राहुल ही सबके निशाने पर क्यों ?

बृजेश चतुर्वेदी
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस में अंतर्कलह काफी तेजी से चल रही है। वरिष्ठ नेता जिनका अपना कोई जनाधार नही रहा, राज्यसभा के रास्ते से लम्बे अर्से से सत्ता में मंत्री व अन्य पदों पर रहकर सुख भोगते रहे है। कांग्रेस वर्तमान स्थितियों में इतनी मजबूत नही है न ही उसके पास संख्या बल है कि इन बड़े-बड़े नेताओं को राज्यसभा दे सकें। यही नही जल्दी भविष्य में कांग्रेस पार्टी की ऐसी स्थिति नही दिखायी दे रही है कि गुलाब नबी आजाद, कपिल सिब्बल जैसे तमाम वरिष्ठ नेता जो लम्बे अर्से तक सत्ता में ही रहे है उन्हें राज्यसभा भेज सकें। वरिष्ठ नेताओं की 23 सदस्यीय टीम जो राहुल गांधी की आक्रामक कार्यशैली के साथ मिलकर विपक्ष की अहम भूमिका नही निभा सकती है। बेचैन होकर कांग्रेस के यही नेता अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए पार्टी तोड़ सकते हैं ? इनमें गुलाब नबी आजाद की अगुवाई में कई नेता जिस तरह से कांग्रेस नेतृत्व पर इशारों में बयानबाजी कर रहे है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकियां बढा रहे है उससे पार्टी टूटने के संकेत मिल रहे है।गुलाब नबी आजाद जम्मू कश्मीर से आते हैं लेकिन कांग्रेस मे हमेशा महत्वपूर्ण पदों पर रहे। केन्द्र में वर्षाे तक मंत्री और उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों के प्रभारी रहे। उत्तर प्रदेश में तीन बार प्रभारी रहे गुलाब नबी आजाद के नेतृत्व में कांग्रेस की बहुत बुरी पराजय होती रही है। सुविधाभोगी अरबों की संपत्ति बनाये कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता नही चाहते है कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सीधा और तीखा हमला करें। क्योंकि सत्ता में रहते हुए अकूत धन अर्जित करने वाले कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सीबीआई, ईडी और आयकर जैसे तमाम केंद्रीय जांच एंजेसियों के निशाने पर नहीं आना चाहते है। अरबों की संपत्ति रखने वाले सुविधा भोगी नेता पूरी तरह से मोदी की जांच एंजेसियों के दबाव में है और अपने बचाव में राहुल को कमजोर करने के लिए पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

