नई दिल्ली। (आवाज न्यूज ब्यूरो) सुप्रीम कोर्ट ने आज पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक और झूठे विज्ञापनों के मामले में बड़ी कार्रवाई की है। कोर्ट ने कंपनी के विज्ञापनों पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज अधिनियम, 1954 के तहत ये कार्रवाई की गई है। इसके अलावा कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद और इसके प्रबंधन निदेशक आचार्य बालकृष्ण को कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी किया है। बता दें कि मना करने के बावजूद भ्रामक विज्ञापन चलाने के लिए ये कार्रवाई हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक और झूठे विज्ञापनों के मामले में निष्क्रियता के लिए केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा, “पूरे देश को बेवकूफ बनाया जा रहा है और सरकार ने इस पर अपनी आंखे मूंद ली हैं। ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। “उसने सरकार से पूछा, “आपने पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की?”कोर्ट ने कहा कि सरकार को तत्काल कुछ कार्रवाई करनी होगी।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने आदेश के बावजूद भ्रामक दावों वाला विज्ञापन दिखाने के लिए पतंजलि को कड़ी फटकार लगाई। न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने पतंजलि के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता विपिन सांघी से पूछा, “कोर्ट के आदेश के बाद भी आप में इतना साहस था कि आप दोबारा उसी तरह के विज्ञापन प्रकाशित कर रहे हैं और दावा करते हैं कि इससे बीमारी से हमेशा के लिए छुटकारा मिलेगा, इससे आपका क्या मतलब है? क्या यह बीमारी को जड़ से खत्म कर देगा?”
बता दें कि यह मामला साल 2022 का है। तब पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ भारतीय चिकित्सा संघ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। आज इसी याचिका पर न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने सुनवाई की। आईएमए ने अपनी याचिका में कहा था कि जब प्रत्येक वाणिज्यिक इकाई को अपने उत्पादों को बढ़ावा देने का अधिकार है तो पतंजलि क्यों एलोपैथी जैसी आधुनिक चिकित्सा प्रणालियों पर झूठे दावे कर रही है।
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