हरियाणा की बीजेपी नेत्री सोनाली सोनाली फोगाट की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. डॉक्टर्स ने मौत का कारण दिल का दौरा पड़ना बताया है लेकिन परिवार ने दावा किया है कि सोनाली फोगाटकी हत्या हुई है. सोनाली की बहन रुपेश ने मीडिया से बताया है कि उन्होंने मौत से पहले ही अपनी मां से फोन में बात की थी और कहा था कि ‘खाने में कुछ गड़बड़ है, जिसका असर मेरे शरीर में पड़ रहा है’ सोनाली फोगाट के परिवार का कहना है कि यह मौत नहीं बल्कि हत्या है और इसकी जांच सीबीआई को करनी चाहिए। सोनाली फोगाट का मर्डर हुआ या हार्ट अटैक से उनकी जान गई यह अब जांच का विषय बन गया है. सोनाली की बहन ने कहा है कि रविवार को ही सोनाली की उनकी माँ से बात हुई है. वह बिल्कुल ठीक थी और अपने फार्म हाउस में थीं. लेकिन माँ से उन्होंने कहा था कि उन्हें अपने शरीर में कुछ गड़बड़ लग रही है जैसे किसी ने मेरे साथ कुछ किया हो. शाम को भी सोनाली की अपनी माँ से बात हुई थी. जिसमे उन्होंने कहा था ‘मेरे खिलाफ साज़िश रची जा रही है. 22 से 25 अगस्त तक सोनाली फोगाट गोवा टूर में गई हुई थी. काम के सिलसिले में वह मुंबई से गोवा गई थीं. लेकिन जिस दिन वो वहां गईं ठीक उसी दिन की रात सोनाली की हार्ट अटैक से मौत हो गई. सोनाली की एक बेटी है जो अब अनाथ हो गई है क्योंकि कुछ सालों पहले ही सोनाली के पति की भी मौत हो चुकी है. आखिर इस नेता का क्या हुआ ये तो वक्त ही बताएगा. मगर देश में राजनीतिक हत्याओं का दौर नया नहीं है.
आज़ादी से पहले पुणे के लोगों द्वारा उठाए गए अन्याय को समाप्त करने के लिए, चापेकर भाइयों ने 22 जून 1897 को रैंड और उनके सैन्य अनुरक्षण लेफ्टिनेंट आयर्स्ट को गोली मार दी। ऑस्ट्रिया-हंगरी के आर्कड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड की हत्या। गैवरिलो प्रिंसिप के हाथों उनकी मृत्यु – एक सर्बियाई राष्ट्रवादी, जो गुप्त सैन्य समूह से संबंध रखता है जिसे ब्लैक हैंड के रूप में जाना जाता है – ने प्रमुख यूरोपीय सैन्य शक्तियों को लाखों और लाखों मौतों के साथ युद्ध की ओर प्रेरित किया। टिकट मिलने या न मिलने, नेता की नजर में चढ़ने या गिरने, सत्ता में हिस्सेदारी की संभावना बनने या बिगड़ने के कारण गुस्से, इस्तीफों तथा नए आश्चर्यजनक गठबंधनों का दौर कभी खत्म नहीं होता। इन मतभेदों का एक गंभीर पक्ष है, राजनीतिक हिंसा। शिखर नेताओं पर हुए खतरनाक हमलों से भारत की राजनीति भी विषाक्त है। अब्राहम लिंकन, जॉन एफ कैनेडी, इंदिरा गांधी और बेनजीर भुट्टो की जीवन ज्योति उनके राजनीतिक जीवन के चरम पर बुझा दी गई। आजादी के बाद से राजनीतिक हत्याओं का दौर भारत के राजनीतिक जीवन को भी लहूलुहान करता आया है। भारत को आजादी मिले छह महीने भी नहीं हुए थे कि महात्मा गांधी की हत्या ने दुनिया को हिला दिया। वर्ष 1953 में कश्मीर की शेष भारत के साथ एकता का आंदोलन करने वाले डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की श्रीनगर की जेल में रहस्यमय मृत्यु हो गई थी।
