श्री सत्यवान ‘सौरभ’ हरियाणा के प्रतिष्ठित साहित्यकार हैं जिन्होंने गीत, ग़ज़ल, कविता, दोहे आदि अनेक साहित्यिक विधाओं के साथ ही विपुल मात्रा में विभिन्न विषयों पर लेखों का सृजन किया है। श्री सत्यवान ‘सौरभ’ वर्तमान में हरियाणा सरकार के चिकित्सा विभाग में वेटरनरी इंस्पेक्टर हैं। आजीविका की व्यस्तताओं के उपरांत भी वे अंग्रेजी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में समान्तर लेखन कर रहे हैं। देश विदेश की सैंकड़ों पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं का निरन्तर प्रकाशन हो रहा है।’ तितली है खामोश’ दोहा संग्रह, उनकी दूसरी प्रकाशित पुस्तक है जिसमें वर्ष 2005 से 2021 के बीच सोलह सालों में लिखे गए दोहों का संग्रह है। उनकी पहली पुस्तक ‘यादें’ सोलह वर्ष की आयु में प्रकाशित हुई थी। दूसरी पुस्तक के इतनी देरी से आने का कारण लेखक ने यह बताया है कि इस अन्तराल में उसने अपने कृतित्व को जिया और भोगा है।
हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ में अठहत्तर शीर्षकों में विभक्त सात सौ पच्चीस दोहे हैं। इसके अतिरिक्त ‘उपहार’ शीर्षक में जीवन संगिनी श्रीमती प्रियंका सौरभ को समर्पित दो दोहे और ‘बुरे समय की आंधियां’ शीर्षक से सात अतिरिक्त दोहे हैं। श्री सत्यवान ‘सौरभ’ का यह पुस्तक अपने माता-पिता श्रीमती कौशल्या देवी एवं रामकुमार गैदर के साथ ही अपने सास-ससुर श्रीमती रौशनी देवी और सुमेर सिंह उब्बा को समर्पित करना, उनके कवि मन की विशालता एवं निर्मलता को दर्शाता है। कवि अपने माता-पिता के साथ ही पत्नी के माता-पिता को भी समान महत्त्व प्रदान करता है। कवि की पत्नी को सम्मान प्रदान करने की यह भावना स्तुत्य एवं अनुकरणीय है। यह सोच ही नारी सशक्तीकरण की आधारशिला है।
‘तितली है खामोश’ कृति के दोहे कवि के व्यक्तिगत जीवन के साथ ही सामाजिक जीवन के अनुभवों का यथार्थ चित्रण करते हैं। इन दोहों में विषय की विविधता है। जीवन के विविध पक्षों पर कवि ने मौलिक दृष्टि से चिन्तन किया है। जीवन की तमाम विसंगतियों के बीच भी कवि का स्वर आशावादी है। ‘आशाओं के रंग’ शीर्षक के इस दोहे में कवि कठिन परिस्थितियों में भी साहस से काम लेने का प्रेरणादायक संदेश देते हुए कहता है –
“छाले पाँवों में पड़े, मान न लेना हार।
काँटों में ही है छुपा, फूलों का उपहार।।” (पृष्ठ 1)
‘सहमा – सहमा आज’ शीर्षक के दोहों में कवि ने आज के समय की विसंगतियों का चित्रण किया है। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कवि का कहना है –
” दफ्तर थाने कोर्ट सब, देते उनका साथ।
नियम-कायदे भूलकर, गर्म करे जो हाथ।।” (पृष्ठ 6)
‘सत्य भरे सब तथ्य’ शीर्षक के अन्तर्गत इस दोहे में कवि सच्चाई की दुर्दशा पर व्यथित होकर कह उठता है –
“‘सौरभ’ कड़वे सत्य से, गए हजारों रूठ।
सीख रहा हूँ बोलना, अब मैं मीठा झूठ।। ” (पृष्ठ 9)
