सत्यवान सौरभ स्वांत सुखाय की भावना से ही पिछले सोलह वर्षों से रचना करते रहे हैं। वे इतने संयमी रहे कि अपनी अभिव्यक्ति को पाठकों के सामने लाने की या छपास होने की लालसा से दूर रहें। सृजन में शोर नहीं होता। साधना के जुबान नहीं होती। किंतु सिद्धि में वह शक्ति होती है कि हजारों पर्वतों को तोड़कर भी उजागर हो उठती है। यह कथन सत्यवान सौरभ पर अक्षरशः सत्य सिद्ध होता है। सौरभ की प्रस्तुत कृति बेजोड़ है। उनकी लेखनी में शक्ति है। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है। प्राजंल और लालित्यपूर्ण भाषा में वे जो कुछ भी लिखते हंै, उसे पढ़कर पाठक अभिप्रेरित होता है। वे जितना सुंदर, सुरुचिपूर्ण और मौलिक लिखते हैं, उससे भी अच्छा उनका जीवन बोलता है। इन विरल विशेषताओं के बावजूद भी वे कभी आगे नहीं आना चाहते। नाम, यश, कीर्ति और पद से सर्वथा दूर रहना चाहते हैं।
सत्यवान सौरभ हरियाणा के जुझारू एवं जीवटवाले लेखक और कवि हैं। खुशी की बात है कि उनका रचनाकार जिंदगी के बढ़ते दबावों को महसूस करता हुआ, उनसे लड़ने की ताब रखता है, उनसे संघर्ष करता है। हाल ही में उनका ‘तितली है खामोश’ दोहा संकलन प्रकाशित हुआ है। 725 दोहों का यह संकलन अनूठा है और ये दोहें समय की शिला पर अपने निशान छोड़ते चलते हैं। इतना ही नहीं वे इस कठिन समय से मुठभेड़ भी करते हैं। यही मुठभेड़ उनके दोहों की ताकत है और मौलिकता है जो जनभावनाओं का जीवंत चित्रण है।
किसी ने कहा है कि जिस समाज, देश में जितनी अव्यवस्था, गिरावट, संघर्ष एवं नैतिक/चारित्रिक मूल्यों का हनन होगा उस समाज में साहित्य उतना ही बेहतर लिखा जाएगा। साहित्य साधना और रचनाधर्मिता कठिन तपस्या होती है और जो इसके साधक होते हैं, वे ही साहित्य को गहनता प्रदत्त करते हैं। साहित्य साधक सौरभ का प्रस्तुत दोहा संकलन ‘तितली है खामोश’ न केवल व्यक्ति, परिवार बल्कि समाज, राष्ट्र और विश्व के संदर्भ में कवि की प्रौढ़ सोच की सहज और स्वाभाविक अभिव्यक्ति है। संकलन के दोहे कुछ ऐसे हैं कि मन की आंखों के सामने एक चित्र-सा खींच जाता है। चीजों को बयां करने का उनका एक खास अंदाज है। फिर चाहे वह कुदरती नजारे हों या प्रेम, विश्वास, आस्था, आशा को अभिव्यक्ति देते दोहें। यह उनका नवीनतम संकलन है। सत्यवान सौरभ के दोहों में न सिर्फ उनकी, बल्कि हमारी दुनिया भी रची-बसी नजर आती है। जिन्हें पढ़कर सत्यवान सौरभ के मूड और मिजाज का बखूबी अंदाज लगाया जा सकता है। दोहों के विचार, भाव, बिम्ब, रूपक एक नया आलोक बिखेरते हैं, जो पाठकों के पथ को भी आलोकित करता है।
हरियाणा में वेटनरी इंस्पेक्टर पद पर रहते हुए भी सत्यवान सौरभ लेखन के लिए समय निकाल लेते हैं, यह उनकी विशेषता है। उनके दोहों में सरलता, सहजता एवं अर्थ की गहराई हमें सहज ही आकर्षित करती है। वे भावों को इस सहजता से अभिव्यक्त करने में समर्थ है कि ऐसा लगता है कि वे सिर्फ सौरभ जी के भाव नहीं बल्कि हर पाठक के मन की छिपी भावनाएं हैं, संवेदनाएं हैं। उनकी पैनी कलम से कोई भाव अछूता नहीं रहा। परिस्थितियों को देखने की उनकी अपनी विशिष्ट दृष्टि है। उनके दोहें सीधे हृदय से निकलते जान पड़ते हैं।
