दहन स्रोतों से बिगड़ती हवा की गुणवत्ता।

‘‘स्वच्छ हवा हासिल करने के लिए हमें बेहतर विकल्पों या कुशल प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों की ओर जाना होगा।’’

नीति निर्माताओं को महामारी विज्ञान, पर्यावरण, ऊर्जा, परिवहन, सार्वजनिक नीति और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए। यह दृष्टिकोण जलवायु और वायु गुणवत्ता उपायों को गति देगा। हमें समझना होगा कि अधिकतम वायु प्रदूषण दहन स्रोतों से पैदा होता है। वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है। पराली, आतिशबाजी और इंडस्ट्री का धुआं घातक हो रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपनी कमाई के सिवाय कुछ नहीं कर रहा। इंडस्ट्रियल एरिया में पुराने टायर जलाकर जहरीला वायु प्रदूषण रोजाना पैदा किया जा रहा है इसे कोई नहीं रोक रहा। इसलिए स्वच्छ हवा हासिल करने का सबसे अच्छा तरीक़ा ये होगा कि फॉसिल ईंधन की खपत और उसे जुड़े उत्सर्जनों को कम किया जाए, जिसके लिए हमें बेहतर विकल्पों या कुशल प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों की ओर जाना होगा।

-डॉ सत्यवान सौरभ

नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो ) वायु प्रदूषण वातावरण में पदार्थों की उपस्थिति है जो मनुष्यों और अन्य जीवित प्राणियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, या जलवायु या सामग्री को नुक़सान पहुँचाते हैं। उत्तर भारत में सर्दियों की हवा की गुणवत्ता में गिरावट ने एक बार फिर विशेष रूप से समाज में सबसे कमजोर लोगों के बीच स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के नकारात्मक प्रभावों को उजागर किया है। पिछले कुछ सालों में ये एक सालाना रिवाज-सा बन गया है कि दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के दौरान प्रदूषण सुर्ख़ियों में रहता है, जो आमतौर पर दो-तीन महीने चलता है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में, साल में कम से कम आधे समय हवा ख़राब रहती है।

विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट, के अनुसार दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 भारत में हैं। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित इंडिया स्टेट लेवल डिजीज बर्डन इनिशिएटिव ने संकेत दिया कि भारत में बीते साल में 1.7 मिलियन मौतें हुई जिसके लिए वायु प्रदूषण ज़िम्मेदार थीं। किसानों के एक वर्ग ने, विशेष रूप से पंजाब में, गेहूँ की कटाई के बाद अवशेषों को जला दिया, भले ही चारे की कीमतें बढ़ गईं। कई किसान बताते हैं कि जल्दी में होने के कारण उन्होंने पराली जलाना शुरू कर दिया। 2023 में भारत में सभी मौतों के 17.8% और श्वसन, हृदय और अन्य सम्बंधित बीमारियों के 11.5% के लिए प्रदूषण का अत्यधिक स्तर ज़िम्मेदार है।

पराली जलाने से निपटने के लिए100% केंद्रीय वित्त पोषित योजना के तहत, ऐसी मशीनें जो किसानों को इन-सीटू प्रबंधन में मदद करती हैं-मिट्टी में वापस ठूंठ डालकर-व्यक्तिगत किसानों को 50% सब्सिडी और कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) पर प्रदान की जानी थी। जबकि हरियाणा ने अब तक 2, 879 सीएचसी स्थापित किए हैं और लगभग 16, 000 पुआल प्रबंधन मशीनें प्रदान की हैं, इसे 1, 500 और स्थापित करना है और लगभग उतनी ही पंचायतों को कवर करना है, जहाँ यह अब तक पहुँच चुका है।

इसी तरह, पंजाब, जिसने अब तक 50, 815 मशीनें प्रदान की हैं, को 5, 000 और सीएचसी स्थापित करने की आवश्यकता होगी-जबकि पहले से ही 7, 378 स्थापित किए जा चुके हैं-और इसकी 41 फीसदी पंचायतों तक पहुँच होनी चाहिए। केंद्र ने डीजल और पेट्रोल से चलने वाले वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने और भारत में इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा देने के लिए फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ (हाइब्रिड) और इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) इंडिया स्कीम शुरू की है। योजना को अधिक से अधिक अपनाने के लिए दो साल के लिए बढ़ा दिया गया है।

