बृजेश चतुर्वेदी
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में पहली बार राजनीतिक दलों से ऊपर जातीय गोलबंदी दिखाई दे रही है। सभी जातियों में इस बात की होड़ लगी है कि उसका सियासत में वर्चस्व कैसे बने और अधिक से अधिक उनकी जाति के विधायक चुने जाये। जिस तरह से जातीय समीकरण बनते जा रहे है उससे लग रहा है कि भाजपा के दो महीने से लगातार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा विकास के शिलान्यास और लोकार्पण किया जा रहा है। इसके अलावा योगी आदित्यनाथ लगातार कर्मचारियों पंचायत प्रतिनिधियों एवं कल्याणकारी योजनाओं की धनराशि बढ़ाये जा रहे है। छात्रों को लैपटाप और टेबलेट बांट रहे है। पिछली सरकार और योगी सरकार के तुलनात्मक बनाये गए विज्ञापन फर्क साफ़ है आदि के बाद भी 2022 में 2007, 2012, 2017 जैसा माहौल किसी एक पक्ष में बनता नहीं दिखाई दे रहा है। इन तीनों चुनाव में जब बसपा, सपा और भाजपा की बहुमत की सरकार बनी थी तो स्थितियाँ अलग थी लेकिन 2022 में अलग है। जागरूकता से सभी जातियों में वर्चस्व की होड़ मची हुई है। प्रदेश में दौरे के समय जातीय गोलबन्दी जबर्दस्त रूप से दिखाई दी जो पार्टी लाइन से ऊपर है।
ठाकुर
जातियों में सबसे पहले हम ठाकुर की बात करें। जिसमें एक ऐसा परसेप्शन बन गया है कि सभी ठाकुर मतदाता योगी आदित्यनाथ के कारण भाजपा को वोट देंगे। ऐसा नहीं है। ठाकुरों में भी अगर भाजपा का ठाकुर प्रत्याशी कमजोर हुआ तो दूसरे दलों के मजबूत और जीतने वाले प्रत्याशी को मत करेंगे। कहने का मतलब यह है कि सपा, बसपा व अन्य किसी भी पार्टी से अगर जिताऊ प्रत्याशी ठाकुर है, तो ठाकुर मतदाता गैर ठाकुर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान नहीं करेंगे। यह अलग बात है कि जहां दूसरे दलों में मजबूत ठाकुर प्रत्याशी नहीं होगा उस सभी निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा को वोट देंगे।
ब्राह्मण
ब्राह्मण मतदाताओं में भी किसी भी दल से लड़ने वाले मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी को जिताने का ही माहौल है। भाजपा को गलत फहमी नहीं होनी चाहिए कि ब्राह्मण मतदाता योगी की कार्यशैली से नाराज होकर भी उसके साथ रहेगा। ब्राह्मण मतदाता विधानसभा में अधिक से अधिक विधायक भेजने के लिए ऐसे सजातीय प्रत्याशी का समर्थन करेंगे, जो जीत रहा हो। वह किसी भी दल का प्रत्याशी क्यो न हो। अगर सपा व बसपा का मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी हुआ तो भाजपा को ब्राह्मण समर्थन नहीं करेंगे। अगर ब्राह्मण प्रत्याशी नहीं है तो हो सकता है हिन्दुत्व एजेंडे और मोदी के चेहरे पर ब्राह्मण भाजपा प्रत्याशी को मत करे। पूर्वांचल से मिल रहे इनपुट के आधार पर ब्राह्मण मतदाता विशेष कर पूर्वांचल में इस बात को लेकर चिंतित है कि अगर योगी आदित्यनाथ दूसरी बार मुख्यमंत्री बन गए तो ब्राह्मणों का राजनीतिक भविष्य खतरे में पड़ जाएगा। क्योकि जिस तरह से योगी के विरोध का अभियान ब्राह्मणों द्वारा चलाया जा रहा है इसके बाद भी पूर्वांचल में भाजपा को 2017 जैसी सफलता मिल गई तो ब्राह्मण पूरी