लखनऊ। (आवाज न्यूज ब्यूरो) समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 में अब तक के अपने इतिहास में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया। उसने कुल 37 सीटें जीतीं। इस तरह सपा देश की तीसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई है। धार्मिक मुद्दों के बजाय जातीय गोलबंदी और यादवों-मुस्लिमों पर कम दांव की रणनीति से सपा को यह सफलता मिली।
सपा ने पिछला लोकसभा चुनाव बसपा के साथ लड़ा था। तब उसे महज पांच सीटें मिली थीं। राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विपक्ष के अभियान का नेतृत्व किया। सपा ने ‘इंडिया’ गठबंधन के तहत 62 सीटों पर चुनाव लड़ा। 17 सीटें कांग्रेस और एक सीट तृणमूल कांग्रेस को दी। सीट शेयरिंग की यह रणनीति काफी कारगर साबित हुई। कांग्रेस के साथ साझेदारी करने के चलते सपा मतदाताओं को यह मनोवैज्ञानिक संदेश देने में सफल रही कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प मौजूद है। 2019 के चुनाव में पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह भी सपा से अलग थे, लेकिन इस बार परिवार की एकजुटता से भी अच्छा संदेश गया। सपा ने प्रत्याशी तय करने में पीडीए फार्मूले का भी पूरा ध्यान रखा। अपना आधार वोट माने जाने वाले यादवों और मुस्लिमों से ज्यादा कुर्मी बिरादरी के प्रत्याशी उतारे।
ब्राह्मण व ठाकुर समेत सामान्य जाति के प्रत्याशियों को भी प्रतिनिधित्व दिया। अखिलेश का यह दांव बिल्कुल सही बैठा और पार्टी को अप्रत्यशित सफलता मिली। अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य के विवादित बयानों से खुद को और अपनी पार्टी को दूर रखा। बहुत ही सधे अंदाज में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर सीधे कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। इतना ही नहीं इटावा में विशाल मंदिर का निर्माण प्रारंभ कराया। इससे भाजपा को धार्मिक मुद्दों पर उन्हें घेरने का मौका नहीं मिला। साथ ही जातीय गोलबंदी के लिए संविधान और आरक्षण के मुद्दे को प्रमुखता दी। पेपर लीक और अग्निवीर के सहारे बेरोजगारी की समस्या से बड़ी चोट की। इस रणनीति ने उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचाया।
सपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा आम चुनाव में 35 सीटें जीती थीं। इस लोकसभा चुनाव में सपा उससे भी अच्छा प्रदर्शन करने की ओर बढ़ रही है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गढ़ में साइकिल पूरी गति से दौड़ी। यादवलैंड की छह सीटों में मैनपुरी का रुतबा बरकरार रहा, जबकि सपा ने भाजपा से चार सीटें छीन लीं। सभी सीटों पर वोटबैंक बढ़ाने में भी कामयाब रही।
मैनपुरी में डिंपल यादव 2.21 लाख मतों से विजयी रहीं। उन्हें 56.79 फीसदी वोट मिले और भाजपा को 35.76 फीसदी। वर्ष 2019 में सपा को 53.75 फीसदी और भाजपा को 44.09 फीसदी वोट मिले थे। हालांकि 2022 के उपचुनाव में यहां सपा को 64.08 फीसदी वोट मिले थे। इस तरह सामान्य चुनाव में सपा का वोटबैंक बढ़ा है। इटावा में सियासी तौर पर कठेरिया बनाम दोहरे बिरादरी के बीच संघर्ष होता है। भाजपा ने सांसद रामशंकर कठेरिया को दोबारा मौका दिया तो सपा ने बसपा से आए जितेंद्र सिंह दोहरे पर दांव लगाया और करीब 58 हजार वोट से चुनाव जीत लिया। यहां सपा को 47 और भाजपा को 41.82 फीसदी वोट मिले। वर्ष 2019 में सपा को 44.53 और भाजपा को 50.80 फीसदी वोट मिले थे। इसी तरह कन्नौज में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव 1.70 लाख से जीते हैं। उन्हें 52.74 फीसदी और भाजपा के निवर्तमान सांसद सुब्रत पाठक को 38.71 फीसदी वोट मिले। वर्ष 2019 में भाजपा को 49.37 और सपा को 48.29 फीसदी वोट मिले थे। फिरोजाबाद में सपा के अक्षय प्रताप यादव ने भाजपा प्रत्याशी विश्वदीप सिंह को करीब 89 हजार वोट से हराया। यहां भाजपा ने सांसद चंद्रसेन जादौन का टिकट काट दिया था। ऐसे में यहां भितरघात का भी सपा को फायदा मिला। सपा को 49.09 और भाजपा को 40.98 फीसदी मत मिले। वर्ष 2019 में सपा को 43.41 और भाजपा को 46.09 फीसदी वोट मिले थे। एटा में राजवीर सिंह राजू को सपा के देवेश शाक्य ने करीब 25 हजार वोटों से हराया। यहां सपा को 47.07 और भाजपा को 44.34 फीसदी वोट मिले, जबकि वर्ष 2019 में भाजपा को 54.52 और सपा को 42.25 फीसदी वोट मिले थे।
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