्यम से पंचायतों के कार्य संचालन की व्यवस्था की गयी उसे भी कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए। कल्याणकारी योजनाओं और लाभार्थियों की विस्तृत जानकारी का खुलासा ग्रामीण पंचायतों में प्रत्येक माह अनिवार्य रूप से होने वाली खुली बैठक में किया जाए। कल्याण सिंह सरकार ने प्रत्येक ग्रामपंचायत में एक कर्मचारी के माध्यम से समस्त कार्य कराने की व्यवस्था की थी उसे लागू किया जाए। शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्थाए ध्वस्त हो चुकी है ग्राम पंचायतों के प्राईमरी और जूनियर हाई स्कूल में शिक्षा की स्थिति बहुत खराब है राजनीतिक लाभ के लिए सरकारें बच्चों को खाने एवं किताब, कपड़े की व्यवस्था करती है लेकिन जो मूल उद्देश्य पढ़ाई का है उस पर ध्यान नही दे रही है। जिसका परिणाम यह कि करोड़ों खर्च करने के बाद गांवों में पढ़ने करने वाले बच्चे केवल साक्षर हो पाते हैं।
योगी सरकार ने पूर्व सरकारों की तरह पंचायत प्रतिनिधियों को लाभ देकर चुनाव में लाभ लेने का प्रयास किया है। सियासी दृष्टि से यह उचित कहा जा सकता है, लेकिन दूसरा पहलू यह कि योगी सरकार पंचायतों में भ्रष्टाचार दूर करने के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख का चुनाव सीधे जनता द्वारा कराने के हिम्मत नही जुटा पायी। कार्याे में पारदर्शिता लाने के लिए विकास कार्य स्थल पर बोर्ड लगाने में नाकाम रही। पूर्व सरकारों की तरह ही योगी सरकार में भी जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार की जड़े मजबूत बनी रही। बिना कार्य कराये करोड़ोें का भुगतान हो गया। योजनाओं में लूट और भ्रष्टाचार अन्य सरकारों की तुलना में बढ़ गया। प्रधानमंत्री द्वारा सीधा खातों में पैसा भेजने पर भी भ्रष्टाचार नही रूका है। लूट के लिए नये-नये तरीके ढूंढ लिये गये है। अगर सरकार पंचायतों को मजबूत करना चाहती है और भ्रष्टाचार रोकना चाहती है तो उसे प्रशिक्षण और पारदर्शिता की नीति को कड़े कानूनों के साथ लागू करना चाहिए।
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