कन्नौज : जिला सृजन के बावजूद यहाँ कभी नही गली बसपा की दाल


इस बार भी सपा भाजपा में ही सीधी भिड़ंत के आसार

बृजेश चतुर्वेदी

कन्नौज।(आवाज न्यूज ब्यूरो)  दुनिया भर में इत्रनगरी के नाम से मशहूर कन्नौज प्रदेश की सियासत में भी अपनी खुशबू बिखेर रही है। 1997 में कन्नौज जिला बनने के बाद से कन्नौज सदर सीट पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। 2017 में मोदी लहर होने के बावजूद यहां भाजपा को कामयाबी नहीं मिली। इस बार सपा के गढ़ पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा ने पूर्व पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को चुनाव मैदान में उतारा है। सपा से तीन बार विधायक रह चुके अनिल दोहरे को असीम अरुण कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पिछली बार भी भाजपा ने अनिल दोहरे को कड़ी टक्कर दी थी। वह महज 2454 मतों के अंतर से जीते थे। कांग्रेस ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राम भरोसे की पुत्रवधू विनीता देवी पर भरोसा जताया है, तो बसपा से समरजीत दोहरे ताल ठोक रहे हैं।

कन्नौज का सियासी मिजाज राममंदिर आंदोलन के दौरान बदला। इसी मिजाज का असर था कि 1991 में भाजपा के बनवारी लाल न केवल जीते, बल्कि 1993 और 1996 में भी जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाई। पर, 2002 में यहां एक बार फिर सियासी मिजाज बदला और सपा से कल्यान सिंह दोहरे चुने गए। उनके बाद 2007 से 2017 तक अनिल दोहरे यहां साइकिल दौड़ाने में कामयाब रहे। लगातार चार बार सपा के इस सीट पर जीत दर्ज करने से इसे सपा का गढ़ माना जाने लगा।

यहां से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव सांसद रह चुकी हैं। ऐसे में यह सीट सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल भी है। देखना होगा कि वर्दी छोड़कर सियासी अखाड़े में उतरे पूर्व आईपीएस अफसर असीम अरुण क्या इस सीट को भाजपा के खाते में ला पाने में कामयाब होते हैं कि नहीं। असीम अरुण के पिता श्रीराम अरुण प्रदेश के डीजीपी रह चुके हैं। बहरहाल, उनके यहां से ताल ठोकने से यह सीट यूपी ही नहीं पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। वहीं विधायक अनिल दोहरे की बात करें तो उनके पिता बिहारी लाल दोहरे भी इस सीट से तीन बार जीत चुके हैं। पत्नी सुनीता दोहरे जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं। अनिल दोहरे 2014 से 2017 तक एससी-एसटी कमेटी के चेयरमैन भी रहे।

यहाँ चुनावी चर्चा छिड़ते ही मतदाता मुखर को कर कहते हैं, इस बार शिक्षा, रोजगार, सड़क और पानी बड़ा मुद्दा हैं। चुनाव के दौरान प्रत्याशी बड़े-बड़े दावे करते हैं, मगर चुनाव जीतते ही विधायक चार साल तक देखने तक नहीं आते हैं। इस बार हम अच्छे प्रत्याशी को वोट देंगे। व्यापारी कहते हैं, राजनीतिक पार्टियां व्यापारियों की अनदेखी करती हैं। कोरोना के चलते व्यवसाय चौपट हो रहा है। इस पर कोई भी नेता बोलने को तैयार नहीं है।

उनका कहना है अब राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है। सभी दल सियासी नफा-नुकसान के आधार पर प्रत्याशी चुनते हैं। इस वजह से जातिवादी राजनीति को बढ़ावा मिल रहा है, जो कि समाज के लिए नुकसानदायक है। शहर के कई युवा रोजगार पर सवाल खड़ा करते हैं। वह कहते हैं, बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है। गरीबों के हित के लिए कोई बात करने को तैयार नहीं है। इस बार जनता उसी को वोट देगी, जो गरीबों के लिए काम करेगा।अतीत में झांकें तो इस सीट पर कांग्रेस ने पांच बार अपना परचम फहराया। जनसंघ, भारतीय क्रांति दल ने भी बीच-बीच में जीत दर्ज कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। सपा ने चार बार तो भाजपा ने इस सीट पर तीन बार विजय हासिल की। भाजपा से बनवारी लाल दोहरे और सपा से अनिल दोहरे हैट्रिक लगा चुके हैं। पर, बसपा इस सीट पर जीत का स्वाद कभी नहीं चख पाई। जबकि यह सीट सुरक्षित की श्रेणी में हैं। इस विधान सभा सीट पर वोटो का गणित कुछ इस तरह है। यहाँ लगभग

एससी 1 लाख, मुस्लिम 70 हजार, ब्राह्मण 45 हजार, यादव  45 हजार, पिछड़ा वर्ग  50 हजार, लोधी  30 हजार क्षत्रिय  15 हजार, कुशवाहा  40 हजार अन्य  30 हजार के आसपास है। बीते  चुनाव में यहां अनिल कुमार दोहरे, सपा  99,635
बनवारी लाल दोहरे, भाजपा  97,181, अनुराग सिंह, बसपा को 44,182 वोट मिले थे।

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