सपा हो या भाजपा या फिर बसपा चुनौतियां सबके सामने है

बृजेश चतुर्वेदी

कन्नौज।(आवाज न्यूज ब्यूरो) इत्र नगरी कन्नौज में इन दिनों सियासी सुगंध तारी है। वर्ष 1967 में अस्तित्व में आई इस सीट पर पहले सांसद डॉ. राम मनोहर लोहिया बने थे। उनकी कर्मभूमि पर सपा के लिए समाजवाद का परचम फहराने और भाजपा के सामने जीत को दोहराने की चुनौती है। यहां से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के खुद मैदान में उतरने से चुनावी जंग दिलचस्प हो गई है। सपा और भाजपा में सीधा मुकाबला है।

कन्नौज की सियासी जमीन की ऐसी तासीर है कि यहां से सांसद बने मुलायम सिंह यादव, शीला दीक्षित और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। मुलायम के इस्तीफे के बाद वर्ष 2000 में हुए उपचुनाव में अखिलेश यहां पहली बार सांसद बने थे। 2004 और 2009 में भी उन्होंने जीत हासिल की। 2012 में उनके इस्तीफे से खाली सीट पर पत्नी डिंपल निर्विरोध सांसद बनीं। 2014 में डिंपल ने फिर जीत दर्ज की लेकिन 2019 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

चिलचिलाती धूप में प्रदेश के ज्यादातर इलाकों में खेत खाली हैं, पर कन्नौज की सीमा में प्रवेश करते ही लहलहाती मक्के और सब्जियों की फसल नजर आने लगती है। जिस सड़क पर निकलिए, उसी पर कोल्ड स्टोरेज दिख जाते हैं। यह सब एक सुखद तस्वीर पेश करते हैं। पर, जैसे ही किसानों से बातचीत करें, तस्वीर का बदरंग पहलू उधड़ कर सामने आने लगता है। हम निजामपुर गांव में पहुंचे तो वहां पेड़ की छांव तले कई लोग बैठे मिले। चुनावी चर्चा छिड़ते ही अनीस कुछ बोलने के बजाय मोबाइल में अखिलेश की फोटो दिखाते हैं। उनके साथ मौजूद रफीक यूं मुस्कुरा देते हैं जैसे अनीस की हां में हां मिला रहे हों। पर, दोनों कैमरे के सामने कुछ भी बोलने को तैयार नहीं होते। तभी वहां साइकिल से पहुंचे दिनकरन राजपूत भी चर्चा में शामिल हो गए। वह कहते हैं, भाजपा ने किसानों के लिए कुछ नहीं किया।

तालग्राम पहुंचे तो वहां मिले किसान बलवंत शाक्य छुट्टा पशुओं की समस्या उठाकर अपनी मंशा साफ करने की कोशिश करते हैं। पर, उनके बगल में बैठे

राकेश राजपूत किसान सम्मान निधि की दुहाई देकर बलवंत को रोकते हैं। शंकर सिंह भी टोकते हैं। कहते हैं, सरकार की ओर से गेहूं, धान और आलू खरीद तो हो रही है। पास ही खड़े राजेश यादव से रहा नहीं गया। वह मैदान में पिल पड़े। कहते हैं, किसान सम्मान निधि ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है। इससे जीवन नहीं चलेगा। जब तक खेती आधारित उद्योग नहीं लगेंगे, समृद्धि नहीं आएगी। अब इत्र फूल के बजाय केमिकल से बनने लगा है। यह भी किसानों पर चोट है। रजनीश सिंह कहते हैं कि बेवर से तालग्राम तक सपा सरकार में नहर खुदवाई गई थी। पर, भाजपा सरकार पानी तक का इंतजाम नहीं कर सकी। इससे किसान सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं।

कन्नौज के किसान आलू की दो बार फसल लेते हैं, लेकिन यहां आलू आधारित उद्योग नहीं हैं। आलू को कोल्ड स्टोरेज में रखते हैं और मजबूरी में स्थानीय बाजार भाव पर बेचते हैं। किसान शिवगुलाम कहते हैं, कई बार किसानों को आलू फेंकना पड़ता है। आलू की सरकारी खरीद शुरू हुई, लेकिन शर्तों ने ऐसा घनचक्कर बनाया कि सबकुछ उलझ कर रह गया। वहीं, मकरंद नगर के शंभु दयाल कहते हैं कि इत्र पार्क तो बना, पर इससे जुड़े कारोबारियों को कोई खास फायदा नहीं मिला।

