हिन्दी दिवस पर कलम के पुरोधाओं ने हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाए जाने की मांग की

राष्ट्र भाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती हैं, हिंदी हिंदुस्तान को बांधती है : एसके अवस्थी ‘इंदू’

फर्रुखाबाद।(आवाज न्यूज ब्यूरो) आज राष्ट्रीय हिंदी दिवस पर फर्रुखाबाद प्रेस क्लब में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें कलम के पुरोधाओं ने केन्द्र सरकार से एक स्वर में हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलाए जाने की मांग की। इस दौरान मुख्य वक्ता के के रूप में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनय सिंह कुशवाहा ने कहा कि विश्व की प्राचीन समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिंदी हमारी आधिकारिक रूप से राज्य भाषा भी है। यह दुनिया भर में हमें सम्मान भी दिलाती हैं। यह भाषा हमारे सम्मान स्वाभिमान और गर्व की भाषा है जो हमे विश्व में पहचान दिलाती हैं। इतना ही नहीं बल्कि ज्यादा बोलने समझने वाली भाषाओं में है। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रेस क्लब के अध्यक्ष सर्वेन्द्र कुमार अवस्थी ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के बाद 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी की खड़ती बोली भारत की राजभाषा होगी, इसी महत्वपूर्ण निर्णय को प्रतिपादित करने तथा हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्र भाषा प्रचार-प्रसार समिति वर्धा के अनुरोध पर सन 1953 से संपूर्ण भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाएगा। धीरे-धीरे हिंदी भाषा का प्रचलन इतना अधिक बढ़ गया कि राष्ट्र भाषा का रूप ले लिया और हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पसंद की जाने लगी। जिसका मुख्य कारण है कि हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबंध हैं। उन्होंने कहा कि राष्ट्र भाषा किसी भी देश की पहचान और गौरव होती हैं। हिंदी हिंदुस्तान को बांधती है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक साक्षर से निरक्षर प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिंदी भाषा को आसानी से बोल सकता है। वरिष्ठ छायाकार रविन्द्र भदौरिया ने कहा कि आज हम और आप अपने ही देश में अंग्रेजी के गुलाम बनते जा रहे हैं और हिंदी भाषा को मान सम्मान नहीं दे रहे हैं जो भारत और देश की भाषा के प्रति देश वासियों के नजर में होना चाहिए। यहां तक की आज हर माता-पिता अपने बच्चों को शिक्षा के लिए अच्छे कॉन्वेंट स्कूलों में प्रवेश दिलाते हैं। जहां पर अंग्रेजी भाषाओं पर ज्यादा जोर दिया जाता है। किंतु हिंदी की तरफ किसी का ध्यान नहीं है। जिसमें वास्तव में मान सम्मान स्वाभिमान संस्कृति राष्ट्र प्रेम त्याग बलिदान और समर्पण की भावना जागृत की जाती है। इसी उद्देश्य को बनाए रखने के लिए संपूर्ण भारत में हिंदी दिवस के रूप में हम मनाते आ रहे हैं। हिन्दी पत्रकारिता क्षेत्र में अपनी लेखनी के माध्यम से एक नई सोंच विकसित करने वाले दीपक सिंह ने कहा कि जब देश के संविधान की रचना हो रही थी तब संविधान निर्माताओं ने हिन्दी भाषा को राष्ट्र भाषा करने का प्रयास किया होगा, लेकिन उस समय संविधान अंग्रेजी में था। हमारे संविधान निर्माताओं ने हिन्दी भाषा को राज भाषा का दर्जा देते हुए कहा था कि 15 वर्ष बाद जो भी सरकार आए वह हिन्दी भाषा को संविधान में संशोधन कर राष्ट्र भाषा कर सकती है। उन्होने सरकार से मांग करते हुए कहा कि संविधान में तमाम संशोधन किए गये हैं और किए जा रहे हैं, हिन्दी भाषा को भी संविधान में संशोधन कर “हिन्दी को राष्ट्रभाषा’ का दर्जा दिया जाए। “जो वर्तमान का सत्र सरल सुंदर भविष्य के सपने दे, हिन्दी भारत की बोली है अपने आप पनपने दो” की पंक्तियों के माध्यम से श्री सिंह ने कहा कि हिन्दी सिर्फ हमारी भाषा ही नहीं, हमारी पहचान भी है। तो आइए हिन्दी बोलें, हिन्दी सीखें और हिन्दी सिखाएं। गोष्ठी का सफल संचालन कर रहे दिलीप कश्यप ‘कलमकार’ ने राष्ट्रीय कवि शिवओम अम्बर की पंक्ति ”मानसिक दासता के पिंजरे से बाहर आए पंक्षी कब मुक्त गगन में पांखे खोलेगा, सारी दुनिया के लोग पूछते हैं आखिर भारत कब अपनी भाषा बोलेगा…’ पढ़ते हुए हिंदी भाषा के मान-सम्मान की बात कही। कार्यक्रम के अंत में हिंदी भाषा के गौरव में उत्कर्ष लेखनी के योगदान के लिए वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र भदौरिया, विनय सिंह व दीपक सिंह को सम्मानित किया गया। इस मौके पर इमरान हुसैन, आबिद हुसैन, अंचल दुबे, अनुराग पांडेय आदि कलम के सिपाही मौजूद रहे।

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