नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो) सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के कई रिटायर्ड जजों और वरिष्ठ वकीलों ने मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा को पत्र लिखकर यूपी में बुलडोजर एक्शन और गिरफ्तारियों पर संज्ञान लेने की मांग की है। 6 रिटायर्ड जजों समेत 12 लोगों ने पैगंबर मोहम्मद विवाद के संदर्भ में पत्र में लिखा कि हाल में यूपी के कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके बाद बड़े पैमाने पर लोगों को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया। घरों को बुलडोजर से तोड़ दिया गया। ये कार्रवाई गैरकानूनी है, नियमों के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट को इस पर संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए।
पत्र लिखने वालों में 12 जाने-माने लोग हैं। इनमें सुप्रीम कोर्ट के 3 पूर्व जज हैं- जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी, जस्टिस वी. गोपाला गौड़ा, जस्टिस एके गांगुली। इनके अलावा दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज के. चंद्रू, कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व जज मोहम्मद अनवर भी हैं। पत्र लिखने वालों में इनके अलावा सीनियर एडवोकेट शांति भूषण, इंदिरा जयसिंह, चंदर उदय सिंह, श्रीराम पांचू, प्रशांत भूषण और आनंद ग्रोवर भी शामिल हैं।
लाइव लॉ के मुताबिक, इस लेटर पिटीशन में आरोप लगाया गया है कि प्रदर्शनकारियों का पक्ष सुनने और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की इजाजत देने के बजाय यूपी में प्रशासन उनके खिलाफ हिंसक कार्रवाई कर रहा है। खुद मुख्यमंत्री अधिकारियों को ऐसी कार्रवाई के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने कथित रूप से अधिकारियों से कहा है कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की ऐसी मिसाल बनाई जाए कि कोई भी अपराध करने या कानून को हाथ में लेने की हिम्मत न कर सके। गैरकानूनी प्रदर्शन करने वालों पर एनएसए, गैंगस्टर कानून जैसे कड़े कानून लगाने का भी निर्देश दिया गया है। उनके ऐसे बयानों से पुलिस को प्रदर्शनकारियों को बेरहमी से और गैरकानूनी रूप से प्रताड़ित करने के लिए प्रोत्साहन मिला है।
लेटर में आगे आरोप लगाते हुए कहा गया कि यूपी पुलिस ने प्रदर्शन करने के आरोप में 300 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया है और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की हैं। कई ऐसे वीडियो सामने आए हैं, जिनमें पुलिस कस्टडी में नौजवानों को लाठियों से पीटा जा रहा है, प्रदर्शन करने वालों के घर बिना नोटिस दिए तोड़े जा रहे हैं, अल्पसंख्यक समुदाय के प्रदर्शनकारियों को दौड़ा-दौड़ाकर पीटा जा रहा है। कानून के शासन में ये सब स्वीकार्य नहीं है। संविधान और मौलिक अधिकारों का मजाक बना दिया गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस मसले पर संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी आम जनता से जुड़े मामलों पर संज्ञान लेकर निर्देश दिए हैं।