महिलाओं के लिए रोल मॉडल हैं विश्व बैंक की वरिष्ठ अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति : प्रियंका सौरभ

 अपनी शिक्षा के दौरान भारत सरकार का नेशनल अवार्ड, अमेरिका की जीई फंड स्कॉलरशिप, विकरी और हैरिस अवार्ड तथा कोलंबिया विश्वविद्यालय की रिसर्च स्कॉलरशिप प्राप्त करने वाली डाॅ एस अनुकृति को वर्ल्ड इकोनॉमेट्रिक सोसाइटी का प्रथम यंग रिसर्चर अवार्ड भी प्राप्त हो चुका है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, बोस्टन (अमेरिका) की फैलो रह चुकी डॉ अनुकृति वर्तमान में कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मैनहैट्टन (अमेरिका) तथा इंस्टीट्यूट ऑफ़ लेबर इकोनॉमिक्स, बोन (जर्मनी) की फैलो हैं। भारत और अमेरिका के अतिरिक्त कनाडा, पेरू, पोर्टोरिको, बरमूडा, इंग्लैंड, स्काॉटलैंड, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्वीडन, चीन, हांगकांग, सिंगापुर, बंग्लादेश, केन्या और इथोपिया सहित बीस से अधिक देशों की यात्रा कर चुकी हैं। डॉ अनुकृति डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स की विशेषज्ञ हैं तथा लगभग डेढ़ दशक पूर्व, विश्वबैंक की सलाहकार रहते हुए, लैंगिक समानता, विश्व में महिलाओं की आर्थिक स्थिति, महिलाओं की अशिक्षा और पिछड़ापन, बाल-कुपोषण आदि अनेक विषयों पर कार्य कर चुकी हैं। 

 डॉ अनुकृति को देखकर कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि साधारण-सी दिखने वाली यह युवा महिला विश्व बैंक, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) में वरिष्ठ अर्थशास्त्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर प्रतिष्ठित डॉ एस अनुकृति हैं। लेकिन यह सच है। विश्व बैंक में बतौर अर्थशास्त्री ज्वाइन करने के साथ ही डाॅ अनुकृति विश्व की अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने वाली इस सर्वोच्च बैंकिंग संस्था की दस सदस्यीय मानव संसाधन समिति की सदस्य भी बन गई  थीं, जो पूरे विश्व में मानव संसाधन विकास का जिम्मा संभालती है। इससे पूर्व सात वर्षों तक बीसी यूनिवर्सिटी, बोस्टन (अमेरिका) में अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर रही डॉ अनुकृति के पति सिद्धार्थ रामलिंगम भी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और विश्व बैंक में कंसल्टेंट रह चुके हैं तथा वर्तमान में वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) बेस्ड एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कंसल्टेंट के पद पर कार्यरत हैं।

डाॅ अनुकृति साधारण होकर भी असाधारण हैं। अपनी विशिष्ट उपलब्धियों के कारण यह आज युवाओं और महिलाओं के लिए रोल मॉडल तथा प्रेरणा-स्रोत बन चुकी हैं। डॉ अनुकृति बचपन से ही बड़ी मेधावी और विलक्षण रही हैं। इन्होंने अपने माता-पिता से न कभी एक रुपया जेबखर्च लिया और न ही कभी सड़क पर खड़े होकर किसी ठेली-रेहड़ी वाले से कुछ खरीदा-खाया। एक दिन भी ट्यूशन नहीं किया, फिर सीबीएसई की 10+2 (नाॅन मेडिकल) परीक्षा में 94.6 प्रतिशत अंक प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित किया। डॉ अनुकृति का जन्म हरियाणा के नारनौल शहर में हुआ, लेकिन अठारह वर्ष हिसार में और सात वर्ष दिल्ली में रहीं; अब सत्रह वर्षों से अमेरिका जैसे विश्व के सर्वाधिक विकसित और संपन्न देश में रह रही हैं। लेकिन दिखावा या आडंबर इन्हें छू तक भी नहीं पाया है। गर्मी हो या सर्दी, भारत आते ही यहां के परिवेश के अनुरूप ढल जाती हैं। सत्रह वर्षों से हवाई जहाज से सफर करती हैं, बीस से अधिक देशों की यात्रा कर चुकी हैं, लोकल में भी मैट्रो या एसी बस से जाती-आती हैं, लेकिन साइकिल के अतिरिक्त एक्टिवा तक इन्हें चलानी नहीं आती।

        वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ रामनिवास ‘मानव’ तथा अर्थशास्त्र की पूर्व प्रवक्ता डॉ कांता भारती की लाडली बेटी तथा जन्मजात विशिष्ट प्रतिभा की धनी डॉ अनुकृति की उपलब्धियां वैश्विक स्तर की रही हैं। दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से बीए इकोनॉमिक्स (ऑनर्स) और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए (इकोनॉमिक्स) करने के उपरांत विश्व के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में से एक कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मैनहैट्टन (अमेरिका) से एमए (इकोनॉमिक्स), एमफिल् और पीएचडी की तीन उपाधियां एकसाथ प्राप्त कीं।

