वन विभाग की भूमि पर काबिज पट्टेदारों को हटाने गये अधिकारियों को ग्रामीणों ने घेरा,बैरंग वापस

जिम्मेदारों को बचाने के लिये हो रही लीपापोती

फर्रुखाबाद। (आवाज न्यूज ब्यूरो) वन विभाग की भूमि को खाली कराने पहुंचे अधिकारियों को ग्रामीणों के विरोध के चलते बैरंग वापस लौटना पड़ा। ग्रामीण महिलाएं हाथों में लाठी और दरांती देकर आ गयी और किसी भी कीमत पर भूमि खाली ना करने की चेतावनी दे डाली। वहीं फर्जी पट्टे करने के दोषी तत्कालीन एसडीएम नरेंद्र कुमार और अन्य अधिकारियों पर कार्यवाही के नाम पर केवल जबाब तलब कर इतिश्री कर ली गयी, जबकि पूरे मामले में एक मोटी रकम लेकर फर्जी पट्टे करनें की ग्रामीणों के बाच चर्चा थी। अब उन्हें बचाने की कवायद हो रही है!
मामले में पूर्व प्रधान रामवरन वर्मा का कहना है कि मौजा सबलपुर में 4 हजार बीघा जमीन 2009 में तत्कालीन प्रधान सुरेश बाबू ने कुल 174 लोगों के पट्टे किये थे। उसके बाद 2014 में सरकारी कर्मचारियों द्वारा 68 पट्टे और किये गये। जिसका 26 जून 2016 को अमल दरामद भी हो गया है। प्रशासन ने बिना पट्टेदारों का पक्ष सुने उनके पट्टे निरस्त कर वन विभाग के सुपुर्द करनें की तैयारी कर ली। पूर्व प्रधान का आरोप है कि जब 102 नम्बर में ग्राम सभा की 80 बीघा भूमि पर प्रधान के परिजनों का गन्ना खड़ा है उसे जिला प्रशासन खाली नही करा रहा। उधर पट्टे निरस्त होंने की भनक से दर्जनों महिलाओं और ग्रामीण खेतों में ही लाठी, डंडा और दरांती देकर धरनें पर बैठ गये। गुरुवार को दोपहर एसडीएम अमृतपुर प्रीती तिवारी, तहसीलदार संतोष कुमार कुशवाहा आदि मौके पर आ गये। उन्होंने फोर्स के साथ पट्टे खाली कराने का फरमान जारी किया। जिस पर मौके पर मौजूद लाठी-डंडा और दरांती लिए महिलाओं ने जिला प्रशासन को खरी-खोंटी सुना दी। प्रशासन और पुलिस के आगे आंदोलित ग्रामीण भारी पड़े और कई घंटे चली चक-चक के बाद सभी बैरगं लौट गये।
बीते वर्ष 2014 में 68 लोगों को 125 एकड़ जमीन के पट्टे दिए गए थे। 10 सितंबर 2021 को जब ग्राम प्रधान ने तहसील में अभिलेख देखे तो सच सामने आया। प्राथमिक जांच में पता चला है कि तहसील के आर-6 रजिस्टर के पृष्ठ संख्या 357 से 360 तक फाड़कर वहां नए चिपकाने के बाद दूसरे लोगों के नाम इंद्राज (दर्ज) किए गए। फर्जी पट्टेदारों से शिकायत करा उनके पक्ष में प्रमाणपत्र भी जारी कर दिए। इन पन्नों में ही पूरी जमीन का हिसाब दर्ज था। जिसके बाद 24 सितम्बर 2021 को तत्कालीन डीएम मानवेंद्र सिंह ने मामला संज्ञान में लिया। फर्जी तरीके से दर्ज किए नाम निरस्त कर जांच एडीएम को सौंपी।
तत्कालीन एसडीएम सहित अन्य की भूमिका संदिग्ध है। तत्कालीन एसडीएम नरेंद्र कुमार व पूर्व में तैनात रहे बृजेंद्र कुमार के अलावा तहसीलदार संतोष कुमार कुशवाहा, प्रभारी रजिस्ट्रार कानूनगो कन्हैयालाल व एसडीएम के पेशकार शिशुपाल से जवाब मांगा गया था। मजे की बात यह है कि जब बात अपने साथी को बचानें की हो तो अधिकारी बड़ी से बड़ी कालिख को बड़े करीने से साफ करते हैं। लिहाजा इसमे भी जाँच में जिम्मेदार दोषी अफसरों को बचाने का प्रयास हो रहा है। मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराकर यह साबित किया कि किस तरह से साहब को बचाया जाये। मामले की विवेचना कर रहे दारोगा सुनील यादव चैकी इंचार्ज अमृतपुर ने बताया कि सीडीओ की जाँच रिपोर्ट आने का इंतजार है। उसके बाद कार्यवाही आगे बढायी जायेगी।

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