नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो) भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई भी तलाकशुदा मुस्लिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं। 10 जुलाई को भारत के सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता दिए जाने पर एक अहम फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 की धारा 125 के तहत अपने तलाकशुदा पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने दो अलग-अलग लेकिन एकमत फैसलों में यह बात कही। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सिर्फ शादीशुदा महिलाओं पर ही नहीं बल्कि सभी महिलाओं पर लागू होगी।
किस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला
अब्दुल समद नाम के एक शख्स ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने के तेलंगाना हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। तलाकशुदा महिला ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि समद ने उसे तीन तलाक दिया है। फैमिली कोर्ट ने 20 हजार रुपये प्रति महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। इसके बाद समद ने हाई कोर्ट में अपील की, जिसने 13 दिसंबर, 2023 को मामले का निपटारा करते हुए कहा, कई सवाल उठाए गए हैं, जिन पर फैसले लेने की जरूरत है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में हर महीने दस हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। इसके बाद समद ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 धर्मनिरपेक्ष कानून पर हावी नहीं होगा। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अपने फैसले में कहा, हम इस नतीजे के साथ आपराधिक अपील खारिज कर रहे हैं कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी, ना कि सिर्फ विवाहित महिलाओं पर।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्यों है अहम
सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के महत्व को समझने के लिए 1985 में शाहबानो मामले पर वापस जाना होगा। इस ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी पर लागू होती है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। हालांकि, मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा इसे कमजोर कर दिया गया, जिसमें कहा गया कि मुस्लिम महिला केवल इद्दत के दौरान (तलाक के 90 दिन बाद) ही गुजारा भत्ता मांग सकती है। साल 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने 1986 के अधिनियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, लेकिन फैसला सुनाया कि तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने का पुरुष का दायित्व तब तक जारी रहेगा जब तक वह दोबारा शादी नहीं कर लेती या खुद का भरण-पोषण करने में सक्षम नहीं हो जाती।
क्या है सीआरपीसी की धारा 125?
दरअसल पत्नी के गुजारे भत्ते का मामला भले ही सिविल श्रेणी में आता हो लेकिन इसे कानून में इसे अपराध प्रक्रिया संहिता सीआरपीसी में धारा 125 के रुप में जगह दी गई है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 में पत्नी, बच्चों और माता-पिता के भरण-पोषण को लेकर विस्तार से बताया गया है। इसमें कहा गया है कि अगर पर्याप्त साधनों वाला कोई व्यक्ति अपनी पत्नी का भरण-पोषण करने में उपेक्षा करता है या इनकार करता है जो अपना गुजारा चलाने में असमर्थ है, या फिर उसका वैध या नाजायज नाबालिग बच्चा, चाहे वह विवाहित हो या न हो, अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है तो वह गुजारा भत्ते का दावा कर सकते हैं। इसके अलावा इसी धारा के तहत माता या पिता भी गुजारा भत्ते का दावा कर सकते हैं, हालांकि उन्हें दावा करते समय यह बताना होगा कि उनके पास आजीविका का कोई और साधन उपलब्ध नहीं है।
इन दावों के साबित होने पर फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को अपनी पत्नी या ऐसे बच्चे, पिता या माता के गुजारा भत्ता देने का आदेश जारी कर सकता है। गुजारा भत्ता कितना होगा यह भी मजिस्ट्रेट तय कर सकता है और कोर्ट के आदेश के बाद व्यक्ति को हर महीने एक तय राशि देनी होगी। 10 जुलाई के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने तलाकशुदा महिला के सीआरपीसी के तहत गुजारा भत्ता मांगने के आदेश को और मजबूत कर दिया है, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो।
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