भाजपा हारी, भाजपाई जीत गए

  बृजेश चतुर्वेदी

कन्नौज।(आवाज न्यूज ब्यूरो)  भाजपा के पुराने मूल कार्यकर्ता या बरसों से उसे वोट दे रहे सपोर्टर से बात कीजिए हर 4 में से एक भाजपा को अकेले बहुमत न मिलने, कम सीटें मिलने पर दुखी, कुछ अफसोस, कुछ कारण बताता हुआ लास्ट में यह जरूर कहेगा लेकिन ठीक हुआ…इतना जरूरी था…,अब इनके दिमाग ठीक हो जाएंगे…,अब ये ठीक करेंगे…कोई सुनने ही वाला नहीं था…। आप अपने आसपास नजर डालिए भाजपा को समर्थन करने वाले घरों पर, हर चार घरों में आप पाएंगे कि कम से कम 4 या 6 /8 लोगो ने इस चुनाव में वोट ही नहीं दिया है। वे चाहें 50 किलोमीटर दूर पढ़ रहे हों  या 5 सौ किलोमीटर दूर नौकरी। वे चाहें 75 साल के हों या नई नवेली बहूं। इन में से ज्यादातर वो मध्यमवर्गीय हैं जिनके लिए 100/200 या हजार दो हजार रु खर्च कर आना मुश्किल नहीं था लेकिन ये आए नहीं। इसी में छुपा है ये राज कि भाजपाई अपनी 10 साल की केंद्र या 7 साल की प्रदेश सरकार के कामकाज से कहीं असहज हो चुके थे। अयोध्या में राम मंदिर से वह खुश थे और और भविष्य में यू सी सी, जनसंख्या नियंत्रण बिल की उन्हें उम्मीद और विश्वास था। प्रदेश में मुख्तार, अतीक जैसे माफियाओं के फिल्मी किस्सों से अंदर तक कहीं हिला और अल्पसंख्यकों द्वारा भीड़ बन प्रशासन को झुका लेने और नियम कानून को ठेंगे पर रखने की चली आ रही परिपाटी पर लगाम लगाने की योगी के असंभव से कामों को संभव बना देने से तो आम जन मानस उनका फैन और कहीं कहीं भक्त तक हो गया था।महिलाएं, सड़कों पर सुरक्षा को लेकर विशेष रूप से योगी का आभार व्यक्त कर रहीं थी। इसके बावजूद सरकारी मशीनरी ने अपने क्रिया कलापों से भाजपाई कार्यकर्ता को कहीं न कहीं इतना हताश निराश और खलास कर दिया था कि वह  कमल खिलाने के लिए बूथ पर सभी परिजनों और पड़ोसियों के साथ नहीं गया। आखिर क्यों न हो ये कार्यकर्ता हताश?   तहसीलदार छोड़ो लेखपाल भी उसके चेक रोड या कब्जे पर धत करने को तैयार नहीं हैं। थाने में दरोगा जी उसकी बिना पैसे लिए सुन ही नहीं रहे हैं और उस के बाद भी किंतु परंतु कर रहे हैं। अस्पताल में डाक्टर साहब उसके  आला लगाने के बजाय ये बता रहे हैं कि मंत्री जी हमको बहुत मानते हैं। ब्लॉक में बीडीओ साहब उसके कहने से न फर्जी शौचालय की जांच करा रहे है न गरीब को आवास दिलाने पर हां कर रहे हैं। टीचर की पोस्टिंग तो ऑनलाइन हो गई टीचर जी देर से आती हैं यह भी ए बी एस ए साहब नहीं सुन रहे हैं। नगर पालिका/नगर निगम वाले उसके घर के बाहर से कूड़ा अब भी जल्दी नहीं हटाते हैं। आखिर भाजपा कार्यकर्ता को अपनी सरकार आ गई इसका आभास होगा कैसे ? यह वह हक हैं जो हर आम नागरिक का है। बसपा सरकार में हरिजन एक्ट झेलने और सपा सरकार में लट्ठ खाने के बाद