हिन्दी साहित्य में दोहों का विशिष्ट स्थान है। दोहा अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दो पंक्ति का होता है इसमें चार चरण माने जाते हैं। विशेषतः दोहे आध्यात्मिक और उपदेशात्मक रंग में रंगे होकर इसके पहले और तीसरे (विषम) चरणों में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे (सम) चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। अंत में गुरु और लघु वर्ण होते हैं। तुक प्रायः दूसरे और चौथे चरण में ही होता है। दोहा अर्द्ध सम मात्रिक छन्द का उदाहरण है। तुलसीदासजी से लेकर महाकवि कबीर तक रहीम, रसखान से लेकर बिहारी तक दोहों का एक विस्तृत आध्यात्मिक परिवेश भारतीय साहित्य को समृद्ध करता रहा है। आधुनिक युग में रचे जाने वाले दोहों में इन्हीं महापुरुषों का प्रभाव देखने को मिलता है। सौरभ के दोहों में आधुनिकता और पुरातन का एक अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है जो दोहा छंद की सार्थकता को सिद्ध करता है।
‘तितली है खामोश’ के दोहों में काव्य सौंदर्य के साथ-साथ प्रवहमान गतिशीलता भी है। ये दोहें अर्थवान है, अंतकरणीय भावों के रस-रूप में प्रस्फुटित शब्द सुषमा का संचार करते है। ये दोहें चेतना के स्पंदन का सम्प्रेषण करते है। दोहों में कवि के शाश्वत प्रभाव की छवि परिलक्षित होनी चाहिए, यह कवि के कविता कर्म की कसौटी होती है। प्रस्तुत संकलन के दोहे उस कसौटी पर कस कर जब देखता हूं तो सत्यवान सौरभ की छवि सामाजिक सजग प्रहरी के साथ-साथ एक संवेदनशील रचना कर्मी के रूप में उभरकर सामने आती है। कविता, गीत, गजल आदि साहित्यिक विधाओं के साथ विभिन्न विषयों पर समसामयिक लेख एवं फीचर लिखने वाले सौरभ को दोहा लेखन में विशेष सफलता मिली है। इसका श्रेय वे हरियाणा के ही प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. रामनिवास मानव को देते हैं। सौरभ को दोहाकार बनाने में उनकी प्रेरणा विशेष उल्लेखनीय है।
सत्यवान सौरभ ने अपने दैनन्दिन जीवन के हर कटु-तिक्त और मधुर अनुभव को, यहां तक कि चित्त में मंडराते चिंतन के हर फन को भी दोहों में बांधा है। उनके दोहें उनके निजी संसार से उपजे हैं तो कहीं उनमें देश और दुनिया के व्यापक परिदृश्य भी प्रस्तुत हुए हैं। इन दोहों में समाज में व्याप्त विसंगतियों एवं विडम्बनाओं का स्पष्ट चित्रण हैं तो पारिवारिक जीवन के टीसते दंश और द्वंद्व एवं अपने इर्द-गिर्द के जीवन की समस्याओं के भाव दोहों के रूप में ढलकर सामने आते हैं। संभवतः दोहों का आधार भी यही है। अपने परिवेश से गहरा सरोकार उनकी शक्ति है। उनके दोहें इतने सशक्त एवं बेबाक है कि जो इन्हें साहित्य जगत में उल्लेखनीय स्थापत्य प्रदान करेंगे। मेरी मान्यता है कि कोई भी साहित्यकार युगबोध से निरपेक्ष होकर कालजयी साहित्य का सृजन कर ही नहीं सकता, विधा चाहे कोई भी हो। साहित्यकार का मन तो कोरे कागज जैसा निश्छल, निरीह, दर्पण सा पारदर्शी होता है। यथा-
सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश।
जुगनू की बारात से, गायब है अब जोश।।