        डाॅ अनुकृति पढ़ाई में हमेशा अव्वल रही हैं। इन्होंने विश्वस्तरीय संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की है, लेकिन अन्य विद्यार्थियों की भांति इन्हें प्रवेश लेने में कभी कोई कठिनाई नहीं हुई। 10+2 तक की शिक्षा हिसार के स्कूलों से प्राप्त करके इन्होंने बीए इकोनाॅमिक्स (आॅनर्स) दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से किया। तत्पश्चात्  दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में एमए (अंतरराष्ट्रीय संबंध), दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एमए (अर्थशास्त्र) और इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट में एमए (गणित) हेतु आवेदन किया और तीनों में ही इनका चयन हो गया। इनमें से दिल्ली स्कूल आॅफ इकोनॉमिक्स को इन्होंने चुना। यही नहीं, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से एमए (अर्थशास्त्र) करने के बाद पीएचडी हेतु इन्होंने अमेरिका के छह अग्रणी विश्वविद्यालयों- रोचेस्टर, ब्राउन, विसकोंसिन मेडिसिन, कोलंबिया, न्यूयॉर्क और मेरीलैंड में आवेदन किया और सभी छह विश्वविद्यालयों में इनका चयन हो गया। डाॅ अनुकृति ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी, मैनहैट्टन (न्यूयॉर्क) को चुना और वहां से एमए (इकोनॉमिक्स), एमफिल् और पीएचडी की तीन उपाधियां एक साथ प्राप्त कीं। लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि पीएचडी करने के बाद अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, स्वीडन, आस्ट्रेलिया और भारत सहित छह देशों के सत्रह विश्वविद्यालयों या समतुल्य संस्थानों में इनकी नियुक्ति हो गई, जिनमें से बीसी यूनिवर्सिटी को इन्होंने ज्वाइन किया। आर्थिक दृष्टि से डॉ अनुकृति कभी अपने माता-पिता पर बोझ नहीं बनीं। शिक्षा और शोधकार्य के दौरान इन्हें अमेरिका की जीई फंड स्कॉलरशिप, विकरी और हैरिस जैसे अवार्ड तथा कोलंबिया यूनिवर्सिटी रिसर्च स्कॉलरशिप प्राप्त हुई। कोलंबिया यूनिवर्सिटी के 6-वर्षीय पीएचडी प्रोग्राम के दौरान तो इन्हें अपने माता-पिता से एक रुपए की भी आर्थिक सहायता नहीं लेनी पड़ी।

        डाॅ अनुकृति कहती हैं कि मैं अपने सफर को कठिन तो नहीं कहूंगी, किंतु आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो लगता है, हरियाणा के एक छोटे-से शहर से विश्व बैंक तक का सफ़र कम ही लोग तय कर पाते हैं, विशेषकर लड़कियों और महिलाओं के लिए भारत के  कई राज्यों में अपनी पढाई और करियर को प्राथमिकता देना आसान नहीं है। किंतु मेरे परिवार के सहयोग और प्रोत्साहन के कारण मुझे इस प्रकार की किसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा। मेरे माता-पिता ने मेरी और मेरे भाई (जो भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी बने) की परवरिश इस प्रकार से की थी कि हमें कभी यह नहीं लगा कि हमारे लक्ष्य या आकांक्षाएं केवल अपने शहर, राज्य या देश तक ही सीमित रहें। प्रारंभ में हरियाणा के एक छोटे शहर से दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज जाने में मुझे शायद अधिक अंतर अनुभव हुआ और समायोजन करने में कुछ समय लगा। किंतु बाद में मेरे लिए आगे का सफर अधिक मुश्किल नहीं रहा। अतः मैं माता-पिता और अभिभावकों से यही कहना चाहूँगी कि अपने बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा का निर्णय बहुत ध्यान से करें, क्योंकि उसका प्रभाव उनके पूरे जीवन और कैरियर पर पड़ता है। अपनी रुचि बच्चों पर न थोपें, बच्चों की रुचि का भी ध्यान रखें; अपना रास्ता और मंजिल उन्हें स्वयं तय करने दें। माता-पिता की रुचि बच्चों के व्यक्तित्व-विकास में सर्वाधिक बाधक है। सभी माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं, जो उचित नहीं है। अन्य अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें बच्चों को अपनी इच्छा और रुचि से जाने की छूट दी जाये, तो वे विशिष्ट उपलब्धियां प्राप्त कर सकते हैं। हां, माता-पिता का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन बच्चों के लिए बहुत आवश्यक है। मुझे नहीं लगता कि अपने माता-पिता के मार्गदर्शन के बिना मैं इतना-कुछ प्राप्त कर पाती। मेरे माता-पिता और अन्य परिजनों ने कभी मेरे और मेरे भाई के बीच किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया और न ही कभी मुझ पर छोटी उम्र में शादी करने और अपने करियर पर कम ध्यान देने का दबाव डाला। मुझे बचपन में हमेशा पढ़ने और सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया गया; घर के काम-काज का भार भी मुझ पर कभी नहीं डाला गया। अब मेरे पति प्रो सिद्धार्थ रामलिंगम का भी मुझे पूरा सहयोग प्राप्त है; हम दोनों मिलकर, बराबरी से, एक-दूसरे के निर्णयों और कैरियर्स को सपोर्ट करते हैं। 

        ‌उल्लेखनीय है कि डॉ एस अनुकृति एक अच्छी लेखिका भी हैं। देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में इनके शोधपरक लेख तो निरंतर प्रकाशित होते ही रहते हैं, सन् 1999 में इनका एक बालकाव्य-संग्रह ‘फुलवारी के फूल’ भी  प्रकाशित हो चुका है। 2018 में ‘डॉटर ऑफ महेंद्रगढ़’ नाम से बनी वीडियो फिल्म में भी इनका जीवन-परिचय शामिल किया गया था। सचमुच बहुत गर्व है पूरे देश को, अपनी सुयोग्य और मेधावी बेटी डॉ एस अनुकृति पर।

आज डॉ एस अनुकृति युवाओं और महिलाओं के समक्ष एक रोल मॉडल और प्रेरणा-स्रोत के रूप में उपस्थित हैं। युवा पीढ़ी इनसे बहुत कुछ सीख सकती है, इनसे प्रेरणा प्राप्त कर अपना भविष्य संवार सकती है और देश-विदेश में अपनी कीर्ति-पताका फहरा सकती है।

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