अखिलेश यादव का दलित वोट बैंक पर फोकस, बदली रणनीति से मायावती और बीजेपी की बढ़ेगी मुश्किल

‘‘यूपी में दलित वोट बैंक की अहम भूमिका है’’
लखनऊ।।(आवाज न्यूज ब्यूरो)
समाजवादी पार्टी की कोलकाता में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मंथन लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर हुआ, लेकिन कहीं न कहीं इस कार्यकारिणी की बैठक में मैनपुरी मॉडल भी खूब चर्चा में रहा। क्योंकि जिस तरीके से मैनपुरी में समाजवादी पार्टी ने बड़ी जीत हासिल की उसमें अहम भूमिका दलित वोट बैंक की भी रही। केवल मैनपुरी ही नहीं बल्कि खतौली में भी सपा गठबंधन को जो जीत मिली उसमें भी दलित खासतौर से जाटव समाज की भूमिका अहम रही और अब 2024 लोकसभा चुनाव को लेकर समाजवादी पार्टी 50 सीटें जीतने की जो बात कह रही है उसमें दलित वोट बैंक काफी महत्वपूर्ण भूमिका में रहने वाला है। इसीलिए पार्टी ने अपना फोकस इस समाज से आने वाले दो वरिष्ठ नेताओं पर कर दिया है।
बताते चलें इनमें एक हैं अवधेश प्रसाद जो आपको अखिलेश यादव के साथ हर जगह नजर आ जाएंगे। वह पासी बिरादरी से आते हैं। तो दूसरे हैं वरिष्ठ नेता केंद्र सरकार में मंत्री रहे रामजीलाल सुमन जो जाटव समाज से आते हैं। अब पार्टी ने यह तय किया है कि इन्हें पार्टी के दलित फेस के तौर पर आगे रखा जाएगा और इसकी शुरुआत भी कोलकाता में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी से हो चुका है जहां दोनों को मंच पर जगह दी गयी। जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य, लालजी वर्मा, राम अचल राजभर जैसे तमाम नेताओं को तरजीह नहीं दी गई।
चाहे विधानसभा की बात हो पार्टी की बैठकों की बात हो या फिर कोलकाता की बैठक हो, अवधेश प्रसाद तो हर वक्त आपको अखिलेश यादव के साथ उनके बगल में नजर आ जाएंगे। कभी जिस तरह से राजेंद्र चौधरी अखिलेश यादव के साथ साए की तरह रहते थे अब अवधेश प्रसाद आपको नजर आएंगे। अवधेश प्रसाद अखिलेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं। वहीं रामजीलाल सुमन नेताजी के बेहद करीबी रहे हैं। कई बार वह पार्टी की कमियों को लेकर सार्वजनिक मंचों पर अपनी बात भी रख चुके हैं। अब पार्टी की कोशिश है कि इन दो नेताओं के जरिए खासतौर से दलित समाज को अपने साथ जोड़ा जाए।
समाजवादी पार्टी जो कभी ’एम वाई’ समीकरण पर चुनावी रणनीति अपनी तैयार करती थी अब उसके दलित वोट बैंक पर शिफ्ट होने के पीछे एक बड़ी वजह है। प्रदेश में तकरीबन 11 फीसदी जाटव समाज का वोट है, और 3 फीसदी पासी समाज का वोट है। इसके अलावा 2 फ़ीसदी अन्य दलित समाज का वोट बैंक है। इसीलिए समाजवादी पार्टी को लग रहा है कि 2022 में जिस तरीके से बसपा का वोट प्रतिशत घटकर 12 फ़ीसदी के आसपास रह गया है इसका फायदा वह 2024 में उठा सकती है।
समाजवादी पार्टी को यह भी पता है कि 2014 से लेकर 2022 तक बीजेपी को जो जीत मिली है उसमें दलित वोट बैंक की अहम भूमिका है और वह इसीलिए अब इस रणनीति पर काम कर रही है कि अगर उसने इसमें सेंधमारी कर दी तो शायद बीजेपी के विजय रथ को रोकने में कामयाब हो जाए। लेकिन बीजेपी साफ तौर पर कह रही है कि समाजवादी पार्टी की हकीकत पिछड़ा समाज दलित समाज बहुत अच्छी तरह जानते हैं इसीलिए उस समाज ने समाजवादी पार्टी से दूरी बनाई है। समाजवादी पार्टी केवल इसलिए सत्ता हासिल करना चाहती है कि वह अपने निजी स्वार्थ को पूरा कर सके।
हालांकि बीजेपी ने यूपी में बीते 4 चुनाव में अपनी रणनीति दलित वोट बैंक को साथ कैसे रखा जाए इसके इर्द-गिर्द ही बनाई है और अब समाजवादी पार्टी की कोशिश है कि इस वोट बैंक में सेंधमारी करके बीजेपी को हराया जाए। जाहिर है जिस तरह से बहुजन समाज पार्टी का जो कोर वोटर है उसके बीच ही पार्टी की स्थिति कमजोर हुई है। इसीलिए दूसरे दल लगातार अब इस वोट बैंक पर नजर गड़ाए बैठे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि सत्ता की चाबी उसे ही मिलेगी जिसके साथ यह वोटर जाएगा।

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