लखनऊ। (आवाज न्यूज ब्यूरो) सातवें चरण के मतदान में पीएम मोदी,अखिलेश यादव सहित कई दिग्गजों व केंद्रीय मंत्रियों की अग्नि परीक्षा होगी। वर्चस्व कायम रखने की जंग को देखें तो उससे भी बहुत कुछ चीजें साफ हो जाती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, गृहमंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत तमाम केंद्रीय मंत्री व नेता अंतिम चरण की सीटों को जीतने के लिए सभी 9 जिलों को मथ रहे हैं। वहीं सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव भी गाजीपुर, आजमगढ़, मऊ और जौनपुर व भदोही जैसे अपने गढ़ को वापस पाने के लिए पूरा दमखम दिखा रही है। किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि चुनाव के अंतिम चरण में बने सियासी चक्रव्यूह को भेदना दोनों दलों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
इस बार पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी जैसे ज्यादातर माफिया चेहरे मैदान में नहीं हैं। पर सियासी पंडितों का मानना है कि इससे भाजपा की राहें बहुत आसान होती नजर नहीं आतीं। सामाजिक समीकरणों एवं जातीय गणित के चलते वाराणसी से बलिया तक का मैदान भाजपा के लिए 2014 से पहले चुनौतीपूर्ण माना जाता था। पर 2014 में नरेंद्र मोदी के वाराणसी संसदीय सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ने के साथ इस क्षेत्र में भाजपा का परचम फहराना शुरू हुआ।
2017 में इस इलाके की 54 सीटों में से दो तिहाई भाजपा या उसके सहयोगी दलों ने जीतकर यह साबित कर दिया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश का यह इलाका अब कमल के लिए बंजर नहीं रहा है। तब भाजपा को अपना दल के अलावा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर का साथ मिला था।
ओमप्रकाश राजभर की अपनी बिरादरी में कितनी पकड़ व पहुंच है, यह सवाल अपनी जगह है, लेकिन सातवें चरण के तहत आने वाली इन 54 सीटों में ज्यादातर पर राजभर मतदाता अच्छी तादाद में हैं। कहीं-कहीं इनकी आबादी 60 हजार से 1 लाख तक है। सियासी पंडितों का मानना है कि 2017 में राजभर बिरादरी का ज्यादातर वोट भाजपा के खाते में गया था। पर इस बार समीकरण अलग हैं। हालांकि ओमप्रकाश राजभर अपनी बिरादरी के 100 प्रतिशत वोट सपा गठबंधन के साथ होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन कई सीटों पर भाजपा ने भी इसी बिरादरी के उम्मीदवारों को उतारकर मजबूत विकल्प देने का प्रयास किया है।
भाजपा ने निषाद पार्टी से गठबंधन करके ओमप्रकाश राजभर की भरपाई की कोशिश की है, लेकिन पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति समझने वालों के अनुसार निषादों में ज्यादातर का समर्थन 2017 के चुनाव में भी भाजपा को मिला था। ऐसे में निषाद पार्टी की वजह से भाजपा को कितने और निषाद वोटों का लाभ होगा, यह नहीं कहा जा सकता।
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