‘ पंछी डूबे दर्द में ‘ शीर्षक के अन्तर्गत दिए गए दोहों में समाज में आए बदलावों का सजीव वर्णन है। अब न तो पहले जैसे प्रेमी व्यक्ति रहे और न ही पहले जैसा वातावरण। संवेदनाओं का क्षरण वर्तमान समय की त्रासदी है। समीक्ष्य कृति का नामकरण ‘तितली है खामोश’ जिस दोहे के आधार पर किया गया है, उसमें कवि इसी पीड़ा को उकेरता हुआ कहता है –
” सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश।
जुगनू की बारात से, गायब है अब जोश।।” (पृष्ठ 30)
आज तथाकथित धर्म मानव को जोड़ने के स्थान पर उसे एक – दूसरे से पृथक करने का कार्य कर रहे हैं। ‘जात – धर्म की फूट’ शीर्षक के अन्तर्गत इस तरह के भेद-भाव पर कवि निर्भय होकर कहता है –
” गैया हिन्दू हो गई, औ’ बकरा इस्लाम।
पशुओं के भी हो गए, जाति – धर्म से नाम।।” (पृष्ठ 50)
बचपन, जीवन का स्वर्णिम काल होता है। यह समय बच्चों के लिए पढ़ – लिखकर अपना भविष्य सँवारने का होता है। किन्तु विडम्बना है कि बचपन के इस अनमोल समय में कुछ बच्चे कूड़ा – करकट बीनकर अपना पेट पालने के लिए विवश हैं । ‘बचपन के वो गीत’ शीर्षक वाले इस दोहे में कवि का कहना है –
” स्याही कलम दवात से, सजने थे जो हाथ।
कूड़ा – करकट बीनते, नाप रहे फुटपाथ।।” (पृष्ठ 74)
मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने में ही जीवन का सार है। जब धन के कारण मन बँटने लगता है तो सब कुछ उजड़ा- उजड़ा लगने लगता है। सब कुछ होते हुए भी मन खिन्न रहता है। ‘बाँटे मन के खेत’ शीर्षक में सम्मिलित इस दोहे में कवि का यह कहना बिल्कुल सही है –
“जब दौलत की लालसा, बाँटे मन के खेत ।
ठूँठा – ठूँठा जग लगे, जीवन बंजर रेत।।” (पृष्ठ 104)
उक्त कतिपय उदाहरणों से स्पष्ट है कि श्री सत्यवान ‘सौरभ’ एक संवेदनशील रचनाकार हैं, जिन्होंने अपने भोगे हुए यथार्थ को यथातथ्य अभिव्यक्त किया है। समीक्ष्य कृति के सभी दोहे हृदयग्राही एवं सरस हैं। एक – एक दोहा पाठक के मन और मस्तिष्क को झकझोरता हुआ युगीन सत्य से परिचित कराता है। कवि का कथन पाठक को अपनी ही भावाभिव्यक्ति लगता है। इन दोहों में काव्य सौन्दर्य के साथ ही भावों का सफलतापूर्वक संप्रेषण और भाषागत प्रवाह दर्शनीय है।
‘तितली है खामोश’ दोहा संग्रह के दोहों की भाषा आमजन की भाषा है। भावों के अनुरूप भाषा का प्रयोग सम्प्रेषणीयता को और भी प्रभावशाली बनाता है। कबीर की तरह कवि की भाषा – शैली आडम्बर से मुक्त है। दोहों में मुहावरों और अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग देखते ही बनता है। आकर्षक आवरण और त्रुटि रहित मुद्रण कृति की सुन्दरता को द्विगुणित करते हैं। कृति की स्तरीय विपुल सामग्री, पाठक को आत्मसंतुष्टि देने के साथ ही उसकी चेतना को चिन्तन के नये आयाम प्रदान करती है। यह कृति कविवर श्री सत्यवान ‘सौरभ’ को साहित्य जगत में स्थापित करने के लिए निश्चित रूप से सहायक सिद्ध होगी।