कन्नौज शहर में तिर्वा क्रॉसिंग के पास एक डिस्पेंसरी में बैठे लोग चुनावी चर्चा में मशगूल थे। हम भी उनकी बातें सुनते हुए हां में हां मिलाते रहे। डॉ. कैलाश बाबू पाल कहते हैं, इस सरकार ने रोजगार खत्म कर दिया। छुट्टा जानवरों की तरह ही युवा भी काम की तलाश में भटक रहे हैं। अजित सिंह कहते हैं, अब तो इत्र कारोबार भी ठहर गया है। दुकानदार संजय पांडेय कहते हैं, कम से कम कानून-व्यवस्था तो ठीक है। इसलिए रहेंगे तो भाजपा के साथ ही। तभी नरुल हसन चुटकी लेते हैं और कहते हैं कि फिर टैक्स का रोना क्यों रोते हो। कन्नौज शहर में राजकीय पुरातत्व संग्रहालय के बगल में चल रहे निर्माण कार्य में लगे मजदूर विक्रम, राजित राम और संतोष कहते हैं कि उन्हें अनाज तो मिल रहा है, बाकी कुछ नहीं। स्थायी रोजगार नहीं है।

1990 में फर्रुखाबाद के फूस बंगला में रखे 34 गांव के चकबंदी के दस्तावेज जल गए थे। यह हर चुनाव में मुद्दा बनता है। अधिवक्ता संदीप दीक्षित बताते हैं कि इन कागजातों को दुरुस्त करने के लिए लगातार संघर्ष हो रहा है। अब नंदलालपुर और कुंवरपुर करनौली के दस्तावेज बन गए। बाकी के बनने शुरू हुए हैं। दस्तावेज नहीं होने से इन गांवों के लोगों को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिलता है। जमीन कब्जे के विवाद बढ़ते जा रहे हैं।

छिबरामऊ तहसील में चैंबर में बैठे अधिवक्ता सियासी चर्चा में मशगूल नजर आए। अधिवक्ता अजित कुमार मिश्र कहते हैं, रेल लाइन, फ्लाईओवर, हाईवे तो बन गए हैं। अस्पताल की सुविधा नहीं है। मो. दाऊद कहते हैं, सपा सरकार में बने अस्पताल में भाजपा सरकार डॉक्टर और कर्मचारियों का इंतजाम नहीं कर पाई। अधिवक्ता रजनीश यहां के विकास कार्य का श्रेय सपा को देते हैं, तो उनकी बात को काटते हुए देवेश मिश्र राष्ट्रवाद, तो संजीव दुबे सुरक्षा को सर्वोपरि बताते हुए भाजपा का समर्थन करते हैं।

• अखिलेश यादव, सपा : अपनी सरकार में कराए गए विकास कार्यों और परंपरागत वोट बैंक का सहारा है। अति पिछड़ी जातियों को जोड़े रखने की चुनौती है।

• सुब्रत पाठक, भाजपा : पाठक भाजपा के परंपरागत वोटबैंक, केंद्र सरकार के काम और मोदी-योगी के नाम के सहारे हैं। व्यापारियों और अन्य सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी दूर करने की चुनौती है।

• इमरान बिन जफर, बसपा : इमरान 2014 में आम आदमी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। कानपुर के मूल निवासी और कारोबारी हैं। बसपा के काडर वोटबैंक के साथ ही मुस्लिमों को साधने में जुटे हैं।

तिर्वा कस्बे में कपड़े की दुकान पर मिले राकेश कहते हैं, सांसद पड़ोसी हैं, कभी दिखे नहीं। वोट देना मजबूरी है। उनके बगल में बैठे अवनीश कुमार गुप्ता कहते हैं कि आएंगे तो सपा अध्यक्ष भी नहीं, लेकिन कुछ बड़े काम हो सकते हैं। आनंद कुमार जैन कहते हैं कि हम तो मोदी को देख रहे हैं। प्रत्याशी से मतलब नहीं है। इसी तरह बिधूना विधानसभा क्षेत्र के बेला बाजार में मिले प्रबल प्रताप सिंह कहते हैं कि चुनावी पारा चढ़ रहा है। अजय कुमार कहते हैं कि सपा-भाजपा में कांटे की टक्कर है। बेला में जल निकासी की समस्या है। जगत सिंह कहते हैं कि हम लोग नेताजी के साथ हैं।

सराय घाघ में मिले विमल जाटव और शकील अध्यापक हैं। इनका तर्क है कि कन्नौज सीट पर 2014 तक यादव, मुसलमान के साथ शाक्य, पाल और 50 फीसदी लोध के साथ अन्य पिछड़े वर्ग की जातियां रही हैं। 2014 के चुनाव में न केवल लोध भाजपा के साथ चले गए, बल्कि बसपा के कमजोर पड़ने से दलित उप जातियां भी भाजपा से जुड़ गईं। इस चुनाव में बसपा ने मुस्लिम उम्मीदवार जरूर उतारा है, लेकिन दलित-मुस्लिम गठजोड़ नजर आ रहा है। दूसरी तरफ तिर्वा में हुए मूर्ति प्रकरण में सपा के लोधी नेताओं ने सक्रियता दिखाकर इस वोटबैंक को जोड़ने की कोशिश की है।

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