निकाय चुनाव मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राज्य सरकार को राहत

अब पिछड़ा वर्ग आयोग देगा 31 मार्च तक अपनी रिपोर्ट, तीन सप्ताह बाद फिर होगी सुनवाई

नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो) उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। हाईकोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण ही तत्काल चुनाव कराने का आदेश दिया था। राज्य सरकार को इससे राहत मिल गई है।  सुप्रीम कोर्ट ने जल्द चुनाव कराने के हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के साथ ही नया नोटिफिकेशन जारी करने को कहा है। मामले पर अब 3 सप्ताह बाद सुनवाई होगी। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर संज्ञान लिया। पीठ ने निर्देश दिया कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त आयोग को 31 मार्च, 2023 तक स्थानीय निकाय चुनाव के लिए ओबीसी आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर फैसला करना होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्वाचित प्रतिनिधियों के कार्यकाल की समाप्ति के बाद स्थानीय निकाय मामलों के संचालन के लिए प्रशासकों की नियुक्ति करने की अनुमति भी दे दी कोर्ट ने हालांकि कहा कि प्रशासकों के पास महत्वपूर्ण नीतिगत फैसले लेने की शक्तियां नहीं होंगी।

उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने बिना ओबीसी आरक्षण ही तत्काल चुनाव कराने का आदेश दिया था। इसी के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी। हाईकोर्ट के फैसले के तत्काल बाद राज्य सरकार ने ओबीसी के ट्रिपल टेस्ट के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग भी बना दिया था।

हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने वैभव पांडेय समेत कुल 93 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के निकाय चुनावों के लिए जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया था। इस ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के जरिए सरकार ने एससी, एसटी व ओबीसी के लिए आरक्षण प्रस्तावित किया था। न्यायालय ने कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्देशित ट्रिपल टेस्ट के बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं लागू किया जाएगा। कोर्ट ने एससी/एसटी वर्ग को छोड़कर बाकी सभी सीटों को सामान्य सीटों के तौर पर अधिसूचित करने का आदेश दिया था। हालांकि न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि महिला आरक्षण संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार दिए जाए। न्यायालय ने सरकार को निकाय चुनावों की अधिसूचना तत्काल जारी करने का आदेश दिया था। यह भी टिप्पणी की है कि यह संवैधानिक अधिदेश है कि वर्तमान निकायों के कार्यकाल समाप्त होने तक चुनाव करा लिए जाएं।

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि के. कृष्ण मूर्ति व किशनराव गवली मामलों में दिए गए ट्रिपल टेस्ट फार्मूले को अपनाए बगैर ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता। संविधान के अनुच्छेद 243-यू के तहत निकायों के कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व चुनाव करा लेने चाहिए जबकि ट्रिपल टेस्ट कराने में काफी वक्त लग सकता है, लिहाजा निकायों के लोकतान्त्रिक स्वरूप को मजबूत रखने के लिए व संवैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि निकाय चुनाव जल्द करा लिए जाएं।

हाईकोर्ट के फैसले के बाद योगी सरकार ने साफ किया कि बिना ओबीसी आरक्षण चुनाव नहीं होगा। फैसले के अगले ही दिन ओबीसी आरक्षण देने के लिए आयोग का गठन कर दिया गया। आयोग में अध्यक्ष के साथ चार सदस्यों को नामित किया गया है। आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीश राम अवतार सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। सेवानिवृत्त आईएएस चोब सिंह वर्मा, पूर्व आईएएस महेंद्र कुमार, पूर्व अपर विधि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा तथा पूर्व अपर विधि परामर्शी व अपर जिला जज ब्रजेश कुमार को सदस्य नामित किया गया है। इसके साथ ही सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई थी।

शीर्ष अदालत के निर्णयों के तहत ट्रिपल टेस्ट में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के लिए एक समर्पित आयोग का गठन किया जाता है जो स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति व प्रभाव की जांच करता है, तत्पश्चात ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को प्रस्तावित किया जाता है तथा उक्त आयोग को यह भी सुनिश्चित करना होता है कि एससी, एसटी व ओबीसी का कुल आरक्षण पचास प्रतिशत से अधिक न होने पाए।

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