कन्नौज : राजनीतिक वर्चस्व की लडाई मे भाजपा ने चढ़ा दी अनेक नेताओं की बलि

बृजेश चतुर्वेदी

कन्नौज।(आवाज न्यूज ब्यूरो)  भाजपा वैसे अपने को कैडर वेस पार्टी कहती है और आरएसएस का प्रभाव भी पार्टी पर नजर आता है लेकिन जैसे अटल, आडवाणी, मुरली मनोहर के बाद राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का चाल चरित्र चेहरा बदल गया वैसे ही 2014 के बाद से कन्नौज जिले मे ब्राह्मण नेताओं सहित अन्य जाति के युवा नेताओं को हाशिये पर लगाने और भाजपा की राजनीति से अलग थलग करने के षड्यंत्र शुरू हो गए जिससे कोई भी नेता पार्टी में पनप नहीं सका। कई अन्य नेता भी आगे नहीं बढ़ सके क्योंकि सारी राजनीति एक नेता के पाले में पहुंचकर उसी के इर्द गिर्द सिमट कर रह गयी और वर्चस्व की जंग में कई नेताओं को पैसे के बल पर ठिकाने लगा दिया गया। बताते तो यहां तक है कि 2017 में भाजपा के उभरते युवा नेता बंदे मातरम का टिकट कटवा दिया लेकिन वंदे मातरम ने नगर पालिका अध्यक्ष बनकर अपना जलवा दिखा दिया। तब भाजपा प्रत्याशी विक्रम त्रिपाठी की बहुत किरकिरी हुई लेकिन भाजपा हाईकमान ने इस पर ध्यान नहीं दिया। यही कहानी फिर 2022 में दोहराई गई और भाजपा हाईकमान को गुमराह कर बंदे मातरम की टिकट कटवाकर कनौज के प्रतिष्ठित चंद्रवली दीक्षित परिवार की बहू ऊषा दीक्षित को भाजपा की टिकट दिलवा दी गई ताकि काटे से कांटा निकाला जा सके।

भाजपा कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ऊषा दीक्षित को हरवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की गई जिससे सांसद परिवार और दीक्षित परिवार में खटास पैदा हो गई जो आगे चलकर बाद में भाजपा कार्यकर्ता सजल गुप्ता को फोन पर दी गई गालियों के बाद और बढ़ गई। कन्हैया दीक्षित भाजपा की राजनीति में काफी तेजी से उभरने लगे थे जिन्हें भी हाशिए पर लगाने की पूरी कोशिश की गई। योगी सेना के पवन पांडे की राजनीति में भी पलीता लगाया गया और उनके साथ नगर पालिका चुनाव में धोखा किया गया।

भाजपा कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर चर्चा है कि पिछड़े वर्ग के किसी नेता को भी कन्नौज जिले की राजनीति में पनपने नहीं दिया गया जिससे तमाम नेता आज भी आहत है।

न दिल बदला न दल पर के सिद्धांत पर अडिग रहे बनवारी लाल दोहरे जैसे कद्दावर नेता के परिवार की उपेक्षा की गई जिससे पूरा परिवार आहत है।

जिला पंचायत के चुनावों में दो ठाकुर नेताओ को चुनाव में हरवाकर उन्हें मैदान से हटा दिया गया। यह बात दीगर है कि संघर्ष के बल पर वीर सिंह भदौरिया भाजपा के जिलाध्यक्ष बन गए।

भाजपा की अंदरूनी राजनीति में इसी कारण उथल पुथल मची हुई है और अखिलेश यादव के मैदान में उतरने से यह और बढ़ गई हैं। भाजपा कार्यकर्ता बड़े मुखर होकर यह बात कहते हैं। सांसद के इर्द गिर्द रहने वाले चाटुकारों ने खूब मलाई खाई है और आम कार्यकर्ता की घोर उपेक्षा की गई है। एक मिनी सांसद की पार्टी में जोरदार चर्चा है जो चंदा वसूली में पार्टी नेताओं के बीच काफी चर्चित रहे है। आम कार्यकर्ताओं का यह भी कहना है कि जिन लोगो ने माल खाया और 25 लाख की गाड़ी में चल रहे हैं अब वही बोट दिलाएंगे।

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