पार्किंसंस रोग से जूझते हुए सृजित हुए ‘पुष्कर के उद्गार’

(ये दर्दनाक कहानी है भिवानी के गाँव बड़वा में जन्मे और आजकल हिसार के सेक्टर 16-17 निवासी रिटायर्ड असिस्टेंट टाउन प्लानर राजपत्रित अधिकारी पुष्कर दत्त शर्मा की। 2016  के दिसम्बर माह में इनको दुनिया की इस भयंकर बीमारी के लक्षण आने शुरू हुए। शुरू में इनको दाएं पैर के अंगूठे  में कम्पन का आभास हुआ। धीरे-धीरे  इन्होने अकेले चलने  और कोई भी काम अकेले करने की क्षमता खो दी। देश-विदेश से इलाज़ लेने के बाद भी इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं मिला। लेकिन इन्होनें इस बीमारी के साथ जीना जरूर सीख लिया।  ड्यूटी के साथ-साथ इस बीमारी से लड़ते हुए 103 कविताओं की एक पुस्तक, जिसका नाम ‘पुष्कर के उदगार’ है लिखी और नि:शुल्क वितरित की गई। यह पुस्तक इनका प्रथम प्रयास है तथा यह विभिन्न विषयों पर लिखी गई है। पुस्तक में लगभग 20 कविताएं कोरोना से संबंधित है जिसमें लोगों को कोरोना के अगेंस्ट लड़ने के लिए मोटिवेट किया गया।)

-डॉ. सत्यवान सौरभ

छः साल पहले, मेरा लंबे समय से चल रहा अवसाद एक मनोवैज्ञानिक अवसादग्रस्तता पार्किंसंन बीमारी में परिणत हो गया, जिससे मेरे पास बेहतर होने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध होने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। मैंने मूड स्टेबलाइज़र लेना शुरू कर दिया और नियमित रूप से एक चिकित्सक से मिलना शुरू कर दिया, भले ही यह अनुभव थका देने वाला था। आज, मैं पहले से कहीं ज़्यादा स्थिर महसूस करता हूँ। लेकिन बीमारी गयी नहीं है और शायद न ही कभी जीते जी जाएगी। क्योंकि इसका धरती पर कोई इलाज नहीं है। ये दर्दनाक कहानी है भिवानी के गाँव बड़वा में जन्मे और आजकल हिसार के सेक्टर 16 -17 निवासी रिटायर्ड असिस्टेंट टाउन प्लानर राजपत्रित अधिकारी पुष्कर दत्त शर्मा की।

2016  के दिसम्बर माह में इनको दुनिया की इस भयंकर बीमारी के लक्षण आने शुरू हुए। शुरू में  इनको दाएं पैर के अंगूठे  में कम्पन का आभास हुआ। धीरे-धीरे इन्होनें अकेले चलने और कोई भी काम अकेले करने की क्षमता खो दी। देश- विदेश से इलाज़ लेने के बाद भी इस बीमारी का कोई इलाज़ नहीं मिला लेकिन इन्होने इस बीमारी के साथ जीना जरूर सीख लिया। पार्किंसंस रोग एक मस्तिष्क विकार है, जो अनपेक्षित या अनियंत्रित गतिविधियों का कारण बनता है, जैसे कंपन, अकड़न, तथा संतुलन और समन्वय में कठिनाई। लक्षण आमतौर पर धीरे-धीरे शुरू होते हैं और समय के साथ बिगड़ते जाते हैं।जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, लोगों को चलने और बोलने में कठिनाई हो सकती है।

इस प्रकार अचानक नकारात्मक बीमारी की पहचान मुकाबला तंत्र को कमजोर कर सकती है, आत्म-सम्मान को कम कर सकती है और अतिरिक्त तनाव पैदा करके मनोविकृति के लक्षणों को और भी बदतर बना सकती है। नतीजतन, अवसाद से उबरने के लिए अपरिचित भावनाओं का सामना करना पड़ता है। एक नए विश्वदृष्टिकोण के भीतर काम करना सीखना भयावह हो सकता है , जिससे बेहतर होने की कठिन प्रक्रिया और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। ऐसे समय आत्म-पराजित विश्वासों का सामना करना और उनका समाधान करना मानसिक बीमारी से उबरने के लिए एक आवश्यक कदम है।

मगर पुष्कर दत्त ने बताया कि  मुझे यह स्वीकार करने में जितना भी अरुचि हो, मेरी मानसिक बीमारी ऐसी चीज बन गई जिसका मैं फायदा उठा सकता था। अपने लक्षणों को विचित्रताओं में बदलकर, मैं अपनी मानसिक बीमारी की तीव्रता को उससे कहीं अधिक समय तक दबाने में कामयाब रहा जितना मुझे करना चाहिए था।  जब आप गंभीर मानसिक बीमारी से उत्पन्न होने वाले हानिकारक दृष्टिकोणों को आंतरिक रूप से ग्रहण करते हैं, तो यह आपको अनोखा महसूस करा सकता है, और अनोखा महसूस करना लगभग उतना ही अच्छा है जितना कि खुश होना। बाहर न जाने की स्थिति में मैंने कुछ न कुछ लिखना शुरू कर दिया।