उसे अटल बिहारी वाजपेयी ने शेख और नेहरू की दुरभिसंधि से की गई राजनीतिक हत्या बताया था। उसकी तो जांच तक नहीं की गई, जबकि श्यामा प्रसाद मुखर्जी नेहरू सरकार में पहले उद्योग मंत्री और भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष थे। जनसंघ के दूसरे अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय 1968 में मुगलसराय स्टेशन पर मृत पाए गए थे। उनकी रहस्यमय हत्या की साधारण जिला स्तरीय जांच हुई। पंजाब के ताकतवर मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों की 1965 में रोहतक में हत्या कर दी गई और इसका कारण व्यक्तिगत दुश्मनी बताया गया। तब यह मुद्दा भी उठा था कि अधिनायकवादी तौर पर काम करने वाले कैरों के राजनीतिक शत्रुओं की क्या कमी हो सकती है। फिर नागरवाला हत्याकांड हुआ। नागरवाला ने कथित तौर पर इंदिरा गांधी की आवाज बदलकर स्टेट बैंक से 60 लाख रुपये निकलवाए थे। नागरवाला पकड़े गए और हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए और बाद में इस मामले में जांच कर रहे अधिकारी की भी रहस्यमय मृत्यु हो गई। भारत की तीसरी प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को 09:20 पर उनके सफदरजंग रोड, नई दिल्ली स्थित आवास पर हत्या कर दी गई थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद, अमृतसर में स्वर्ण मंदिर पर भारतीय सेना के जून 1984 के हमले के बाद, उसके दो अंगरक्षकों, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने उसे मार डाला, जिससे सिख मंदिर को भारी नुकसान हुआ। अगले चार दिनों में, जवाबी हिंसा में हजारों सिख मारे गए।
यदि आप राजनीति का हिस्सा बनने की आकांक्षा रखते हैं तो आपको राजनीति विज्ञान का अध्ययन करना आवश्यक है। आधुनिक दौर में राजनीति अब नौसिखियों की समझ से परे हो रही है। नतीजन राजनीति के मैदान में टिकना अब परंपरागत दिग्गजों तक सीमित रह गया है। शख्सियत का फायदा राजनीति में परंपरागत नजरिये से उचित माना जाता है। बदलावों के दौर में राजनीति करना किसी चुनौती से कम नहीं आंका जा सकता। अब तो राजनीति करने की लालसा, वंशवादिता और संपर्कवादिता तक सीमित रह गयी है। वंशवादिता में राजनीति का कमान मिलना वंशपरंपरा के अधीन रहता है तो दूसरी ओर संपर्कवादिता के जरिए किसी बडे राजनेता के संपर्क में आने से राजनीतिक कमान प्राप्त करने की अभिलाषा पूर्ण हो जाती है। कहावत है कि “राजनीति एक गंदा खेल है”। मौजूदा समय में बड़े कारोबारी, फिल्मकार, खिलाडी, विद्वान सहित पत्रकार एवं नौकरशाह जैसे लोगों की राजनीति में न केवल रुचि बढी है अपितु वे राजनीति की महत्ता को भी समझने लगे हैं। अब राजनीति अपने अछूतपन से बरी हो चुकी है। सकारात्मक नजरिए से देखें तो नौजवानों की आवश्यकता राजनीतिक परिवेश में राष्ट्र निर्माण के लिए जरूरी है बर्शते वे नौजवान समाज और लोकतंत्र में सच्चे भाव एवं निष्ठा से राजनीति में आए और समाज को सही राह पर ले जाने की क्षमता रखें। प्रतिस्पर्धा पहले की तुलना अधिक बढ़ी है। अब राजनीति करने की लालसा रखने वालों को अपनी क्षमता और कौशल के बलबूते पर ही राजनीति में प्रवेश मिल सकता है। लेकिन नए खिलाडियों के लिए यह सोनाली की तरह जान के खतरों से कम भी नहीं है।