नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो) दिल्ली हाईकोर्ट ने आज मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी, जबकि प्रवर्तन निदेशालय की उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने आबकारी नीति धन शोधन मामले में ट्रायल कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी। न्यायमूर्ति सुधीर कुमार जैन की अवकाश पीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि ट्रायल कोर्ट ने दस्तावेजों और दलीलों का ठीक से मूल्यांकन नहीं किया।
इस अदालत का मानना है कि ट्रायल कोर्ट ने अपना विवेक नहीं लगाया और तथ्यों पर ठीक से विचार नहीं किया। एजेंसी द्वारा ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दिए जाने के बाद पीठ ने 21 जून को आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिसे फैसले तक रोक दिया गया है। इस बीच, अदालत ने पहले ही मुख्य मामले की सुनवाई जुलाई के लिए तय कर दी है, जिसमें ईडी ने अरविंद केजरीवाल को मामले में नियमित जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। सोमवार को ईडी ने दिल्ली हाईकोर्ट में लिखित दलीलें दाखिल कीं, जिसमें उन्होंने आबकारी नीति मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को किसी भी तरह की राहत दिए जाने का विरोध किया। ईडी ने केजरीवाल को जमानत देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश का विरोध किया और आदेश को अवैध और विकृत बताया। ईडी ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित विवादित आदेश पर रोक लगाई जानी चाहिए और उसे रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि अवकाश न्यायाधीश ने अभियोजन पक्ष द्वारा रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री की जांच न करने के बाद तथ्यों और कानून दोनों के आधार पर अपने आदेश के लगभग हर पैराग्राफ में विकृत निष्कर्ष दिए हैं। ईडी ने आगे कहा कि 2023 के बाद अरविंद केजरीवाल के खिलाफ एकत्र की गई नई सामग्री पर अवकाश न्यायाधीश ने विचार नहीं किया। प्रवर्तन निदेशालय ने 13 अंगारिया, गोवा आप कार्यकर्ताओं और आप पदाधिकारियों के बयानों को नए बयानों के रूप में सूचीबद्ध किया है। प्रवर्तन निदेशालय को पर्याप्त अवसर न देना धारा 45 की शर्तों में से एक का उल्लंघन है, ईडी ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई 26 जून तक के लिए स्थगित कर दी। दिल्ली आबकारी नीति मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने उन्हें अंतरिम स्थगन दिया था। इस मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कर रहा है। जस्टिस मनोज मिश्रा और एसवीएन भट्टी की अवकाश पीठ ने कहा कि मामले में अंतिम आदेश पारित किए बिना केजरीवाल की जमानत पर अंतरिम स्थगन देने का हाईकोर्ट का फैसला असामान्य है। पीठ ने कहा, स्थगन के मामलों में फैसले सुरक्षित नहीं रखे जाते, बल्कि मौके पर ही दिए जाते हैं। यहां जो हुआ, वह असामान्य है। हम इसे (मामले को) अगले दिन सुनेंगे। 21 जून को हाईकोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए जमानत पर अंतरिम स्थगन देने का आदेश दिया था और दोनों पक्षों से सोमवार तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा था। इसके बाद केजरीवाल ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील दायर की। आज सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पीठ से कहा कि हाईकोर्ट स्थगन आवेदन पर जल्द ही आदेश सुनाएगा और मामले की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतिम आदेश का इंतजार करना उचित होगा, जिसे एक या दो दिन में हाई कोर्ट द्वारा सुनाया जाना है।
केजरीवाल का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने सुनवाई के पहले दिन जमानत पर रोक लगाने के हाई कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि पहले दिन जमानत पर रोक लगाने की प्रक्रिया अभूतपूर्व है। सिंघवी ने पूछा, मान लीजिए हाई कोर्ट ईडी की अपील खारिज कर देता है, तो जज उस समय की भरपाई कैसे करेंगे जो उन्होंने (केजरीवाल ने) खो दिया? सिंघवी ने तर्क दिया कि 21 जून को सुबह 10रू30 बजे हाई कोर्ट ने बिना किसी कारण के आदेश पारित किया और जमानत के आदेश पर रोक लगाने के बाद दलीलें सुनी गईं। वरिष्ठ वकील ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसले हैं जो कहते हैं कि एक बार जमानत दिए जाने के बाद विशेष कारणों के बिना उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती।
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