नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो) देश की संसद में पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में भारत में 13.13 लाख महिलाएं और लड़कियां लापता हो गईं। इतनी बड़ी संख्या ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बडे सवाल खड़े कर दिए हैं।
केंद्र शासित प्रदेशों से महिलाओं के लापता होने की दःुखद घटनाओं के मामले में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पहले स्थान पर है, जहां इस अवधि के दौरान 61,054 महिलाएं और 18 वर्ष से कम उम्र की 22,919 लड़कियां लापता हो गईं। ओडिशा में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियां लापता हुईं, जबकि आदिवासी बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में 49,116 महिलाएं और 10,817 लड़कियां लापता हुईं।
एनसीआरबी ने इस संख्या की गणना गुमशुदा महिलाओं और लड़कियों के संबंध में पुलिस स्टेशनों में दर्ज रिपोर्टों के आधार पर की है। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि असल संख्या अधिक हो सकती है क्योंकि कई परिवार सामाजिक कलंक समेत विभिन्न कारणों से लापता लड़कियों की रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा का कहना है कि सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें 2013 का यौन अपराध निवारण अधिनियम भी शामिल है। उन्होंने कहा कि कानून को और अधिक सख्त और प्रभावी बनाने के लिए 2018 में संशोधन किया गया था, और 12 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार पर अब मौत की सजा हो सकती है। अजय कुमार ने यह भी बताया कि संशोधित कानून में अब बलात्कार के मामलों की त्वरित जांच और पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय दिलाने के लिए कदम उठाने की भी बात कही गई है। भारत सरकार का कहना है कि पीड़ित महिलाओं को तत्काल सहायता देने के लिए एक राष्ट्रव्यापी आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली भी शुरू की गई है और कोई भी महिला 112 डायल करके तुरंत मदद हासिल कर सकती है। विश्लेषकों का कहना है कि सरकार के तमाम दावों के बावजूद भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध रुक नहीं रहे हैं। इसका एक मुख्य कारण इस मुद्दे को लेकर सभी राजनीतिक दलों में रुचि की कमी है।
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