’यूँ ही कोई इंदिरा गांधी नहीं बन जाता’, जानिए वो 5 फैसले जब आयरन लेडी ने पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था

नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो)। भारत और पाकिस्तान के बीच जैसे ही युद्धविराम की घोषणा हुई, सोशल मीडिया पर अचानक एक नाम फिर ट्रेंड करने लगा इंदिरा गांधी। साल 1971 का युद्ध हो या पोखरण का परमाणु परीक्षण, शरणार्थी संकट हो या अमेरिका का दबाव हर मोर्चे पर इंदिरा गांधी ने वो फैसले लिए जो इतिहास में “आयरन लेडी“ की छवि को अमर कर गए। आज जब भारत की सामरिक ताकत की बात होती है, तो उसकी नींव कहीं न कहीं उन्हीं के साहसिक निर्णयों में दिखाई देती है। आइए जानते हैं वो 5 मौके, जब इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को न केवल जवाब दिया, बल्कि घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया।
एक यूजर ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा – ’यूँ ही कोई इंदिरा गांधी नहीं बन जाता’,
इस रिपोर्ट में हम समझेंगे कि आखिर इंदिरा गांधी ने कब-कब पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा एक्शन लिया और भारत को रणनीतिक रूप से कैसे मजबूती दी।

  1. 1971 का युद्धः सिर्फ सैन्य नहीं, रणनीतिक विजय भी
    साल 1971 में पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (अब बांग्लादेश) में पाक सेना द्वारा बंगाली नागरिकों पर भयंकर अत्याचार हो रहे थे। लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत में घुसने लगे, जिससे देश की आंतरिक सुरक्षा और संसाधनों पर भारी दबाव पड़ने लगा। हालात को भांपते हुए जब पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला किया, तो 3 दिसंबर 1971 को इंदिरा गांधी ने निर्णायक फैसला लेते हुए युद्ध की घोषणा कर दी। भारतीय सेना ने केवल 13 दिनों में ऐतिहासिक विजय हासिल की और पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस युद्ध के नतीजे में बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में सामने आया और भारत की सैन्य व कूटनीतिक ताकत को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली।
  2. शिमला समझौताः युद्ध के बाद शांति का प्रयास
    विजय के बाद इंदिरा गांधी ने भारत की छवि एक जिम्मेदार लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में पेश की। जुलाई 1972 में उन्होंने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला समझौता किया, जिसमें युद्धबंदी रेखा को ’लाइन ऑफ कंट्रोल’ (स्वब्) का नाम दिया गया। यह समझौता भविष्य में किसी भी विवाद को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की नींव बना। इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के 93,000 युद्धबंदियों को बिना किसी शर्त सम्मानपूर्वक वापस भेजा, जिससे भारत की नैतिक श्रेष्ठता भी सिद्ध हुई, हालांकि इस कदम को लेकर कुछ वर्गों में आलोचना भी हुई।
  3. पोखरण परीक्षणः भारत बना परमाणु ताकत
    इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारत ने 18 मई 1974 को राजस्थान के पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया, जिसे कोडनेम दिया गया ैउपसपदह ठनककीं। यह भारत के लिए केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि एक सशक्त राजनीतिक और सामरिक संदेश भी था। इस परीक्षण से भारत ने दुनिया को यह जता दिया कि वह अब केवल पारंपरिक हथियारों तक सीमित नहीं, बल्कि परमाणु शक्ति संपन्न देश है। यह कदम पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के लिए स्पष्ट चेतावनी के रूप में भी देखा गया।
  4. शरणार्थी संकट से निपटने में साहसिक कदम
    बांग्लादेश में हो रहे नरसंहार के चलते जब लगभग एक करोड़ शरणार्थी भारत में प्रवेश कर गए, तो यह देश के लिए महज एक मानवीय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थकि संसाधनों का संकट बन गया। इंदिरा गांधी ने इसे भावनात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से देखा। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान के खिलाफ सशक्त पैरवी की, मगर जब वैश्विक समर्थन पर्याप्त नहीं मिला, तो उन्होंने सैन्य कार्रवाई का साहसिक फैसला लिया, जिससे न सिर्फ भारत को राहत मिली बल्कि बांग्लादेश के रूप में एक नया मित्र राष्ट्र भी मिला।
  5. अमेरिका-पाक गठजोड़ को ठुकराकर रूस का साथ चुना
    साल 1971 के युद्ध के दौरान जब अमेरिका ने पाकिस्तान के समर्थन में अपना परमाणु हथियारों से लैस युद्धपोत न्ै म्दजमतचतपेम बंगाल की खाड़ी में भेजा, तो यह भारत पर दबाव बनाने की कोशिश थी। लेकिन इंदिरा गांधी झुकी नहींं। उन्होंने अमेरिका के इस कदम को नजरअंदाज करते हुए रूस से रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया। उस समय भारत-सोवियत मैत्री संधि का असर साफ दिखा और भारत बिना किसी अंतरराष्ट्रीय दबाव में आए युद्ध को निर्णायक मोड़ तक ले जाने में सफल रहा। यह इंदिरा गांधी की कूटनीतिक दृढ़ता का प्रतीक बन गया।

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