तरह से उपेक्षित होगा और यह स्पष्ट हो जायेगा कि ब्राह्मणों की राजनीतिक हैसियत जिताने हराने की नहीं रह गई है। ब्राह्मण की भी पहली पसंद किसी भी दल का मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी होगा। योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ब्राह्मण मतदाताओं की नाराजगी को भुनाने के लिए सपा, बसपा व किसी भी दल को मजबूत और जिताऊ प्रत्याशी ब्राह्मण बहुल्य विधानसभा क्षेत्रों में देना होगा। जिन क्षेत्रों में ब्राह्मणों की संख्या अधिक है अगर उन क्षेत्रों में समाजवादी पार्टी या बहुजन समाजवादी पार्टी ने मजबूत एवं जिताऊ प्रत्याशी दिये तो उसे भाजपा के खिलाफ समर्थन मिल सकता है। ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्रों में सपा व बसपा या अन्य कोई दल कमजोर ब्राह्मण प्रत्याशी या गैर ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारता है तो योगी से नाराजगी के बाद भी भाजपा को समर्थन करेंगे। योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से जबर्दस्त नाराज ब्राह्मण हिंदुत्व एजेंडे पर भाजपा को समर्थन कर सकता है। लेकिन इसके लिए मोदी को ही आगे आना पड़ेगा क्योंकि राम मंदिर निर्माण हो या विश्वनाथ कॉरिडोर हो, इसका श्रेय मोदी को ही जाता है। योगी आदित्यनाथ के बारे में ब्राह्मण मतदाताओ में परसेप्शन बन चुका है कि वह गोरखपुर में ब्राह्मणों और राजपूत की लड़ाई को मुख्यमंत्री के रूप में भी भूल नहीं पाये। ब्राह्मणों की नाराजगी को देखते हुये भाजपा से जुड़ें ब्राह्मण मंत्रियों की एक मीटिंग बुलाई गई। जिसमें नाराजगी को दूर करने के लिए वरिष्ठ नेता शिव प्रताप शुक्ल के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई है। गत 5 वर्षों से उपेक्षित पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कान्त बाजपेयी को जॉइनिंग कमेटी की ज़िम्मेदारी दी गई। पूर्वांचल में मऊ के रहने वाले ब्राह्मण अधिकारी को सेवा निवृत्ति के दो दिन पहले उत्तर प्रदेश का मुख्य सचिव बनाया गया और यह संदेश देने का प्रयास किया गया कि ब्राह्मणों का सम्मान होगा लेकिन सबसे महत्वपूर्ण और अहम यह है कि टिकट बँटवारे में ब्राह्मण प्रत्याशियों की हिस्सेदारी क्या होगी ? किस तरह और कैसे और कितनी संख्या में ब्राह्मण प्रत्याशी बनाए जाएंगे इस पर बहुत कुछ निर्भर है। अगर सपा ने मजबूत और जिताऊ ब्राह्मण प्रत्याशी को टिकट दिया तो निश्चित रूप से योगी की कार्यशैली से नाराज ब्राह्मण का बहुत बड़ा तबका अपने सम्मान के लिए हिंदुत्व एजेंडे से भी हट कर भाजपा के खिलाफ मतदान करेगा।
कायस्थ, पंजाबी व अन्य
इसी तरह से कायस्थ एवं पंजाबी व अन्य में भी अपने जाति एवं धर्म से जुड़े हुये मजबूत प्रत्याशी को ही समर्थन देने की बात देखी गई। आबादी कम होने के कारण स्थानीय स्तर पर राजनीतिक समीकरण के अनुसार कायस्थ और पंजाबी चुनाव में मतदान करते है लेकिन पिछले तीन चुनाव से भाजपा के साथ जुड़े है और अभी भी बहुमत भाजपा के साथ ही है। यह अलग बात है कि महँगाई और बेरोजगारी से परेशान कायस्थ तथा व्यापार में हो रहे नुकसान से पंजाबी दुखी है।