फिलहाल दिग्गजो से भेंट कर टटोल रहे विधानसभा क्षेत्र की नब्ज
बृजेश चतुर्वेदी
कन्नौज।(आवाज न्यूज ब्यूरो) सदर विधानसभा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने का मन बना चुके पूर्व आईपीएस अफसर असीम अरुण पार्टी के अन्य दावेदारों से सामंजस्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं। पार्टी के अन्य नेताओं की मजबूत दावेदारी के चलते असीम अरुण का जनसंपर्क अभियान शुरू नहीं हो सका हालांकि उन्होंने तिर्वा और कन्नौज के भाजपा कार्यकर्ताओं से मुलाकात की। वे कन्नौज में आर एस कठेरिया और तिर्वा में पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष विनोद गुप्ता तथा भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता आकाश गुप्ता से लंबी बातचीत कर इलाके के हालात का जायजा लिया। इसी बीच फिलहाल अन्य दावेदारों का कहना है कि टिकट सूची जारी होने के बाद ही सीट पर भाजपा प्रत्याशी की स्थिति साफ होगी।
जिले के खैरनगर के मूल निवासी असीम अरुण पुलिस कमिश्नर के पद से वीआरएस लेकर भाजपा में शामिल हुए हैं। बताया जा रहा है कि वे 167 कन्नौज सुरक्षित विधानसभा सीट से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। इस सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक बनवारी लाल दोहरे और तरुण चंद्रा समेत कई लोगों की दावेदारी है। ऐसे में सभी दावेदारों को अपने पाले में लाना असीम अरुण के सामने कड़ी चुनौती है। वे पार्टी के अन्य दावेदारों के साथ सामंजस्य बनाने में जुटे हैं। उन्होंने गौरियन पुरवा स्थित अपने पैतृक मकान पर बृजेंद्र सिंह तोमर, जिला महामंत्री भाजपा सौरभ कटियार, रामपाल कुशवाहा, संजय गुप्ता, रामबाबू कटियार, बादाम सिंह और सत्यदेव के साथ मुलाकात की। सूत्रों के अनुसार पार्टी के अन्य नेताओं की दावेदारी के चलते अभी असीम अरुण का क्षेत्र में जनसंपर्क अभियान विधिवत शुरू नहीं हो सका है।भाजपा से तीन बार विधायक रहे पूर्व बनवारी लाल दोहरे 2017 में कन्नौज सदर सीट पर सपा के अनिल दोहरे से करीब ढाई हजार वोटों से हार गए थे। क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है। बनवारी लाल दोहरे का कहना है कि अभी तक इस सीट पर उनकी मजबूत दावेदारी है और उन्हें सूची जारी होने का इंतजार है। सूची जारी होने के बाद बच्चों से विचार-विमर्श के बाद आगे की रणनीति बनाकर कोई फैसला लेंगे।
जिले में चुनाव लड़ने वाले पूर्व पुलिस अधिकारी असीम अरुण का कोई नया चेहरा नहीं है। इससे पहले 2012 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर डिप्टी एसपी से सेवानिवृत्त विश्राम सिंह कठेरिया ने चुनाव लड़ा था। उनके पक्ष में राहुल गांधी ने भी जनसभा की थी। इसके बाद भी जीत हासिल नहीं कर सके थे और उन्हें चौथे नंबर से संतोष करना पड़ा था।