लाभार्थी परक योजनाएं जीत का आधार बने तो विपक्ष का नामलेवा न बचे

बृजेश चतुर्वेदी


राजनीतिक दलों के बीच मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह की घोषणाएँ की जा रही है। बिजली फ्री, पानी फ्री, सिंचाई फ्री, राशन फ्री, स्कूटी फ्री, लैपटॉप फ्री, टेबलेट फ्री, मोबाइल फ्री आदि फ्री देने के वादे की होड़ मची हुई है लेकिन वास्तविकता यह है कि अगर व्यक्तिगत लाभ और फ्री योजनाओं से सरकार बनती तो भाजपा के खिलाफ गैर भाजपा दलों की जमानत जब्त हो जानी चाहिए। 7 जनवरी 2022 को योगी सरकार ने सभी समाचार पत्रों में कई पेज के विज्ञापन छापे थे जिसमें व्यक्तिगत  लाभार्थी परक योजनाओं से लाभान्वित होने वाली संख्या का उल्लेख किया गया है। उनकी कुल संख्या 31 करोड़ से भी अधिक होती है जबकि प्रदेश की जनसंख्या 23 करोड़ और मतदाता 15.5 करोड़ है। विज्ञापन में लाभार्थियों की कुल संख्या 31 करोड़ से अधिक बताई गई है। इसका मतलब यह है कि अगर मतदाताओं की संख्या को लें तो प्रदेश के प्रत्येक मतदाता को कम से कम 2 योजनाओं का लाभ मिल ही रहा है। 7 जनवरी 2022 को योगी सरकार ने लाभार्थियों की जो संख्या बताई थी उसमें 15 करोड़ को निशुल्क राशन दिया जा रहा है। 2 करोड़ 54 लाख को किसान सम्मान निधि से लाभान्वित किया जा रहा है। 6 करोड़ 51 लाख को आयुष्मान भारत योजना से लाभ मिला है। 2 करोड़ 61 लाख परिवारों को स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय दिया गया है। सौभाग्य योजना के तहत 1 करोड़ 41 लाख निशुल्क विधुत कनेक्शन दिया गया है। 1 करोड़ 67 लाख को प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत निशुल्क रसोई गैस कनेक्शन दिया गया है। 42 लाख को प्रधानमंत्री आवास दिया गया है। 10  लाख 93 हजार बेटियों को मुख्यमंत्री कन्या सुमगला योजना के तहत लाभान्वित किया गया है। 2 लाख 68 हजार बेटियां की सामूहिक विवाह योजना के तहत शादी कराई गई है। 98 लाख 28 हजार विभिन्न पेंशन योजनाओं से लाभान्वित किया गया है। 4 लाख 50 हजार को सरकारी नौकरी दी गयी है। इन व्यक्तिगत लाभार्थियों की संख्या 31 से अधिक होती है। अगर इस तरह व्यक्तिगत लाभ सरकार बनाने का आधार है तो निश्चित रूप से गैर भाजपा दलों की जमानत जब्त हो जानी चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता इसके पूर्व की सपा- बसपा सरकारों ने भी कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से व्यक्तिगत लाभ पहुँचाये थे लेकिन उन्हें इनका लाभ नहीं मिला। यह अलग बात है कि पूर्व सरकारों में फ्री योजनाओं का लाभ भाजपा की डबल इंजन की सरकार की तुलना में बहुत कम होता है लेकिन इतना जरूर था कि अगर लाभार्थी तत्कालीन सरकारों को मत देते तो बहुमत की सरकारें बनती लेकिन न पूर्व में हुआ और न वर्तमान में पूर्व के इतिहास को देखते हुए यह उम्मीद की जानी चाहिए कि मतदाता कल्याणकारी योजनाओं से लाभ लेकर लाभ देने वाली सरकारों को चुनते हैं।

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