कहीं अखिलेश और मायावती जैसे बनकर न रह जाएं योगी
बृजेश चतुर्वेदी
प्रशासनिक दबंगई, निचले स्तर पर भ्रष्टाचार, जन प्रतिनिधियों की उपेक्षा, मंहगाई, छुट्टा जानवर, बेरोजगारी, योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से नाराज मतदाताओं को भाजपा की तूफानी रैलियाँ भी 2017 जैसा कनैक्ट नहीं कर पा रही हैं। पिछले डेढ़ महीने से लगातार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह सहित केन्द्र एवं प्रदेश के मंत्री एवं संगठन के पदाधिकारी तथा 46 से अधिक आनुषंगिक संगठन लगातार रैलियाँ, यात्राएं, जनसम्पर्क, रोड शो करके 2017 जैसा माहौल बना कर मतदाताओं से सीधा कनैक्ट करके का प्रयास कर रहे हैं लेकिन कनैक्ट नहीं हो पा रहे है। यह अलग बात है कि भाजपा संसाधनों और सोशल मीडिया का उपयोग करते हुये मीडिया के माध्यम से एक ऐसा माहौल बनाने में जुटी हैं कि विपक्ष की ओर से सत्ता की सबसे प्रबल दावेदार समाजवादी पार्टी भ्रष्टाचारी, परिवारवादी, अपराधियों को संरक्षण देने वाली, दंगा कराने वाली पार्टी लगे। इतनी ताकत झोकने के बाद भी अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा और केंद्र सरकार द्वारा चलायी जा रही जन कल्याणकारी योजनाएँ नहीं होती तो अब तक स्थितियाँ भाजपा के विपरीत मुखर होकर दिखाई देने लगतीं। योगी सरकार की इन तमाम खामियों को ढकने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कल्याणकारी योजनाएं कवच का कार्य कर रही है। 2017 विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा गया था, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य के अघोषित मुख्यमंत्री के चेहरे और अखिलेश सरकार के खिलाफ जनता की नाराजगी के चलते अप्रत्याशित रूप से सभी वर्गों ने मिलकर 40% मत और 312 सीटें भाजपा की झोली में डाल दी। अप्रत्याशित सफलता के बाद केशव मौर्य को जिम्मेदारी न देकर योगी आदित्यनाथ को कमान सौपी गयी। 5 वर्षों के कार्यकाल में योगी आदित्यनाथ की अनुभवहीनता के कारण पूर्व मुख्यमंत्रियों मायावती और अखिलेश यादव की तरह योगी को भी अधिकारियों ने अपने शिकंजे में फंसा लिया।
योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पूरी तरह अधिकारियों के अनुसार ढल गयी और जन प्रतिनिधियों एवं कार्यकर्ताओं की खुलेआम उपेक्षा हुई। अधिकारियों ने योगी आदित्यनाथ की अनुभवहीनता का फायदा उठाते हुए जी हुजूरी करने वालों का एक ऐसा दरबार सजा दिया जिससे योगी आदित्यनाथ जनता से कट गए। यही नहीं मायावती और अखिलेश यादव की तरह योगी आदित्यनाथ भी खुद को राष्ट्रीय स्तर का बड़ा नेता मानने लगे और इनमे केंद्रीय नेतृत्व ने भी देश भर में प्रचार कराके योगी के मनोबल को बढ़ाया। जिसका परिणाम यह रहा है कि जिस तरह बहुमत पाने के बाद मायावती को अधिकारियों ने राष्ट्रीय स्तर का बहुत बड़ा नेता बना दिया था और प्रदेश के अलावा देश के कई राज्यों में बसपा को चुनाव मैदान में उतरा। जातीय समीकरण के चलते 2-4 सीटों पर विभिन्न राज्यों में सफलता भी मिली। मायावती को जिस भरोसे के साथ बहुमत की सत्ता मिली थी उसके अनुसार अधिकारियों के शिकंजे में फंस कर वे जन अपेक्षाओं पर खड़ी नहीं उतरी। परिणाम यह रहा है कि राष्ट्रीय स्तर का बड़ा नेता बनने के ख्याब में अपनाई गयी कार्यशैली से उत्तर प्रदेश भी गवां बैठी। यही स्थिति अखिलेश यादव की मुख्यमंत्री बनने के बाद शुरू हुई और वह भी अधिकारियों की गिरफ्त में आ गए।
अधिकारियों ने अखिलेश को भी मायावती की तरह जनता से दूर कर दिया। स्थितियां ऐसी बन गयी कि नौकरशाह हमेशा अखिलेश को घेरे रहते। मंत्रियों, विधायकों और ज़मीनी कार्यकर्ताओं को मिलने का समय अखिलेश से बहुत कम मिलता था। इसका खामियाजा 2017के चुनाव में उन्हें भुगतना पड़ा। यही स्थिति योगी आदित्यनाथ की बन गयी है। वे भी पूरी तरह अधिकारियों के शिकंजे में फंसे हुए है। केंद्र की भाजपा सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जैसा लोकप्रिय नेता योगी का संरक्षक बनकर उत्तर प्रदेश के 2022 विधानसभा चुनाव में आगे नहीं होता और अगर योगी भी क्षेत्रीय दल के मुखिया होते तो उनका हश्र भी मायावती और अखिलेश जैसा ही होता। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रभावशाली लोकप्रिय नेता है और उन्होंने सबका साथ सबका विकास के नारे पर तीन पीढ़ियों को लाभ देने वाली 50 से अधिक जन कल्याणकारी योजनाएं चलाई है। जिससे भारी संख्या में लाभार्थी व्यक्तिगत स्तर पर मोदी से जुड़े है जिसका लाभ भाजपा को निश्चित रूप से मिलेगा लेकिन 5 वर्षों के कार्यकाल में अधिकारियों के शिकंजे में फंसे योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से जो समस्याएं प्रदेश में हैं उसके कारण पूरी ताकत लगाने के बाद भी भाजपा जनता से कनेक्ट नहीं हो पा रही है साथ ही योगी का ज़िद्दी स्वभाव पार्टी के अंतर्विरोधों को जो लगातार खाद पानी देता रहा है उसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना ही पड़ेगा।