टूट रहे रिश्ते-सत्यवान ‘सौरभ’

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झूठे रिश्ते वो सभी, है झूठी सौगंध ।

आँसूं तेरे देख जो, कर ले आंखें बंद ।।

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रख दे रिश्ते ताक पर, वो कैसे बदलाव ।

साजिशकारी जीत से, सही हार ठहराव ।।

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धन-दौलत से दूर हो, चुनना वो जागीर ।

जिन्दा रिश्ते हों जहां, सच की रहे नज़ीर ।।

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बस छोटी-सी बात पर, उनका दिखा चरित्र ।

रिश्ते-नाते तोड़ कर, हुए शत्रु के मित्र ।।

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रिश्ते नाते तोड़कर, खूब रची पहचान ।

रहने वाला एक है, इतना बड़ा मकान ।।

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रिश्तों के भीतर छुपे, मुश्किल बड़े सवाल ।

ना जाने किस मोड़ पर, विक्रम हो बेताल ।।

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आये दिन ही टूटती, अब रिश्तों की डोर ।

बेटी औरत बाप की, कैसा कलयुग घोर ।।

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रिश्ते-नातों का भला, रहे कहाँ फिर ख्याल ।

कामुकता का आँख पर, ले जो पर्दा डाल ।।

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रिश्ते अब तो टूटते, छोड़ बीच मँझदार ।

कागज़ की कश्ती तरे, सोचो कितनी बार ।।

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मतलब के रिश्ते कभी, होते नहीं खुद्दार ।

दो पल सुलगे कोयले, बनते कब अंगार ।।

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जुड़ते रिश्ते हों जहां, केवल धन के संग ।

उनके मन में प्यार का, कोई रूप न रंग ।।

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