दैनिक स्तंभ लेखन को समर्पित हरियाणा की ‘सौरभ दंपति’

 ( आजकल ‘सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ’ युवा-दंपति की लेखनी का समसामयिकी पर दैनिक लेखन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणापुंज है। प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इनके स्तंभ पंजाबी, अंग्रेजी तथा हिंदी व अन्य  भाषाओं में करीब चार हजार वेब पोर्टल, न्यूज़पेपर में प्रतिदिन देश और दुनिया में प्रकाशित हो रहे हैं। इससे दोनों की चिंतनशीलता, लेखकीय दक्षता तथा नियमितता के प्रति समर्पण व साधना का ही प्रतिफल कहा जाएगा कि सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर केंद्रित राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहुआयामी लेखन मौलिक सूझबूझ के साथ हो रहा है। )

-सत्यवीर नाहड़िया

करीब डेढ़ दशक पहले हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी ने विद्यार्थियों तथा शिक्षकों के दो वर्गों में काव्य पाठ तथा स्लोगन लेखन प्रतियोगिता के प्रदेशभर से चयनित प्रतिनिधियों को फाइनल मुकाबले के लिए बोर्ड में आमंत्रित किया था, जहां राज्य कवि उदयभानु ‘हंस’ सहित वरिष्ठ रचनाकारों को निर्णायक मंडल में शामिल किया गया था। संयोगवश शिक्षक वर्ग के उक्त दोनों प्रतियोगिताओं में मुझे राज्यभर में प्रथम घोषित किया गया। कार्यक्रम के बाद जलाने के समय छात्र वर्ग के सांत्वना पुरस्कार से अलंकृत एक छात्र ने अपनी कॉपी मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा कि सर अपना पूरा पता लिख दो, मैं आपके लेख व रचनाएं दैनिक ट्रिब्यून सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता रहता हूं। एक सप्ताह बाद ही उस छात्र का पत्र मुझे प्राप्त हुआ कि उनका पहला काव्य संग्रह ‘यादें’ प्रेस में जाने वाला है, कृपया शुभाशीष व संदेश का एक पृष्ठ लिख दें। भिवानी के उनके काव्य पाठ को भूमिका में रखकर मैंने शुभकामनाएं प्रेषित कर दीं।

कुछ दिनों बाद संबंधित काव्य संग्रह प्रकाशित होकर पहुंचा, उनके किशोर मन के भाव कविता के रूप में पाकर अभिभूत हो गया, उन्हें प्रोत्साहित करने हेतु पचास प्रतियां भी खरीदी तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में इस बालकवि के हौसलों को रेखांकित भी किया। आज उसी बच्चे को जब एक सफल रचनाकार तथा स्तंभकार के रूप में देखता हूं तो अत्यंत खुशी होती है। डॉ सत्यवान सौरभ आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है, एक दोहाकार के रूप में जहां उनकी दोहा सतसई ‘तितली है का खामोश’ के अलावा हजारों दोहे प्रकाशित हो चुके हैं, वह दैनिक स्तंभकार के रूप में राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों संपादकीय पृष्ठों पर पर प्रमुखता से प्रकाशित हो रहे हैं। लेखन की रुचि-अभिरुचि से जुड़ी अर्धांगिनी प्रियंका सौरभ के जीवन में आने के बाद उनकी लेखकीय साधना व प्रतिभा निरंतर नई धार मिली है।

 आजकल इस सौरभ दिव्य-दंपति की लेखनी का समसामयिकी पर दैनिक लेखन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणापुंज है। प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इनके स्तंभ पंजाबी, अंग्रेजी तथा हिंदी व अन्य  भाषाओं में करीब चार हजार वेब पोर्टल, न्यूज़पेपर में प्रतिदिन देश और दुनिया में प्रकाशित हो रहे हैं। इससे दोनों की चिंतनशीलता, लेखकीय दक्षता तथा नियमितता के प्रति समर्पण व साधना का ही प्रतिफल कहा जाएगा कि सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर केंद्रित राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहुआयामी लेखन मौलिक सूझबूझ के साथ हो रहा है।

 हरियाणा प्रदेश के लिए भी यह गर्व का विषय है कि एक गांव से प्रदेश, देश व दुनिया को चिंतक व विचारक की दृष्टि से देखा जा रहा है। जहां डॉक्टर सत्यवान परास्नातक राजनीति विज्ञान (डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सुशोभित)  प्रदेश सरकार के पशुपालन विभाग में वेटनरी इंस्पेक्टर के तौर पर सेवारत हैं, वहीं परास्नातक, एमफिल कर चुकी मेधावी प्रियंका आजकल शोध की छात्रा हैं। एक ओर जहां यह जोड़ी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी करवाने और करने में जुटी है, वहीं वे दोनों अपने नवाचारी प्रकल्प आरके फीचर्स के माध्यम से स्तंभ लेखन में निरंतर नए आयाम रचते जा रहे हैं। हाल में दोनों की दो-दो किताबें हिंदी में- तितली है खामोश और कुदरत की पीर (सत्यवान सौरभ) एवं दीमक लगे गुलाब और निर्भयाएं (प्रियंका सौरभ) और अंग्रेजी में इश्यूज एंड पेन्स व  फीयरलेस आई है। जो पाठकों द्वारा खूब सराही गयी है।

एक सवाल के जवाब में डॉ. सौरभ बताते हैं कि लिखते तो वे बचपन से ही रहे हैं, किंतु कोरोना काल की कैद ने उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर स्तंभ लेखन के लिए प्रेरित किया, जिसमें प्रियंका तथा परिजनों का बहुमुखी योगदान रहा। माता कौशल्या तथा पिता रामकुमार के आदर्शों से प्रेरित होकर छोटे भाई मनोज हरियाणवी एवं बहनों आकाशवाणी एंकर…

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