देश के दो बड़े उद्योगपति अंडानी अंबानी की पसन्द भी राहुल गांधी नही है क्योंकि राहुल लगातार इन दोंनों उद्योगपतियों पर हमला कर रहे है। वर्तमान में जो राजनीतिक हालात और सियासत चल रही उसमें स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि राहुल गांधी के आक्रामक तेवर से मोदी कही न कही डरे व दबाव में है। उनका लक्ष्य है कि राहुल गांधी को उन्ही के घर में घेर दिया जाये जिससे कि विधानसभा चुनाव व आने वाले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस काफी कमजोर हो। सियासत में विरोध सीधा दिखायी नही देता लेकिन पीछे से जो घटनाक्रम हो रहे हैं, जिस तरह से ममता को अडानी के साथ मिलकर आगे किया जा रहा है क्योंकि बिना पैसे से सियासत नही होती और ममता और अडानी की मुलाकात से यह लग रहा है कि कांग्रेस को कमजोर करने के लिए ममता को सियासत के लिए काफी धनराशि मिल सकती है। उद्योगपति अडानी के इसी आश्वासन और समर्थन से उत्साहित ममता पूरे देश भर में कांग्रेस नेताओं को टीएमसी से जोड़ रही है क्योंकि राहुल गांधी इन दो बड़े उद्योगपतियों के निशाने पर है।यही नही चर्चा तो यह शुरू हो गयी है कि जिस तरह से प्रिंयका गांधी की हाईटेक रैलियां मोदी की तर्ज पर होने लगी है। उनमें भी राहुल गांधी को पसन्द न करने वाले बड़े उद्योगपति प्रिंयका की मदद कर रहे है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी में केंद्र में 2004 से 2014 तक कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़े रहते थे। अब करोड़ो रुपये प्रिंयका की सियासत में उत्तर प्रदेश में खर्च हो रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों? क्या प्रिंयका भी राहुल के खिलाफ बड़े कांग्रेस नेताओं और दो बड़े उद्योगपतियों जिन पर राहुल सीधा हमला करते है उनसे मिलकर पार्टी पर कब्जा करना चाहती है ? इसके पीछे तमाम राजनीतिक परिस्थितियां 2019 लोकसभा चुनाव के बाद अभी तक दिखायी दे रही है उसमें प्रिंयका की महत्वाकांक्षा स्पष्ट रूप से पार्टी पर कब्जा करने की दिखायी दे रही है।
2019 लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद राहुल गांधी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश प्रभारी के रुप में अमेठी संसदीय क्षेत्र की परम्परागत पारिवारिक सीट हारने के बाद भी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश प्रभारी पद से इस्तीफा नही दिया। आखिर ऐसा क्यों ? प्रिंयका के साथ प्रदेश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी बनाये गये ज्योतिरादित्य सिंधिया जो प्रिंयका के काफी नजदीकी माने जाते थे भाजपा में क्यों गये ? राहुल की टीम के जितिन प्रसाद को प्रियंका ने अपमानित किया और जितिन भी सम्मान बचाने के लिए भाजपा में चले गये। यही नही नेहरू गांधी से तीन पीढ़ियों के साथ लगातार तीन पीढ़ी सियासत करने वाले कमलपति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेश मणि त्रिपाठी जो राहुल गांधी के काफी नजदीक थे उन्हें प्रिंयका ने अपमानित करके पार्टी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। ललितेश त्रिपाठी टीएमसी में शामिल हो गये। ऐसी तमाम परिस्थितियां जो सियासत में दिखायी देती है वही राजनीतिक विश्लेषण का आधार होती है। जो हालात है उसमें राहुल को कमजोर करने के लिए हर स्तर से प्रयास जारी है कांग्रेस के आधार विहीन सत्ता की लालसा रखने वाले जांच एंजेसियों से डरे नेताओं को कांग्रेस पार्टी तोड़ने के लिए आगे किया गया है प्रियंका गांधी वाड्रा की आर्थिक मदद हो रही है क्योंकि राहुल गांधी जिन उद्योगपतियों पर हमला करते है उनकी पसन्द प्रियंका हो सकती है ? उद्योगपति यह भी जानते है कि कांग्रेस चाहे जितना कमजोर हो देश में भाजपा के बाद सबसे अधिक ताकतवर कांग्रेस ही रहेगी।
सत्ता किसी की जागीर नही होती। लोकतंत्र है जनता बदलेगी तो राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का स्थायी विकल्प कांग्रेस ही होगी। इन तमाम राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर यही अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा और सत्ता के बल पर व्यवसाय में गुणात्मक बढ़ोत्तरी करने वाले उद्योगपति पूरा प्रयास करेंगे राहुल कमजोर हो इसके लिए पार्टी टूटे ? कांग्रेस में भाई बहन के बीच दरार बढ़े प्रियंका को आर्थिक मदद देकर मीडिया के माध्यम से राहुल से बडा नेता साबित करने का प्रयास किया जाय। तीसरे मोर्चे के नाम पर ममता को आगे किया जाये। यह सभी कार्य होते हुए दिखायी दे रहे है ? आने वाला समय बतायेगा कि कांग्रेस और राहुल गांधी को कमजोर करने की रणनीति कितनी सफल होती हैं।

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