सत्यवान सौरभ स्वांत सुखाय की भावना से ही पिछले सोलह वर्षों से रचना करते रहे हैं। वे इतने संयमी रहे कि अपनी अभिव्यक्ति को पाठकों के सामने लाने की या छपास होने की लालसा से दूर रहें। सृजन में शोर नहीं होता। साधना के जुबान नहीं होती। किंतु सिद्धि में वह शक्ति होती है कि हजारों पर्वतों को तोड़कर भी उजागर हो उठती है। यह कथन सत्यवान सौरभ पर अक्षरशः सत्य सिद्ध होता है। सौरभ की प्रस्तुत कृति बेजोड़ है। उनकी लेखनी में शक्ति है। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है। प्राजंल और लालित्यपूर्ण भाषा में वे जो कुछ भी लिखते हंै, उसे पढ़कर पाठक अभिप्रेरित होता है। वे जितना सुंदर, सुरुचिपूर्ण और मौलिक लिखते हैं, उससे भी अच्छा उनका जीवन बोलता है। इन विरल विशेषताओं के बावजूद भी वे कभी आगे नहीं आना चाहते। नाम, यश, कीर्ति और पद से सर्वथा दूर रहना चाहते हैं। प्रस्तुत दोहा संकलन को पढ़ते हुए सहज ही कहा जा सकता है कि इसमें व्यक्त विचार अनुभवजन्य है। जो व्यक्ति यायावर होता है, धरती के साथ भावात्मक रिश्ता स्थापित करता है, वहां की सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को करीब से देखता है और उसे अभिव्यक्ति देने की क्षमता का अर्जन करता है वही व्यक्ति कलम की नोंक से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के यथार्थ को कुशलता से उकेरने में सफल हो सकता है। प्रस्तुत संकलन के दोहों की सार्थकता या तो भावाकुल तनाव पर निर्भर है या धार-धार शिल पर। उनकी रचनाओं में विविधता है, प्यार है, दर्द है, संवेदनाएं हैं यानी हर रंग के शब्दों से उन्होंने दोहों को सजाया है।
हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से प्रकाशित प्रस्तुत कृति के संदर्भ में स्वयं लेखक का मंतव्य है कि ‘तितली है खामोश’ का शीर्षक अपने आप में एक सवाल है और दोहे हमेशा तीखे सवाल ही करते हैं।’ इस दृष्टि से कवि के दोहों में तीखे सवाल खड़े किये गये हैं तो उनके समाधान भी उतने ही प्रभावी तरीके से दिये गये हैं। इस दृष्टि से उनके रचना धरातल के समग्र परिवेश को और उनके दार्शनिक धरातल को समझने में यह पुस्तक महत्वपूर्ण है।
पुस्तक और कलम को अपनी विवशता मानने वाले सत्यवान सौरभ विचार के साथ-साथ शब्दों के सौन्दर्य की चितेरे हैं। उनके हर शब्द शिल्पन का उद्देश्य मनोरंजन और व्यवसाय न होकर सत्य से साक्षात्कार कराना है। सत्यं शिवं और सुंदरमं की युगपथ साधना और उपासना से निकले शब्द और विचार एक नयी सृष्टि का सृजन करते हैं और उसी सृजन से सृजित है प्रस्तुत दोहा संकलन ‘तितली है खामोश’। प्रस्तुत कृति के दोहें समाज और राष्ट्र को सुसंस्कृत बनाते हैं, उन्हें राष्ट्रीय और सामाजिक अनुशासन में बांधते हैं, खण्ड-खण्ड में बिखरे रिश्ते-नातों को एक धागे में जोड़ते हैं और अंधेरों के सुरमयी सायों में नया आलोक बिखेरते हैं। संस्कृति और संवेदना के प्रति आस्था जगाने का काम करती हुई यह कृति पाठकों के हाथ में विश्वास की वैशाखी थमाती है। यह पूरी कृति और उसके विधायक भावों का वत्सल-स्पर्श समाज की चेतना को भीतर तक झकझोरता है। 124 पृष्ठों पर फैली कवि की रचना दृष्टि ने इस पुस्तक को नायाब बनाया है।
यह काव्य कृति व्यक्ति, समाज और देश के आसपास घूमती विविध समस्याओं को हमारे सामने रखती है, साथ ही सटीक समाधान भी प्रस्तुत करती है। पुस्तक की छपाई साफ-सुथरी, त्रुटिरहित है। आवरण आकर्षक है। पुस्तक पठनीय एवं संग्रहणीय है।