वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, गिनवाईं कानून की कई खामियां

नई दिल्ली।(आवाज न्यूज ब्यूरो)। सुप्रीम कोर्ट में आज वक्फ संशोधन कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिनभर गहन लुनवाई हुई। जस्टिस बी.आर.गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने मामले की सुनवाई की। लंच से पहले और बाद में कुल मिलाकर करीब पौने चार घंटे तक याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दी गईं।
याचिकाकर्ताओं की ओर वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, और राजीव धवन ने कोर्ट के समझ कानून में मौजूद खामियों को लेकर विस्तृत बहस की। इन दलीलों में बताया गया कि किस तरह संशोधित कानून संवैधानिक अधिकारों का उल्लघंन करता है और न्यायिक समीक्षा की प्रकिया को बाधित करता है। वरिष्ठ वकीलों ने यह भी तर्क दिया कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों में संवेदनशीलता और पारदर्शिता को प्रभावित करता है, और इसमें कई प्रावधान ऐसे हैं जो न्याय की अवधारणा के प्रतिकूल हैं। आज की सुनवाई समाप्त हो गई है और अब सरकार कल अपना पक्ष कोर्ट में पेश करेगी। इस बहुचर्चित मामले पर देश की नजरें टिकी हुई हैं क्योंकि इसका प्रभाव वक्फ प्रबंधन और अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक संपत्तियों पर पड़ सकता है। सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कानून का बचाव करेंगे। आज की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश हो रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने कानून की जमकर कमियां और खामियां गिनवाईं। साथ ही, इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। आइये जानें कानून पर सवाल उठाने वालों की 10 बड़ी दलीलें क्या रहीं।
पहला : वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ही ने कहा कि दान दूसरे धर्मों में भी होते हैं, लेकिन किस धर्म के लिए लोगों के लिए ये व्यवस्था है कि आपको पांच साल या दस साल उस धर्म के पालन करने का सबूत दिखलाना होगा। वक्फ संशोधन कानून का ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।
दूसरा : सिंघवी ने दलील दिया कि वक्फ के रजिस्ट्रेशन के नाम पर एक तरह का आंतक गढ़ा जा रहा है। जहां संबंधित व्यक्ति या संस्थान को बार-बार रजिस्ट्रेशन कराने ऑफिस जाना होगा। सिंघवी ने सर्वे और उसके बाद सरकार की तरफ से दिए गए आंकड़े पर भी सवाल उठाया।
तीसरा : सिंघवी की दलील यह भी थी कि वक्फ बाय यूजर यानी इस्तेमाल के आधार पर वक्फ मानी जाने वाली अधिकतर संपत्तियों का कहीं कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है। अब इन संपत्तियों को एक तरह से न्याय मांगना होगा। कोई भी कल गए विवाद खड़ा कर सकता है और इस तरह वक्फ का दर्जा छिन सकता है।
चौथा : सिंघवी ने यहां तक कहा कि नए संशोधन का सेक्शन 3-डी चूंकि प्राचीन स्मारकों के लिए बने कानून पर भी लागू होता है, इसका असर उन धार्मिक स्थानों पर भी पड़ सकता है जो अब तक प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वजह से संरक्षित हैं। किसी एक धर्म से जुड़ी संपत्ति के लिए इस तरह की व्यवस्था करना संविधान के अनुच्छेद 15 की अवहेलना है।
पांचवा : वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा कि धार्मिक संपत्तियों की परिभाषा को ब्रिटिश काल में भी नहीं बदला गया। हम एख धर्मनिरपेक्ष देश हैं. मेरा एक मुवक्किल जो सिख है, वह वक्फ करना चाहता है लेकिन इस कानून के बाद क्या वो ऐसा कर सकता है। इस तरह तो अदालतों ने जो भी धर्मनिरपेक्ष फैसले अब तक दिए हैं, वो एक झटके में समाप्त हो जाएंगे।
छठा : धवन ने साफ किया कि वक्फ और उससे जुड़े पुराने कानूनों पर कई संवैधानिक पीठ फैसले दे चुकी है। चाहें वो बाबरी मस्जिद का मामला हो या फिर कोई दूसरा. सभी मामलों में वक्फ बाय यूजर यानी इस्तेमाल के आधार पर वक्फ संपत्ति बने रहने का फैसला यही अदालत दे चुकी है। फिर अब ये नया क्यों?
सातवां : कपिल सिब्बल ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण यानी एएसआई की वेबसाइट पर मौजूद एक सूची दिखलाते हुए कहा कि एक बार जब वे संरक्षित हो जाते हैं तो वे वक्फ का दर्जा खो देते हैं। इसमें जामा मस्जिद संभल भी शामिल है। इसलिए कोई भी विवाद उठेगा और उस जगह का वक्फ का दर्जा खत्म हो गया।
आठवां : आज की सुनवाई के दौरान जब देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुल तीन मुद्दे हैं, जिन पर रोक की मांग की गई है तो सिब्बल ने कहा कि कुल तीन मुद्दे ही नहीं है. पूरे वक्फ पर अतिक्रमण का मुद्दा है। सिब्बल ने कहा कानून का मकसद वक्फ पर कब्जा करना है। कानून इस तरह से बनाया गया है कि वक्फ संपत्ति को बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए छीन लिया जाए।
नौवां : सिब्बल ने कहा कि वक्फ संपत्ति के प्रबंधन का अधिकार छीन लिया गया है। केंद्रीय वक्फ परिषद के अधिकांश सदस्य गैर मुस्लिम हैं। नए कानून की धारा 9, इसमें 12 गैर मुस्लिम और 10 मुस्लिम हैं। पहले ये सभी मुस्लिम थे। अब ये सभी मनोनीत हैं।
दसवां : पांच साल तक इस्लाम पालन करने के प्रावधान पर वकील हुजेफा अहमदी को भी कड़ी आपत्ति थी। उन्होंने कहा कि किस तरह तय होगा कि मैं इस्लाम धर्म का पालन करता हूं या नहीं? क्या कोई मुझसे ये पूछकर तय करेगा कि मैं पांच वक्त का नमाज पढ़ता हूं या नहीं। या फिर कोई ये पूछेगा कि मैं शराब पीता हूं या नहीं, क्या इस तरह से तय किया जाएगा।

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