13 अगस्त, 2021 को लॉन्च की गई व्हीकल स्क्रैपेज पॉलिसी, भारतीय सड़कों पर पुराने वाहनों को आधुनिक और नए वाहनों से बदलने के लिए सरकार द्वारा वित्त पोषित कार्यक्रम है। इस नीति से प्रदूषण कम होने, रोजगार के अवसर सृजित होने और नए वाहनों की मांग बढ़ने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने और वायु गुणवत्ता में सुधार करने के लिए 2025 तक पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण के लक्ष्य को 20 प्रतिशत तक बढ़ाने की घोषणा की। अगस्त 2021 में, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया गया था, जिसका उद्देश्य 2022 तक एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक को समाप्त करना है। प्लास्टिक और ई-कचरा प्रबंधन के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व पेश किया गया है।

ग्रीन इंडिया मिशन का कार्यान्वयन भारत में पांच मिलियन हेक्टेयर की सीमा तक ग्रीन कलर बढ़ाने और अन्य पांच एमएचए पर मौजूद ग्रीन कवर की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए किया गया है। सरकार ने राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के प्रारूपण के साथ वायु प्रदूषण को एक अखिल भारतीय समस्या के रूप में स्वीकार किया, जिसका उद्देश्य पूरे भारत में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए संस्थागत क्षमता का निर्माण और उसे मज़बूत करना था, स्वास्थ्य प्रभावों को समझने के लिए स्वदेशी अध्ययन करना था।

नीति-निर्माण करते समय चाहे वह पराली जलाना हो या थर्मल पावर प्लांट उत्सर्जन, स्वास्थ्य पर उनके संभावित प्रभावों पर विचार किए बिना निर्णय किए जाते हैं। नीति निर्माताओं के बीच स्वास्थ्य की समझ की कमी के परिणामस्वरूप, नीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन समाज के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बहुत कम जानकारी के साथ किया जाता है। नीति के लिए एक जोखिम-केंद्रित दृष्टिकोण को प्राथमिकता देना जो जोखिम को कम करने में सबसे अधिक योगदान देती हैं और इस प्रकार स्वास्थ्य लाभ उत्पन्न करेगी। राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों में न केवल स्थानीय परिस्थितियों बल्कि कमजोर समूहों पर जोखिम के प्रभाव को भी शामिल करे। सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल ने वायु प्रदूषण नीतियों के विकास में स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने के आह्वान को प्रेरित किया है। फ्रंट-लाइन वायु प्रदूषण नियामकों को समाज की स्वास्थ्य आवश्यकताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए।

मुख्य रूप से स्वास्थ्य लाभों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए नीति निर्माताओं को महामारी विज्ञान, पर्यावरण, ऊर्जा, परिवहन, सार्वजनिक नीति और अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों को शामिल करना चाहिए। यह दृष्टिकोण जलवायु और वायु गुणवत्ता उपायों को गति देगा। हमें समझना होगा कि अधिकतम वायु प्रदूषण दहन स्रोतों से पैदा होता है। इसलिए स्वच्छ हवा हासिल करने का सबसे अच्छा तरीक़ा ये होगा कि फॉसिल ईंधन की खपत और उसे जुड़े उत्सर्जनों को कम किया जाए, जिसके लिए हमें बेहतर विकल्पों या कुशल प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों की ओर जाना होगा। दीवाली से पहले सभी शिक्षण संस्थाएँ छात्र-छात्राओं से शपथ करवाएँ कि वे आतिशबाजी नहीं करेंगे और पटाखे नहीं चलाएंगे। जवान हो या किसान, इंजीनियर हो या डॉक्टर, चपरासी हो या अधिकारी कानून सबके लिए एक है और सख्ती से लागू होना चाहिए।

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