सर्दी में बच्चों और बुजुर्गों का रखें खास ख्याल , निमोनिया व अन्य बीमारियों से बचाव जरूरी , बुजुर्ग सर्दी जनित बीमारी से ग्रसित होने पर न करें लापरवाही
फर्रुखाबाद । (आवाज न्यूज ब्यूरो) सर्दी बढ़ने के साथ ही बच्चों व बुजुर्गों की सेहत का खास ख्याल रखना बहुत जरूरी हो जाता है, क्योंकि मौसम का यह बदला मिजाज बुजुर्गों और बच्चों को बीमार बना सकता है | ठंड बढ़ने के साथ ही निमोनिया एवं अन्य सर्दी जनित बीमारियों – खाँसी, जुकाम, बुखार के साथ ही सर्दी के कारण होने वाले डायरिया की चपेट में उनके आने की ज्यादा संभावना रहती है | यह बच्चों और बुजुर्गों के जीवन पर भारी पड़ सकता है | यह कहना है जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ. प्रभात वर्मा का | डॉ वर्मा ने कहा कि निमोनिया एक गंभीर बीमारी है जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती है। हालांकि यह सबसे ज्यादा पांच साल तक के बच्चों को प्रभावित करती है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु का प्रमुख कारण निमोनिया ही है। डॉ वर्मा ने कहा कि नवजात और छोटे बच्चे अपनी परेशानी के बारे में खुलकर नहीं बता सकते इसलिए छोटे बच्चों में निमोनिया के लक्षणों को पहचानना बहुत ही जरूरी है। यदि समय रहते निमोनिया के लक्षणों को पहचान लिया जाए तो अनेक बच्चों की जान बचाई जा सकती है। लगभग 16 प्रतिशत बच्चे को न्युमोकॉकल जीवाणु प्रभावित करता है जिससे बचाव के लिए जनपद में सभी स्वास्थ्य केन्द्रों और टीकाकरण सत्रों के माध्यम से पी.सी.वी. टीका दिया जाता है । डॉ वर्मा ने कहा कि तेज सांस लेना, कफ की आवाज आना आदि भी निमोनिया का संकेत हो सकते हैं। सामान्य से अधिक तेज़ सांस या सांस लेने में परेशानी, सांस लेते या खांसते समय छाती में दर्द, खांसी के साथ पीले, हरे या जंग के रंग का बलगम, बुखार, कंपकंपी या ठंड लगना, पसीना आना, होंठ या नाखून नीले होना, उल्टी होना, पेट या सीने के निचले हिस्से में दर्द होना, कंपकंपी, शरीर में दर्द, मांसपेशियों में दर्द भी निमोनिया के लक्षण हैं।डॉ राममनोहर लोहिया चिकित्सालय (महिला) के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शिवाषीश उपाध्याय का कहना है कि निमोनिया फेफड़ों में होने वाला संक्रमण है जो बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस आदि के कारण होता है। इससे फेफड़ों की वायु कोष्ठिका में सूजन हो जाती है या उसमें तरल पदार्थ भर जाता है। कई बार निमोनिया गंभीर रूप धारण कर लेता है। निमोनिया के लक्षण सर्दी जुकाम के लक्षणों से बहुत हद तक मिलते हैं। इसलिए जब भी ऐसा लगे तो पहले इसके लक्षणों को पहचान लेना बहुत जरूरी है।डॉ शिवाषीश ने बताया कि जब से बच्चों को डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह पर निमोनिया से बचाने के लिए टीकाकरण होने लगा है तब से इनके मामलों में कमी आई है |अब मुश्किल से 15 से 20 प्रतिशत ही बच्चे निमोनिया से ग्रसित होकर अस्पताल आते हैं |