फर्रुखाबाद। (आवाज न्यूज ब्यूरो) भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार दिल्ली के एट्रियम एनेक्सी के विशाल सभागार में भारत की बहुमूल्य अभिलेखीय सम्पदा की खोज करके संग्रहीत करने, सम्बर्धित और संरक्षित करने और इस विरासत को संस्कृति एवं पर्यटन विभाग के जनपथ स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार, दिल्ली को निःशुल्क दान देने के फलस्वरूप वरिष्ठ आई०ए०एस०, महानिदेशक अरुण सिंहल द्वारा यशभारती डॉ० रामकृष्ण राजपूत को अंगवस्त्र पहनाकर प्रतीकात्मक सम्मान प्रदान किया गया। इस एकल सम्मान के नायक डॉ० रामकृष्ण राजपूत के व्यक्तित्व को प्रदर्शित करते हुये सभागार की दीवार पर उनका बड़ा चित्र लगाया गया था। संस्कृत की 1194, अरबी-फारसी-उर्दू की 515, अंग्रेजी की 268, वेद-पुराण-उपनिषद-रामायण-महाभारत की 55, वृहद शब्दकोष 25, भारत के विभिन्न प्रदेशों की रजिस्ट्री के दस्तावेज 776, राजाओं-नवाबों-महापुरुषों के 130 दुर्लभ चित्र, 6 फरमान (रायल आर्डर्स), फर्रुखाबाद की कपड़ा छपाई की 3144 रंगीन हस्तनिर्मित डिजाइन्स को सौंपने के एम०ओ०यू० (समझौता पत्र) पर सभी के सम्मुख हस्ताक्षरोपरान्त भारत सरकार को दानस्वरूप सौंप दिया गया। सुश्री नीरा मिश्रा द्वारा डॉ० राजपूत को शाल उढ़ाकर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम में डॉ० राजपूत के व्यक्तित्व का परिचय सहायक निदेशक डॉ० अमिता दास मजूमदार तथा दान प्राप्त करने की अमूल्य श्रृंखला एवं औपचारिक प्रक्रिया के बारे में उपनिदेशक डॉ० संजय गर्ग द्वारा बताया गया। महानिदेशक श्री सिंहल द्वारा पाण्डुलिपियों, दुर्लभ पुस्तकों, पुरातात्विक अभिलेखों तथा राष्ट्रीय महत्व की प्राप्त सम्पूर्ण सामग्री को वैज्ञानिक संरक्षण, विस्तृत डाक्यूमेन्टेशन तथा डिजिटिलीकरण करने के उपरान्त यह सामग्री अभिलेखागार के पोर्टल-अभिलेख पटल (http://www.abhilekh-patal.njshui) पर डालकर विश्व भर के शोधार्थियों, विद्वानों, भाषाविदों, लेखकों व सामान्य जिज्ञासुओं के लाभार्थ निःशुल्क उपलब्ध कराई जायेगी। साथ ही डॉ० राजपूत या उनके उत्तराधिकारी प्रतिनिधि को कभी भी राष्ट्रीय अभिलेखागार में इस सामग्री को मूल रूप में देखने की सुविधा रहेगी। मुख्य अतिथि डॉ० राजपूत ने अपने द्वारा पाँच दशकों से संग्रहीत दुर्लभ दस्तावेजी सम्पदा को संस्कृति व पर्यटन विभाग को हस्तांतरित करते हुये हर्ष और भावविभोर होने की अनुभूति प्रकट की। उन्होंने अपने वक्तव्य में संग्रह और दान करने की
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प्रवृत्ति द्वारा भारतीय संस्कृति के सम्बर्धन और विकास करने के लिये सहयोग का आश्वासन दिया ताकि भारत का नाम विश्व पटल पर श्रेष्ठ बन सके। द्रोपदी ट्रस्ट की प्रधान सुश्री नीरा मिश्रा ने दो दशकों के अपने व डॉ० राजपूत द्वारा महाभारतकालीन तीर्थस्थल कम्पिल के इतिहास की खोज, संरक्षण, उत्खनन, लेखन आदि को सहेजने, संवारने और संरक्षण में सहयोग देने पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ खोजी कलमकार प्रदीप बिसारिया ने कन्नौज के इतिहास खोजने और किलों, टीलों, भग्नावशेषों, ग्रामीण अंचलों की डॉ० राजपूत के साथ यात्रायें करने पर प्रकाश डाला। पूर्व विधायक उर्मिला राजपूत ने अपने पति डॉ० राजपूत के जुनून, वेतन-पेंशन को इस अभिरुचि में लगाने तथा दर्जनों पुस्तकों के लेखन प्रकाशन के कारण परिवार के आर्थिक संकटों का उल्लेख करते हुये भी इस महादान की प्रशंसा करते हुये आत्मसन्तुष्टि व्यक्त की। उपनिदेशक डॉ० गर्ग ने अभिलेखागार की प्रक्रिया तथा कार्यशाला का निरीक्षण कराया।
राष्ट्रीय महत्व के इस अवसर पर विभाग के अधिकारी केशवचन्द्र जैना प्रभारी उपनिदेशक, डॉ० फैजान अहमद अभिलेख अधिकारी, मजीद अली खाँ सहायक निदेशक, राजमणि सहायक निदेशक (से०नि०), सुश्री सलमा अभिलेख अधिकारी, सुरेश यादव, विजय सिंह, चन्द्रपाल गुर्जर, धीरज कुमार सहायक आर्कियालिस्ट, श्रीमती देशाई, इण्टेक संस्था के वरिष्ठ शोध सहयोगी हरीश बेंजवाल तथा विशेष आमंत्रित सदस्य ‘आलोक’ संस्था के रामदास आई०आर०एस०, काशीराम, अनूप सिंह, किशनपाल, राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवि कमलेश भट्ट ‘कमल’, उप-निदेशक शिक्षा (से०नि०) कन्नौजी साहित्यकार डॉ० जगदीश व्योम, ‘कर्तव्य चक्र’ पत्रिका के सम्पादक रजनीकांत शुक्ल, पूर्व पुलिस अधिकारी नरेश शर्मा, पूर्व उपसचिव भारत सरकार नाथूराम शैलेन्द्र, नेहरू युवा केन्द्र के पूर्व लीगल मैनेजर अरविंद प्रताप सिंह, मो० आकिब खाँ, केशवभान साध, वरिष्ठ पत्रकार सुनील सक्सेना ‘शून्य’, फिल्म निर्माता लोधी राकेश राजपूत, एच०सी०एल० के सोहन (महाराष्ट्र), जनार्दन राजपूत एडवोकेट, कोमल राजपूत, अखिल गुप्ता युगल तथा समस्त घटनाक्रमों और ोजन की गतिविधियों को कैमरे में कैद करने वाले प्रत्यक्षदर्शी वरिष्ठ छायाकार रवीन्द्र भदौरिया इस सबके साक्षी बने। धीरज कुमार ने राजपूत परिवार को राष्ट्रीय संग्रहालय दिखाया।
डॉ० राजपूत के परिजनों-धर्मपत्नी उर्मिला राजपूत, पुत्र पंचशील राजपूत, पुत्रवधू उर्मिला राजपूत उर्फ अलका, पुत्री एकता राजपूत, दामाद अमित नारायण, पौत्र सिद्धार्थ राजपूत दौहित्र शौर्य नारायण दौहित्री आर्शिया नारायण को विशेष अतिथि का दर्जा प्रदान किया गया।