यह दर्शाता है कि मैंने अवसाद के साथ अपने रिश्ते को बदल दिया है और एक नए व्यक्ति के रूप में विकसित हुआ हूँ। पहचान को फिर से खोजना जितना डरावना है, यह प्रक्रिया मुक्तिदायक हो सकती है, जिससे आप एक उद्देश्य पा सकते हैं और अपनी क्षमता की खोज कर सकते हैं। यह आपकी अपनी इच्छाओं और जुनूनों पर विचार करने का अवसर है, बजाय इसके कि उनका उपयोग अनुपचारित मानसिक बीमारी से निपटने के लिए किया जाए। उदाहरण के लिए, मैं रचनात्मक लेखन में इसलिए आया क्योंकि मैं भावनात्मक रूप से खुद को शांत करना चाहता था। अब जब मेरी मानसिक ऊर्जा मानसिक बीमारी से जूझने में एकाधिकार नहीं रखती, तो मैं रचनात्मक लेखन में स्वस्थ तरीके से शामिल हो पाया हूँ।  मेरा लेखन वास्तव में बेहतर हो गया है।

लेकिन मेरे मानसिक स्वास्थ्य में पर्याप्त सुधार के साथ एक अजीबोगरीब दुष्प्रभाव भी आया – एक कम्पन। बेहतर होने पर, मुझे जल्दी ही पता चला कि मैंने अपने जीवन का इतना हिस्सा इस धारणा पर बनाया था कि मैं हमेशा दुखी रहूँगा। और जब खुशी कुछ हासिल करने लायक हो गई, तो मैंने जो पहचान विकसित की थी, उसका इस बीमारी के चलते अर्थ खो गया। मुझे अपनी बीमारी से रिटायरमेंट के बाद इस तरह जूझना पड़ेगा कभी सोचा न था। मेरी इस पार्किंसन  बीमारी के परिणाम कभी भी पूरी तरह से दूर नहीं होंगे – लक्षण भड़क सकते हैं और आपके जीवन के बुरे दौर की यादें बनी रहेंगी। अपने मानसिक स्वास्थ्य को सक्रिय रूप से संबोधित करने का मतलब यह नहीं है कि मानसिक बीमारियों के साथ आपके अनुभव अब आपके व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मानसिक बीमारी अब आपके जीवन और स्वयं की धारणा को प्रभावित नहीं करती है।

 इसे स्वीकार करें। यह रास्ता मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह ऐसी चुनौती नहीं है जिसका सामना आपको अकेले करना पड़े। किसी थेरेपिस्ट से बात करें। अपने दोस्तों और परिवार का सहारा लें। अपनी पहचान को अपनी “अजीब आदतों” के बजाय अपने जुनून के इर्द-गिर्द फिर से आकार देना मेहनत के लायक है। श्री पुष्कर दत्त शर्मा जी ने बताया कि मैंने अपनी ड्यूटी के साथ-साथ इस बीमारी से लड़ते हुए 103 कविताओं की एक पुस्तक, जिसका नाम ‘पुष्कर के उदगार’ है लिखी, जिसका विधिवत  विमोचन होने के बाद यह पुस्तक निशुल्क वितरित की गई। यह पुस्तक मेरा प्रथम प्रयास है तथा यह विभिन्न विषयों पर लिखी गई है।

 पुस्तक में लगभग 20 कविताएं कोरोना से संबंधित है जिसमें लोगों को कोरोना से लड़ने के लिए मोटिवेट किया गया है। लोगों द्वारा इस पुस्तक को बहुत पसंद किया गया क्योंकि विभिन्न विषयों पर लिखी गई यह पुस्तक सरलतम भाषा में लिखी गई है। तथा लेखन का कार्य अभी जारी है परंतु बीमारी मुझे हर प्रकार से घेर रही है। स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद भी मैंने बीमारी के सामने कभी घुटने नहीं टेके हैं तथा कहीं भी कोई आशा की किरण नजर आती है वहीं पहुंच जाता हूं तथा डॉक्टरों की बताएं अनुसार बीमारी से लड़ता रहता हूं। सरकारों से अनुरोध है कि इस बीमारी के रोकथाम के लिए तुरंत प्रभाव से वैक्सीन इत्यादि बनाकर लाखों मरीजों की परेशानी से मुक्ति दिलाने वाले कार्रवाई की जाए।

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