वह बूथ पर जूझा, लड़ा, वोट डलवाए तब दिल्ली और लखनऊ में लगातार 4 बार कमल खिला। फिर कह दिया गया 24 में भी खिलाओ। सुनने वाला कोई नहीं। मोदी परिवार का सदस्य होने के बाद भी उसके मन की बात, नहीं जीभ से रोज चिल्लाने पर भी कोई सुन नहीं रहा। योगी का वकील बनके सड़कों पर सपाई और दूसरे  उपद्रियों से चौराहों से बूथ तक  पर लड़ने वाले इस कार्यकर्ता की बात पंचम तल के कमरों के अंदर नहीं पहुंच पा रही थी। अब बचे विधायक ,सांसद, जिलाध्यक्ष। इनके लिए तो बात यहां से शुरू की जाए हरि अनंत हरि कथा अनंता। आप अपने अपने जिले में  नजर दौड़ाएं। या तो सांसद की विधायक से नहीं पट रही होगी या विधायक की जिलाध्यक्ष से या तीनो की आपस में खटपट होगी। हां मंच पर सभी एक दूसरे को लोकप्रिय, जनप्रिय, जननायक बताते हुए कसीदे काढ़ रहे होंगे। या फिर सांसद विधायक अगर भले या नए हैं तो उनकी कमान उनके आसपास मंडराने वाले छुटभइयाें ने थाम ली होगी जो पूरी तरह से डग्गामारी में लगे होंगे। ये जातिवाद का जहर भी घोल रहे होंगे और भाजपा से जुड़े लोगो को सांसद विधायक से जोड़कर उनकी मदद करने के बजाय इन्होंने अपने गैंग बना लिए हैं, जिनसे स्वाभिमानी भाजपाई बात भी नहीं करना चाहते हैं। फिर उम्मीद आकर रुकती है संघ पर। अपने 45 साल के सामाजिक और अखबारी जीवन में मैने उनकी बात को सब को सुनते देखा है।वस्तुतः उनकी कोई बात होती ही नहीं थी। वे तो संघ/भाजपा से  जुड़े स्वयं सेवक पर जब कोई संकट आता था तो उसकी बात स्थानीय प्रभावी नेता या सांसद विधायक से कह देते थे और उस पर तुरंत अनुकूल निर्णय होता था। इस बार तो स्थिति बिल्कुल उलट हैं।या तो संघ से जुड़े लोग भी हेल्पलेस हैं या नाराज या उनको भी ब्यूहरचना कर डग्गामारों ने घेर रखा था या कहीं कहीं तो तहसीलों में खुद ही उनका बड़ा दरबार लगा हुआ है और आपसी तालमेल हवा में है। अपनी ही सरकार की अपनी ही मशीनरी से नाराज और कहीं कहीं दुखी कार्यकर्ता ने जाने अंजाने अपने ही मातृ संगठन (संघ) से भी दूरी बना ली और बस डग्गामारो ने उन्हें घेर लिया। ऐसे में बसपा या सपा से जुड़ा कार्यकर्ता तो अपना काम किसी न किसी से जुड़कर या किसी पैमाने पर फिट होकर काम बनाए ले रहा था लेकिन मूल भाजपाई मुंह लटकाए बैठा था। यही लटका मुंह इस बार अपने ही घर के एक दो सदस्यों को बूथ पर जाने के लिए जिद नहीं कर पाया। बस लग गया काम। अब आप करते रहिए समीक्षा, पन्ना प्रमुख, बूथ अध्यक्ष, कमेटी और मंडल अध्यक्ष क्या करते रहै। इसका अर्थ यह कदापि नही कि कांग्रेस और सपा के जोरदार चुनावी अभियान को मै खारिज कर रहा हूं। पेपर लीक, आरक्षण, संविधान परिवर्तन, बेरोजगारी मुद्दे थे और रहे और इन्होंने जनता पर असर भी डाला।

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